‘पंच का जुबान, खुदा का जुबान होता है
सरकार के निर्देश पर पंचायतों में ग्राम कचहरियों को विधि-व्यवस्था के संधारण और अधिकारों के प्रति जागरूकता के लिए सोमवार को प्रखंड कार्यालय परिसर के डा़ अंबेदकर सभा-भवन में सरपंचों, उप-सरपंचों,नयाय...
सरकार के निर्देश पर पंचायतों में ग्राम कचहरियों को विधि-व्यवस्था के संधारण और अधिकारों के प्रति जागरूकता के लिए सोमवार को प्रखंड कार्यालय परिसर के डा़ अंबेदकर सभा-भवन में सरपंचों, उप-सरपंचों,नयाय सचिवों व न्याय मित्रों के प्रशिक्षण के कार्यक्रमको आरंभ किया। उन्हें बताया गया कि पंच का जुबान खुदा का जुबान है और जवाबदेही का पद है। पटना से आए अवकाश प्राप्त जिला जज कुमार विजय सिंह और सारंगधर उपाध्याय के द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। बीडीओ अभिषेक कुमार प्रभाकर,प्रखंड ग्राम पंचायत अधिकारी मुकेश कुमार आदि ने भी प्रशिक्षण में सहयोग किया। श्री सिंह ने कहा कि यह बिहार सरकार के द्वारा प्रायोजित है और पटना के चाणक्य विधि संस्थान के द्वारा सहयोग किया जा रहा है।ग्राम कचहरी के सुचारू रूप से संचालन तथा सरपंचों आदि के क्षेत्राधिकारों को सरकारी नियम व कानून के अनुसार कार्य करने की दिशा में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कुल 28 पंचायतों के ग्राम कचहरियों के इन सदस्यों केा दो दिनों तक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ग्राम कचहरियों को क्षेत्राधिकारों में रह कर पारदर्शिता के साथ प्रावधानों के तहत न्याय दिलाना है। पंचायत न्याय -व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई है। ये सरपंच घटना-स्थल के करीब के होते हैं। दूसरे अवकाश प्राप्त जिला जज सारंगधर उपाध्याय ने कहा कि ग्राम कचहरी को 40 धाराओं के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत फैसला करना है। थाना या कोर्ट में इन सभी 40 धाराओं से संबंधित मामले जाते हैं तो इन्हें ग्राम कचहरी के पास वापस कर दिया जाता है। ग्राम कचहरी 6 माह की सजा भी सुना सकती है। दस रुपए से एक हजार का आर्थिक दंड दे सकती है। इनका कार्य परामर्श देना है। दोनों अवकाश प्राप्त जजों ने कहा कि आजादी के बाद संविधान निर्माण के साथ ग्राम पंचायतों व ग्राम कचहरियों को स्थानीय स्व-शासन के तहत अधिकार दिया गया। न्याय करने वाला निष्पक्ष और विवेकशील होता है। महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्घ कहानी ‘पंच-परमेश्वर में ग्रामीण जीवन में दो मित्रों के पंच बनने व नीर-क्षीर न्याय करने की कथा। इोनों पहले मित्र थे और बाद में निष्पक्ष ुैसला सुनाने के कारण मनो-मालिन्य के शिकार हो गएं लेकिन जुम्मन शेष ने अलगू के पक्ष में न्याय सुनाया तो उसकी गलतफहमी समाप्त हो गई।
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