फसल को रौंद रहे जंगली पशु बचाने के लिए हो सार्थक पहल
मधुबनी के किसान जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक से परेशान हैं। ये जानवर उनकी फसलों को बर्बाद कर रहे हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। किसान रात में अपनी फसलों की रक्षा के लिए टोली बनाकर खेतों...
फसल को रौंद रहे जंगली पशु बचाने के लिए हो सार्थक पहल ¸मधुबनी। किसानों के लिए खेती आजीविका का मुख्य साधन है। पूंजी संकट, मौसम की मार से बेहाल किसानों को हाल के दिनों में जंगली जानवरों से जूझना पड़ता है। जानवर फसलों को बर्बाद कर देते हैं और इस तरह उनकी मेहनत से की गई खेती मिनटों में खत्म हो जाती है। किसानों का कहना है कि हाल के वर्षों में जंगली जानवरों का प्रकोप बढ़ गया है। कई किसान इन जानवरों के कारण सब्जियों की खेती छोड़ दी है। इससे उन्हें आर्थिक तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़ता है। किसानों ने बताया कि जंगली जानवरों से फसलों की सुरक्षा के लिए पंचायत स्तर पर प्रशासनिक होनी चाहिए।
किसानों का दर्द है कि सरकार उनकी आय बढ़ाने की बात तो करती है मगर फसलों की सुरक्षा कैसे हो, इस पर गंभीर नहीं है। खेती में हजारों खर्च के बाद इन जंगली और आवारा पशुओं की वजह से किसानों की लागत भी डूब जा रही है। शहर से सटे इलाकों में फसलों पर जंगली और आवारा पशुओं का काफी आतंक है। सांड, जंगली सूअर, नीलगाय, बंदर आदि जानवर किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। शहर से सटे इलाकों में इन आवारा पशुओं की वजह से हजारों हेक्टेयर में लगी गेहूं, मसूर, चना, दलहन, तेलहन की फसलों को बचाना मुश्किल हो रहा है। इन जंगली जानवरों की वजह से करीब 1000 से अधिक किसान प्रभावित हैं। दिन भर खेतों में मेहनत करते हैं, मगर उनकी मेहनत पर रात के समय जंगली जानवर पानी फेर देते हैं। शहर से सटे जितवारपुर, सौराठ, जगतपुर, मिठोली, कनैल, सेराम, कपसीया, नाजिरपुर आदि गांवों के किसान काफी प्रभावित हो रहे हैं। सौराठ के किसान कालीकांत झा, सुखदेव साह, नारायण साह, कनैल के किसान गोपाल शर्मा, रामाशीष यादव, कन्हैया कुमार कारजी आदि ने बताया कि करीब आधा दर्जन गांवों के सैकड़ों किसानों ने अपनी खेतों में गेहूं, मसूर, दलहन और तिलहन की फसलों को लगा रखा है। मगर हर दिन जंगली जानवर फसलों को बर्बाद कर रही है। किसान अपनी फसल को सांढ़, सूअर और अन्य जंगली जानवरों से बचाने के लिए रतजगा करने को विवश हैं। फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए सरकारी स्तर पर कोई सहायता नहीं मिल पा रही है। किसान त्रस्त हैं। किसान माधव पांडेय, केदार झा, रामकिशुन मुखिया आदि ने बताया कि आवारा पशुओं में सांड करीब 25 से 30 की संख्या में प्रत्येक दिन गेहूं की फसलों को अपना निशाना बनाते हैं। इन किसानों का कहना है कि गेहूं की एक कट्ठा की फसल का उत्पादन करने पर करीब 1200 से अधिक रुपए खर्च होते हैं। मगर यह जंगली जानवर एक ही दिन में पूरी फसलों को खा जाते हैं।
रात में टोली बनाकर किसान करते खेतों की रखवाली: रात के समय किसान 10 से 15 की संख्या में टोली बनाकर अपने फसलों की रक्षा इन आवारा और जंगली पशुओं से करते हैं। कई बार किसानों पर आवारा पशु हमला भी कर देते हैं। इस वजह से किसानों के हाथ में लाठियां व अन्य सुरक्षा के सामान होते हैं। मजबूरी यह है कि देर रात यह लोग जब इन आवारा पशुओं को अपने खेतों से दूर भगाकर लौट जाते हैं तो इसके बाद फिर से दो-तीन घंटे बाद आवारा पशु खेतों पर धावा बोल देते हैं।
आलू की फसल को भी सूअर कर रहे बर्बाद: जंगली सुअरों की वजह से किसानों ने अब आलू की फसल से अपनी दूरी बना रहे हैं। रात के समय में आलू की फसल को जंगली सूअर खोदकर खा जा रहे हैं। इन आधा दर्जन गांवों में करीब 10 एकड़ में फसलें लगाई गई थीं, मगर सुअरों ने आलू की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया। मजबूरन किसान फसल की अवधि पूरा होने से पहले ही इसकी खुदाई कर लिए। किसानों ने कहा कि मुनाफा तो दूर की बात लागत भी नहीं निकल सकी।
बंदर करते हैं फल व सब्जियों को नुकसान: इन गांव में बंदर का भी काफी आतंक है। किसानों के खेत में लगे मटर, टमाटर, गोभी, बैगन सहित कद्दू, कदीमा पपीता, मक्का आदि फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचाता है। सब्जी उत्पादक किसान इन बंदरों के आतंक से परेशान हैं। इस पूरे छात्र को मिलाकर करीब 100-100 के झुंड में 1000 से अधिक बंदर हैं। सुबह होते ही यह बंदर अपनी भूख मिटाने के लिए इन फसलों को बर्बाद कर देते हैं। इस वजह से किसानों के लाखों की लागत बर्बाद हो जाती है।
प्रस्तुति: राजेश रंजन शशि
सौराठ सभागाछी बना सांड व आवारा पशुओं का अड्डा
सौराठ निवासी किसान कालिकांत झा ने बताया कि सौराठ सभागाछी में सांड व आवारा पशुओं का बसेरा बन गया है। यहां पर करीब 40 से 50 की संख्या में छोटे बड़े सांढ़ रहते हैं। यहीं से निकलकर रात और दिन के समय किसानों की फसलों को बर्बाद करते हंै। हालांकि इन दिनों हरे-भरे खेतों में फसल रहने की वजह से सांढ़ रात भर फसलों को चरने के बाद खेतों में ही आराम करता है। उन्होंने जिला प्रशासन से इन आवारा पशुओं से निजात दिलाने की मांग की है। उन्होंने समाज के लोगों से अपील की है कि वे लोग श्राद्ध कर्म में सांढ़ दागकर छोड़ने की परंपरा को त्याग करें। यहीं सांढ़ किसानों की हजारों एकड़ में लगी फसलों को बर्बाद करते हैं। उन्होंने समाज के लोगों से यह भी अपील की है कि वे लोग सभी कर्म विधि विधान पूर्वक करें मगर इस परंपरा को त्याग दें। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो किसान खेती की तरफ से अपना मुंह मोड़ लेंगे। किसानों की माली हालत दिनों दिन और खराब होती चली जाएगी। फिलहाल सांढ़ सहित अन्य जंगलों जानवरों का फसलों पर बढ़े आतंक से जिला प्रशासन निजात दिलाएं।
जंगली पशुओं से बचाव को ऑनलाइन आवेदन करें किसान
जिला कृषि पदाधिकारी ललन कुमार चौधरी ने बताया कि जंगली पशुओं से छुटकारा के लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। घोड़परास और जंगली सूअर से बचाव के लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। किसानों के ऑनलाइन आवेदन करते ही जिला पंचायती राज विभाग और वन विभाग इसमें सहयोग करेगा।
जंगली सूअर और घोड़परास को मारने और इसके शव का निष्पादन करने को लेकर सभी पंचायतों के मुखिया को तीन दिवसीय ट्रेनिंग भी मिल चुकी है। उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे लोग इन दोनों जानवरों से बचाव के लिए ऑनलाइन आवेदन कर अपने फसलों की सुरक्षा करें। हालांकि, सांड को भगाने के लिए किसानों को अपने स्तर से ही फिलहाल व्यवस्था करनी पड़ेगी। खेतों की घेराबंदी या अन्य किसी भी तरह की अभी सरकारी सुविधा सरकार की तरफ से शुरू नहीं की गई है।
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