Hindi Newsबिहार न्यूज़लखीसरायFlood risk looms due to rise in water level

जलस्तर बढ़ने से मंडराने लगा बाढ़ का खतरा

लगातार हो रही बारिश से नदियों के जलस्तर में वृद्धि जारी है। जिले के गंगा, किऊल एवं हरूहर नदी के जलस्तर में वृद्धि होने से जिले में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। बड़हिया प्रखंड के टाल, दियारा, पिपरिया...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखीसरायThu, 23 July 2020 11:36 PM
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लगातार हो रही बारिश से नदियों के जलस्तर में वृद्धि जारी है। जिले के गंगा, किऊल एवं हरूहर नदी के जलस्तर में वृद्धि होने से जिले में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। बड़हिया प्रखंड के टाल, दियारा, पिपरिया एंव सूर्यगढ़ा प्रखंड के दियारा इलाके में बसे लोगों को बाढ़ का भय होने लगा है। बाढ़ के कारण जिले के लगभग दो लाख की आबादी अस्त व्यस्त हो जाती है।

नदी इलाके में रहने वाले लोग बाढ़ की विभिषका का आकलन करके सिहर जा रहे है। गंगा, हरूहर एवं किऊल नदी जलस्तर बढ़ने के कारण दियारा के क्षेत्र में बाढ़ का पानी फैलने लगा है। गंगा नदी का पानी पिपरिया प्रखंड के रामचंद्रपुर एवं मोहनपुर के बीच रहे सोती में आ गया है। अगर नदी का पानी और बढ़ा तो अब फसलें डूबने लगेगी। फसल के डूबने से सबसे ज्यादा नुकसान किसान के साथ पशु पालकों को होती है। बाढ़ के समय में पशु चारा की खासें दिक्कतें होने लगती है।

निचले इलाके में फैलने लगा पानी: गंगा, किऊल एवं हरूहर नदी के निचले इलाके में बाढ़ का पानी फैलने लगा है। सबसे ज्यादा नुकसान गंगा का जलस्तर बढ़ने से है। गंगा के जलस्तर बढ़ने से बड़हिया, पिपरिया एवं सूर्यगढ़ा प्रखंड के निचले इलाके में पानी फैलने लगा है। नदियों के जलस्तर में लगातार वृद्धि जारी रही तो दियारा एवं टाल क्षेत्र के लगभग दो लाख आबादी का प्रभावित होना तय माना जा रहा है। बाढ़ के चपेट में आने वाले लोगों को सोशल डिस्टेेंसिंग के साथ शरणस्थली में रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

पशु चारा की दिक्कत, तैयारियों की खुलती पोल: बाढ़ के चपेट में आने से सबसे से ज्यादा परेशानी पशु पालकों को चारा की होती है। पशुपालन पर निर्भर किसान कर्ज लेकर किसी तरह पशु चारा का इंतजाम करते हैं जो उनके आर्थिक स्थिति को तोड़कर रख देती है। ऐसे प्रशासन द्वारा पशु चारा का टेंडर करने सहित अन्य सुविधाओं की तैयारी करने का दावा किया जाता है लेकिन बाढ़ आने पर प्रशासनिक तैयारी की हरेक साल पोल खुलती रहती है। लोगों के हिसाब से ना तो तैयारी होती है और ना ही उन्हें बाढ़ से बचाव को लेकर सुविधा मिलती है। कुछ जगहों पर पशु पालक जान पर खेलकर खेतों में लगे डूबे हुए फसलों को लाकर पशुओं की जान बचाने का कार्य करते है।

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