सूर्यगढ़ा की पहचान बनी हुई है पारंपरिक छेना मिठाई
सूर्यगढ़ा की पहचान बनी हुई है पारंपरिक छेना मिठाई

राजेन्द्र राज, सूर्यगढ़ा। सूर्यगढ़ा के लोग इस मिठाई को अवश्य खरीदते हैं सौगात में भी इस मिठाई को भेजी जाती है देश और विदेश में भी छेना मिठाई लोग ले जाते हैं बदलते समय में भी इसकी मांग बनी हुई है। जिस प्रकार से गया के तिलकुट, सिलाव का खाजा और बड़हिया का रसगुल्ला प्रसिद्ध है उसी प्रकार सूर्यगढ़ा की छेना मिठाई की भी अपनी अलग प्रसिद्धि है। वर्षों से यह मिठाई यहां के बाजार में बनती आ रही है और आज भी इसकी मांग बनी हुई है। बदलते समय में कई प्रकार की मिठाइयाँ हैं, लेकिन यहां के मिठाई खाने के शौकीन लोगों के लिए छेना मिठाई जरूरत समझी जाती है।
यह केवल जरूरत ही नहीं है बल्कि परम्परा से ही इस मिठाई को शादी ब्याह, तिलक, पूजा पाठ और अन्य कार्यक्रमों में मंगाया जाता है। दूसरे राज्यों और देश के बाहर रहने वाले भी यहां से अपनी मिट्टी की सोंधी खुशबू की मिठाई छेना को जरूर ही खरीदकर ले जाते हैं। मिठाई बनाने वाले दुकानदारों का कहना है कि ढ़ेर सारी मिठाइयां बनती हैं, लेकिन वे छेना मिठाई जरूर बनाते हैं। सूर्यगढ़ा बाजार के अलावा नगर परिषद क्षेत्र एवं प्रखंड के विभिन्न पंचायतों के लोग इसे जरूर खरीदते हैं। इस कारण से उन्हें हर रोज यह मिठाई बनानी पड़ती है। रसगुल्ला की तुलना में यह सस्ती है। रसगुल्ले के आकार से मिलती जुलती है। दोनों के बनावट में अंतर है। वैसे हर मिठाई में छेना की जरूरत होती है। मगर स्पेशल रूप में छेना मिठाई का नामकरण इसका किया गया है। यह सूझबुझ यहां के कुछ दुकानदारों की है। जानकारी अनुसार स्व. राघे साव के द्वारा इयस मिठाई का ईजाद किया गया। करीब सवा सौ बरस पहले यहां गंगा नदी प्रवाहित होती थी। उस समय कटेहर के बाबा गौरीशंकर मंदिर धाम में हर माह की पूर्णमासी,श्रावणी माह ,कार्तिक माह, छठ महाव्रत आदि अवसरों पर बड़ी भीड़ लगती थी। उस समय मवेशी पालकों की संख्या अधिक थी। खास कर दियारा में गायों का पालन अधिक संख्या में होता था। यहां भी अधिक मात्रा में दूध का उत्पादन होता था। वैसे तो जलेबी मिठाई की अपनी प्रसिद्धि थी और बिक्री अधिक होती थी। रसगुल्ला की तुलना में इस मिठाई के आने से लोगों को सोंधापन का टेस्ट अच्छा लगा। इसकी कीमत भी रसगुल्ले की तुलना में कम थी। इस कारण इस मिठाई की लोकप्रियता बढ़ने लगी तथा मेले में आने वाले लोगों को यह सस्ती और अच्छी लगी। घरों में कोई भी उत्सव होता था तो इस मिठाई को जरूर मंगाई जाती थी। धीरे धीरे लोगों ने अपने अतिथियों को भी खिलाना शुरू किया। सौगात में लड्डू के साथ इस मिठाई को भी भेजा जाता था। सूर्यगढ़ा बाजार में आने वाले लोग दूसरी बार इस मिठाई की डिमांड करते थे। अनिल कुमार वर्मा, ओम प्रकाश साह, रविशंकर प्रसाद सिंह अशोक, प्रो. अंजनी आनंद जैसे नागरिकों का कहना है कि छेना मिठाई हमारी सांस्कृतिक परम्परा से जुड़ी हुई है और सूर्यगढ़ा की पहचान बनी हुई है। इस मिठाई की मार्केटिंग और होनी चाहिए। बाहर में इसे ले जाना चाहिए। दुकानदारों का कहना है कि इस मिठाई में मैदा और चाशनी का उपयोग होता है। चाशनी में उबालने के बाद इसका रंग हल्का लाल हो जाता है। रसगुल्ले के समान यह पूरा गोल नहीं होता है बल्कि गालाई में कुछ कमी होती है। कुछ चिकित्सकों का भी कहना है कि मधुमेह के रोगी भी नियंत्रित पूर्वक खाएगें तो कोई हानि नहीं होती है। स्थानीय बाजार के स्व. राघो साव के परिवार के विस्तृत होने से इसकी बिक्री बढ़ गई। देखा देखी बाजार के अन्य दुकानदार भी इसे बनाने लगे। अब तो स्थिति यह है कि बस स्टैंड से लेकर शहीद द्वार, शहीद स्मृति चौक, सीएचसी चौक और बड़ा गद्दी के सामने की दुकानों में इसकी बिक्री अवश्य होती है। स्वर्गीय राम स्वरूप मंडल की दुकान भी यहां और बाहर के लोगों के लिए छेना मिठाई तथा चाय के लिए चर्चित हो गई थी। उनके पुत्र परमानंद मंडल अधिवक्ता समेत अन्य का कहना है कि कभी उनकी दुकान पर चुनावों और बाद में राजनैतिक दल के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं की जमघट लगती थी। इन नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह मिठाई अच्छी लगती थी। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मुंगेर के सांसद स्व. डीपी यादव, पूर्व एमएलए स्व. कार्यानंद शर्मा, स्व. राजनारायण, पूर्व सीएम डा. श्री कृष्ण सिंह आदि इस मिठाई को पसंद करते थे। कार्यकर्ता इन्हें शौक से खिलाते थे और सूर्यगढ़ा की इस मिठाई से वाहवाही लूटते थे। दुकानदारों ने बताया कि अभी इसकी कीमत 200 रूपए प्रति किलोग्राम है। इस मिठाई को और भी प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इसने बाहर में सूर्यगढ़ा की पहचान बनाई है। अमेरिका या सऊदी अरब के देशों में यहां के रहने वाले अवश्य ही इस मिठाई को ले जाते हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी रहने वाले इसे अवश्य खरीदते हैं। बीडीओ मंजुल मनोहर मधुप ने बताया कि वास्तव में यह सूर्यगढ़ा की मिठाई है। अन्यत्र कहीं नहीं मिलती है। इस मिठाई को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। ग्राहकों को इसे खरीदना चाहिए। इसका प्रचार-प्रसार खरीद कर ही हो सकता है।
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