भाई-बहन के प्र्रेम का पर्व सामा-चकेवा की तैयारी शुरू
मिथिलांचल में सामा-चकेबा पर्व की तैयारी शुरू हो गई है, जो 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होगा। इस पर्व में भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं मिट्टी की मूर्तियां बनाकर पारंपरिक...
घैलाढ़। मिथिलांचल के लोक संस्कृति का प्रतीक पर्व सामा-चकेबा की तैयारी शुरू कर दी गई है। 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा पर इस पर्व का समापन होगा। घर-आंगन में सामा-चकेबा का पारंपरिक लोक गीत गूंजने लगा है। छठ पर्व से ही मिट्टी से कई तरह की मूर्तियां बनाने के साथ शाम में लोकगीत गाये जाने लगे हैं। मिथिला और कोसी के क्षेत्र में भातृ द्वितीया और रक्षाबंधन की तरह ही भाई-बहन के प्रेम स्नेह का प्रतीक लोक पर्व सामा चकेवा प्रचलित है। सामा, चकेवा, टिहुली, कचबचिया, चिरौंता, हंस, सतभैंया, चुगला, वृंदावन, पेटार, ढोलकिया सहित कई अन्य छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनायी जाती है। देवोत्थान एकादशी की रात से प्रत्येक आंगन में नियमित रूप से महिलाएं पहले समदाउन, भजन सहित अन्य गीत गाकर बनायी गयी मूर्तियों को ओस चटाती है। कार्तिक पूर्णिमा की रात मिट्टी के बने पेटार में संदेश स्वरूप दही-चूड़ा भर सभी बहनें सामा चकेवा को अपने-अपने भाई के ठेहुना से फोड़वा कर श्रद्धा पूर्वक अपने खोइंछा में लेती है। इस पर्व की तैयारी जोरशोर से चल रही है।
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