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नए विकल्पों को तलाश कर अमेरिकी टैरिफ के असर से बचने का हो इंतजाम

मधुबनी में मखाना पर अमेरिका के 26 प्रतिशत टैरिफ का गहरा असर पड़ रहा है। इससे मखाना का निर्यात महंगा हो जाएगा, जिससे मिथिला के किसानों और व्यापारियों को नुकसान होगा। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि...

Newswrap हिन्दुस्तान, मधुबनीMon, 7 April 2025 05:27 PM
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नए विकल्पों को तलाश कर अमेरिकी टैरिफ के असर से बचने का हो इंतजाम

मधुबनी। मिथिला की पहचान और खेती के अहम स्तंभ मखाना पर अमेरिका के टैरिफ ने गहरा असर डाला है। अमेरिका ने भारत समेत कई देशों पर 26 प्रतिशत पारस्परिक शुल्क लगा दिया है, जिससे मखाना का निर्यात महंगा हो जाएगा। इसका सीधा असर मिथिला क्षेत्र के किसानों और कारोबारियों पर पड़ सकता है, क्योंकि यहां देश का सबसे अधिक मखाना पैदा होता है। मिथिला के जिलों में मखाना की खेती परंपरागत रूप से की जाती रही है और यह क्षेत्र देश के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक देता है। अमेरिका इस सुपर फूड का सबसे बड़ा खरीदार है। मखाना की बढ़ती वैश्विक मांग को देखते हुए यहां की खेती और प्रोसेसिंग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। क्षेत्रफल की बात करें तो वर्तमान में 36,727 हेक्टेयर में मखाना की खेती की जा रही है। लेकिन अमेरिकी टैरिफ के कारण मखाना का मूल्य वहां बढ़ जाएगा और इसकी मांग घटने की संभावना है। इससे भारतीय जीडीपी को लगभग 3 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है। निर्यातक मो. मंजर ने बताया कि इस निर्णय से मखाना एक्सपोर्ट की रफ्तार थम जाएगी और किसानों को भी उचित मूल्य नहीं मिल पाएगा।

बैंक से सेवानिवृत हुए अधिकारी नवीन चंद्र मिश्र ने बताया कि घबराने की नहीं, सतर्क रहने की जरूरत है। इनके अनुसार अमेरिका ने भारत जैसे प्रतिस्पर्धी देशों-चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और थाईलैंड पर भी ज्यादा टैरिफ लगाया है, जिससे भारत को तुलनात्मक रूप से फायदा हो सकता है। डॉ. नरेश कुमार ने बताया कि समाधान के रूप में, मखाना को टैरिफ से छूट दिलाने के लिए भारत को अमेरिकी सरकार से बातचीत करनी चाहिए। वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में भी इस विषय को उठाना चाहिए। साथ ही, मखाना के नए निर्यात बाजारों की तलाश जरूरी हो गई है। इन्होंने बताया कि मिथिला में एपीडा का क्षेत्रीय कार्यालय खोला जाना चाहिए ताकि किसानों और निर्यातकों को आवश्यक सहायता मिल सके। इसके अलावा, डाक निर्यात केंद्र को मार्केटिंग बजट मिलना चाहिए ताकि निर्यातकों को बढ़ावा दिया जा सके। अब समय है कि भारत इस चुनौती को अवसर में बदले और मखाना के लिए नए वैश्विक रास्ते खोले। भारतीय मूल के लोगों को अमेरिका में यूनिट स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, ताकि वहां रोस्टेड मखाना तैयार कर बाजार में उतारा जा सके। इससे मखाना का निर्यात भी जारी रहेगा और किसानों की आमदनी भी सुनिश्चित होगी। मिथिला के किसानों की मेहनत और मखाना की गुणवत्ता ऐसी है कि यह हर वैश्विक चुनौती का सामना कर सकती है। अब जरूरत है एक रणनीतिक, संगठित और दूरदर्शी प्रयास की। निर्यातक फैसल ने बताया कि वे यूके और यूएस को मखाना भेजा है। टैरिफ बढ़ने से यूएस ऑर्डर बंद हो गया। सरकार एपीडा को सक्रिय करे ताकि नए देश में निर्यात आसान हो। मखाना, मधुबनी पेंटिंग अमेरिकी बाजार में महंगी हो गई हैं।

मिथिला के उत्पादों की वैश्विक मांग को लेकर बनाई जाए स्पष्ट रणनीति

मिथिला क्षेत्र से विशेष रूप से मधुबनी पेंटिंग्स, मखाना, हाथ से बने वस्त्र, और मिट्टी के शिल्प उत्पादों की विदेशों में भारी मांग है। अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में मधुबनी कला को भारतीय परंपरा का प्रतीक माना जाता है। वहीं, मखाना को हेल्दी स्नैक के रूप में दुनिया भर में लोकप्रियता मिल रही है। मिथिला के सिल्क और कॉटन की साड़ियां, खासकर मधुबनी प्रिंट वाली, फैशन प्रेमियों के बीच खास पहचान बना रही हैं। इन सभी उत्पादों के प्रचार-प्रसार और व्यापार को बढ़ाने के लिए डिजिटल मार्केटिंग, अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी और ई-कॉमर्स प्लेटफार्म की मदद ली जा सकती है। हालांकि, अभी भी मिथिला के कई कारीगर और किसान सही मार्गदर्शन और सहयोग के अभाव में वैश्विक मंच तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। अगर स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण, निर्यात संबंधी सुविधाएँ और वित्तीय सहायता मिले, तो ये उत्पाद न केवल विदेशों में छा सकते हैं, बल्कि मिथिला की अर्थव्यवस्था को भी नई ऊंचाई दे सकते हैं।

अन्य देशों के बाजार पर करना होगा फोकस

मिथिला और भारत से अमेरिका, यूरोप समेत कई देशों में परंपरागत, सांस्कृतिक और औद्योगिक उत्पादों का निर्यात होता रहा है। इनमें मखाना, मधुबनी पेंटिंग, साड़ी, मसाले, आयुर्वेदिक उत्पाद आदि प्रमुख हैं। लेकिन हाल ही में अमेरिका में टैरिफ बढ़ने से इन उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हुई है। ऐसे में व्यवसायियों को वैकल्पिक बाजार जैसे दुबई, सऊदी अरब, कनाडा और अन्य इस्लामिक देशों की ओर ध्यान देना होगा। इन क्षेत्रों में भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में रहते हैं और ये बाजार भारतीय वस्तुओं के लिए अनुकूल भी हैं। हालांकि, स्थानीय उत्पादकों और व्यापारियों को इन बाजारों में व्यवसाय बढ़ाने के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन और सरकारी सहयोग की आवश्यकता है।

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मखाना पर अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर मिथिला के किसानों और व्यापारियों पर पड़ना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह क्षेत्र सदियों से मखाना उत्पादन का केंद्र रहा है और पिछले कुछ वर्षों में हमने वैज्ञानिक तकनीक और बेहतर प्रबंधन से इसकी उपज और गुणवत्ता में काफी सुधार किया है। परंतु 26% टैरिफ से हमारा उत्पाद अमेरिका में महंगा हो जाएगा और वहां की मांग पर असर पड़ेगा। इससे हमारे किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलेगा और व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ेगा। हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि वह अमेरिका के साथ कूटनीतिक स्तर पर वार्ता करे ताकि मखाना को टैरिफ से छूट दी जा सके। साथ ही मिथिला में एपीडा का कार्यालय खोला जाए। मखाना को लेकर हमारी संस्कृति और आजीविका जुड़ी है, इस संकट में हम किसानों के साथ खड़े हैं और विधानसभा में भी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाएंगे।

-समीर कुमार महासेठ, पूर्व उद्योग मंत्री सह विधायक

मिथिला के उत्पादों की विश्व में अपनी अलग पहचान है। गुणवत्ता के कारण इसकी मांग काफी रहती है। ऐसे में इसकी मांग हमेशा बनी रहेगी। एनआईआर में तो इसकी लोकप्रियता की बात किसी से छिपी नहीं है। इसलिए मिथिला के उत्पादों का तेजी से अन्य देशों में विस्तार होगा, यह तय है।

-रितिका प्रियदर्शिनी, एयर इंडिया

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