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पालक व संहारक दोनों रूप में पूजे जाते हैं भोलेनाथ

सिंहेश्वर में आयोजित सात दिवसीय श्री शिवपुराण कथा का समापन हुआ। कथावाचक पंडित प्रदीप मश्रिा ने भगवान शिव की महिमा और उनके भक्तों की श्रद्धा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान शिव को बेलपत्र प्रिय...

Newswrap हिन्दुस्तान, मधेपुराMon, 28 April 2025 04:43 AM
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पालक व संहारक दोनों रूप में पूजे जाते हैं भोलेनाथ

सिंहेश्वर, निज संवाददाता। सिंहेश्वर में आयोजित सात दिवसीय श्री शिवपुराण कथा के अंतिम दिन रविवार को प्रख्यात कथावाचक पंडित प्रदीप मश्रिा ने कहा कि भगवान शंकर पालक और संहारक दोनों रूपों में पूज जाते हैं। भोलेनाथ का अर्थ है कोमल हृदय वाला, दयालु और आसानी से माफ करने वाला देवता। भगवान शिव थोड़े से प्रयास से भी प्रसन्न हो जाते हैं। भक्तों की सच्ची श्रद्धा से वे तुरंत वरदान देते हैं। कथावाचक ने कहा कि भगवान शिव छल-कपट से दूर रहते हैं। इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। उन्होंने बताया कि लिंगम को पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग का आकार ब्रह्मांड की अनंतता और ऊर्जा का प्रतीक है। शिवलिंग में भगवान शिव का निराकार रूप वद्यिमान है। समुद्र मंथन के समय निकले 14 रत्नों में से कई रत्न भगवान शिव को प्रिय हैं। सिंहेश्वर की पावन धरती पर रविवार को आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। सात दिवसीय शिव महापुराण कथा के अंतिम िउप सुबह आठ से 11 बजे तक कथा का आयोजन किया गया। व्यास पीठ से पंडित प्रदीप मश्रिा ने कहा कि मेरे भोलेनाथ पर वश्विास रखो। देवता भी रावण से डरते थे लेकिन रावण केवल महादेव से भय खाता था। कर्म करते समय फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हर व्यक्ति को अपना काम पूरी नष्ठिा और नि:स्वार्थ भावना से करनी चाहिए। मेहनत का फल भगवान शंकर देंगे। व्यक्ति का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं। उन्होंने कहा कि कई बार परस्थितिियों या भावनाओं में बहकर हम ऐसे फैसले कर लेते हैं जो हमारे कर्म को प्रभावित करते हैं। समर्पण और नष्ठिा से किया गया काम ही सच्चा कर्म है। यह पृथ्वी लोक शंकर का है। देवलोक, इंद्रलोक, स्वर्गलोक और बैकुंठ धाम में जब तक पुण्य है, तब तक रह सकते हैं। पुण्य समाप्त होने पर धक्का मारकर पृथ्वी लोक में भेज दिया जाता है। यहां कंकर-कंकर में शंकर बसे हैं।सिंहेश्वर से मधेपुरा पैदल पहुंचे हजारों श्रद्धालु : मधेपुरा। सिंहेश्वर में सात दिवसीय श्री शिवपुराण कथा का रविवार को वापस घर लौटने वाले श्रद्धालुओं का सड़कों पर सैलाब उमड़ पड़ा। सिंहेश्वर में हर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। मधेपुरा - सिंहेश्वर रोड श्रद्धालुओं का रैला नजर आने लगा। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी। वाहनों की कमी के कारण हजारों श्रद्धालु माथे पर सामान लेकर पैदल मधेपुरा के लिए चल पड़े।

भगवान भोले के चरणों में रहने की करें कामना: कथावाचक पंडित प्रदीप मश्रिा ने कहा कि सभी कैलाश पर्वत पर भगवान भोले के चरणों में रहने की कामना करें। वहां से और कहीं नहीं धकेला जाएगा। वहां सारे वार और परिवार शिव के हैं। जो सास अपनी बहू और जो बहू अपनी सास के साथ रह रही हैं वे कस्मित वाले हैं। अपने बच्चों को संस्कारवान बनाओ। इससे आने वाला समय श्रेष्ठ होगा और देश उन्नति करेगा। भगवान भोलेनाथ को सहपरिवार अपने घर में आमंत्रित करें। उन्हें पीले चावल से आमंत्रण दें। गऊ, गुरु और गोविंद के सामने पांव मोड़कर और हाथ जोड़कर बैठो। मन को मोड़कर ही भगवान के पास बैठना है। परमात्मा की ओर अपने मन को मोड़ना है।

बेलपत्र है भगवान शिव को अत्यंत प्रिय: समुद्र मंथन से निकले चंद्रमा को भी भगवान शिव ने अपने सिर पर धारण किया। इस कारण उन्हें चंद्रशेखर कहा जाता है। भगवान शिव का प्रिय पुष्प मदार भी समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था। बेलपत्र भी भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। समुद्र मंथन से निकली गंगा को भी भगवान शिव ने अपनी जटाओं में धारण किया। गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के समय भगवान शिव ने उसकी तेज धारा को अपनी जटाओं में समेटा था। भगवान शिव का त्रिशूल भी समुद्र मंथन से निकले दव्यि रत्नों में से एक माना जाता है। त्रिशूल को शक्ति, इच्छा और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के डमरू को भी विशेष महत्व प्राप्त है। डमरू की ध्वनि से सृष्टि की रचना का आरंभ हुआ था। समुद्र मंथन से निकले रत्नों में से कई आज भी भगवान शिव के स्वरूप और पूजा में शामिल हैं। इसी कारण भगवान शिव को सृष्टि का पालक और संहारक कहा जाता है।

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