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केला की खेती से धीरे-धीरे विमुख हो रहे किसान

प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में किसान केले की खेती से विमुख हो रहे हैं। सरकारी प्रोत्साहन और उचित बाजार मूल्य न मिलने के कारण किसान आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। पहले 5000 हेक्टेयर में केला की खेती...

Newswrap हिन्दुस्तान, मधेपुराSun, 27 April 2025 03:56 AM
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केला की खेती से धीरे-धीरे विमुख हो रहे किसान

पुरैनी, संवाद सूत्र। प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में बड़े पैमाने पर की जाने वाली केला की खेती से किसान धीरे-धीरे विमुख हो रहे हैं। हजारों एकड़ में केला की लहलहाती फसल के बजाय अब तीस से चार प्रतिशत भू भागों में ही केला की खेती दिखायी देती है। इसका सबसे बड़ा कारण सरकारी प्रोत्साहन व बाजार नहीं मिलने से केला उत्पादक किसानों के आर्थिक तंगी का शिकार होना बताया जाता है। प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश लघु और सीमांत किसान नगदी फसल के रूप में बड़े पैमाने पर केला की खेती करते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से केला उत्पादक किसानों ने कई व्यवहारिक कठिनाईयों और सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण केला की खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। जानकारी हो कि प्रखंड क्षेत्र में लगभग पांच हजार हेक्टेयर से अधिक में केला की खेती होती थी। लेकिन अब एक हजार हेक्टेयर में यह सीमट चुकी है।

क्षेत्र के केला उत्पादक किसानों का कहना है कि न सरकारी स्तर से कोई समर्थन नहीं मिलता है और न तो उचित मूल्य मिलता है। पिछले एक दशक से प्रखंड क्षेत्र में केला की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही थी। लेकिन उचित कीमत नहीं मिलने से केला की खेती के प्रति किसान विमुख हो गए हैं। किसानों की मानें तो केला जब तैयार होने की स्थिति में आता है तो अक्सर प्राकृतिक आपदा से बर्बाद हो जाता है। इतना ही नहीं केला फसल में कई बीमारी होने से फुल और फल नष्ट हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में न तो कृषि विभाग की ओर से कोई मदद की जाती है और न ही सरकारी स्तर से कोई मुआवजा मिलता है। ऐसे में किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में किसानों को औने पौने दाम में फसल बेचना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या है कि ऐसी स्थिति में केला उत्पादक किसानों को लागत खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है। किसान संजय यादव, मिथिलेश यादव, अखिलेश सिंह, लखविंदर सिंह, माधव मेहता, सुरेंद्र मंडल, टिंकू मेहता, संजय मेहता, विजय मेहता, राकेश कुमार, राहुल यादव, गणेश यादव, जयजय राम यादव सखीचन मंडल का कहना है कि अच्छी आमदनी को देखकर इलाके के किसान बड़े पैमाने पर केला की खेती करते थे। लेकिन उत्पादन का सही कीमत नहीं मिलने और सरकार से केला की खेती को लेकर प्रोत्साहन की कमी से किसान विमुख होने लगे हैं। किसानों ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व केला के लिए व्यापारी उत्तर प्रदेश से काफी संख्या में आते थे और केला लेकर शहर के बड़ी मंडी भी जाते थे। वहां अच्छी कीमत मिल जाती थी। आज परिस्थिति ऐसी है कि न तो व्यापारी पहुंचते हैं और न ही बाजार में उचित मूल्य मिल पाता है। केला की खेती करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कच्चा माल होने के कारण सड़ने और गलने का डर बना रहता है। यातायात की असुविधा के कारण कभी-कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि है कि रास्ते में ही फसल खराब होता है। ऐसे में औने-पौने दामों में बेचने की मजबूरी उत्पन्न हो जाती है।

उद्यान निदेशक मो. जावेद ने बताया कि केला की खेती के लिए अनुदानित दर पर पौधा उपलब्ध कराया जाता है। इसके बाद पौधे की देखभाल के लिए ऐ हेक्टेयर में 15625 रुपए किसानों के खाते में भेजी जाती है। प्राकृतिक आपदा में 33 प्रतिशत से अधिक क्षति होने पर मुआवजा का प्रावधान है।

केला की खेती के लिए किसानों को सरकारी स्तर से मुआवजा मिलनी चाहिए। कच्चा नगदी फसल तैयार करने में कई तरह की कठिनाइयों का सामना पड़ता है।

निर्मल ठाकुर, पुरैनी

पांच साल पहले प्रखंड क्षेत्र में केला की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी। प्राकृतिक आपदा में फसल क्षति नहीं मिलने से किसानों को निराश होना पड़ता है। ऐसे में किसान केला की खेती करने से परहेज करने लगे हैं।

विनोद कांबली निषाद, पुरैनी

केला की खेती को लेकर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। इस फसल से अच्छी खासी आमदनी हो जाता थी। आज उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण केला की खेती को लेकर किसानों का मोह भंग होता जा रहा है।

जवाहर मेहता, पुरैनी

प्रखंड क्षेत्र में मात्र पांच से दस प्रतिशत किसान केला की खेती कर रहे हैं। जबकि पांच साल पहले 80 फीसदी किसान केला की खेती करते थे। केला की खेती को प्रोत्साहित करने की दिशा में सरकार व्यापक अभियान चलाए।

मो शमशाद, नया टोला

सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण केला उत्पादक किसानों को कई तरह की परेशानियों क सामना करना पड़ता है। बड़े बाजार तक छोटे किसान नहीं पहुंच पाते हैं जिससे औने पौने दाम में केला बेचना पड़ता है।

लड्डू यादव, रौता

किसान हित में न तो जनप्रतिनिधि का ध्यान है और न ही सरकार का। ऐसे में केला उत्पादक किसानों को आज लागत मूल्य भी निकालना मुश्किल हो गया है। किसान अब दूसरी खेती की तरह अग्रसर हो रहे हैं।

रंजीत यादव, डुमरैल

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