बड़हिया का रसगुल्ला: परंपरा, परिश्रम और प्रगति का प्रतीक
बड़हिया का रसगुल्ला : परंपरा, परिश्रम और प्रगति का प्रतीक

बड़हिया, एक संवाददाता। लखीसराय जिला का बड़हिया क्षेत्र न सिर्फ अपनी ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। बल्कि यह रसगुल्ले के उद्योग के रूप में भी अपनी अलग पहचान बना चुका है। दलहन उत्पादन के लिए विख्यात इस क्षेत्र को दाल का कटोरा कहा जाता है। साथ ही रसगुल्ले के कारण भी बड़हिया एक विशिष्ट मिठाई केंद्र के रूप में उभर रहा है। बड़हिया में मिठाई कारोबार की परंपरा सिर्फ स्वाद तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था, रोजगार और सामाजिक ताने बाने का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां के मुख्य सड़कों पर मौजूद दर्जनों मिठाई दुकानों में रोजाना सैकड़ों क्विंटल रसगुल्ले तैयार होते हैं।
ये रसगुल्ले कम कीमत में उच्च गुणवत्ता के कारण स्थानीय उपभोक्ताओं के साथ साथ पड़ोसी राज्य झारखंड व उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी बड़ी मात्रा में भेजे जाते हैं। इस उद्योग की नींव बड़हिया क्षेत्र में दूध की पर्याप्त उपलब्धता पर टिकी है। एक दशक पूर्व तक इस क्षेत्र को मिनी डेनमार्क के नाम से जाना जाता था। घर घर पशुपालन और बड़े पैमाने पर दूध का उत्पादन होता था। हालांकि अब पशुपालन में कुछ गिरावट आई है। फिर भी नगर समेत खुटहा, पिपरिया और जैतपुर जैसे दियारा क्षेत्रों से प्रतिदिन हजारों लीटर दूध का उत्पादन जारी है। इस दूध को बाजार तक पहुंचाने का कार्य मुख्यतः गोप समुदाय के लोग करते हैं। जिनकी आजीविका इसी व्यवसाय से जुड़ी है। बड़हिया के मिठाई दुकानों में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं। जो स्थानीय होने के साथ आसपास के जिलों से भी आते हैं। ये मजदूर दैनिक मजदूरी पर कार्य करते हैं। जिससे उन्हें नियमित आय का स्रोत मिलता है। शादी विवाह और अन्य मांगलिक अवसरों पर रसगुल्ले की मांग अत्यधिक बढ़ जाती है। दुकानदारों के अनुसार कभी कभी मांग पूरी करने के लिए तय मजदूरों से अधिक मजदूरों की आवश्यकता पड़ जाती है। यदि समय पर मजदूर उपलब्ध नहीं हो पाते तो न सिर्फ व्यापार प्रभावित होता है, बल्कि बड़ी मात्रा में दूध भी बर्बाद होने का भय रहता है। बीते कोविड काल के दौरान से कई ट्रेनों का बड़हिया रेलवे स्टेशन पर ठहराव बंद हो गया। जिसका प्रतिकूल असर मिठाई व्यवसाय पर पड़ा है। कई दुकानदारों ने व्यापारिक दृष्टिकोण से अपनी दुकानों को बड़हिया के आसपास स्थित अन्य स्टेशनों पर स्थानांतरित कर लिया है। जिससे स्थानीय बाजार को भी नुकसान हुआ है। बड़हिया में अब सिर्फ रसगुल्ला ही नहीं, बल्कि छेना का भी बड़ा व्यापार शुरू हो गया है। दर्जन भर भट्ठियों से सैकड़ों क्विंटल छेना रोजाना सड़क और रेल मार्ग से बिहार के अन्य जिलों और दूसरे राज्यों तक पहुंचाया जाता है। इस नए व्यापार ने भी सैकड़ों लोगों को रोजगार प्रदान किया है। बड़हिया के रसगुल्ला को एक औद्योगिक पहचान देने के लिए जिओ टैग की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इससे न केवल इस क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी, बल्कि स्थानीय उत्पादकों को भी अधिक लाभ मिलेगा। ज्ञात हो कि ग्राहक बड़हिया के रसगुल्ले को न केवल स्वाद के लिए पसंद करते हैं। बल्कि इसे अपने मांगलिक आयोजनों का भी हिस्सा बनाते हैं। दशकों से लोग शादी विवाह, भोज और अन्य उत्सवों के लिए यहां से रसगुल्ला ले जाते हैं। जिसके लिए निर्धारित तिथि से पहले आकर ऑर्डर देना, फिर समय पर मिठाई प्राप्त करना अब एक परंपरा बन चुकी है।बड़हिया का रसगुल्ला उद्योग सिर्फ एक मिठाई व्यवसाय नहीं है। बल्कि यह हजारों परिवारों की जीविका, स्थानीय पहचान और सांस्कृतिक समृद्धि का भी प्रतीक है। बोले जिम्मेदार जीआई टैग को लेकर बीते दिनों क्षेत्र के बेहतर उत्पाद की सूची मांगी गई थी। जिसमें बड़हिया के रसगुल्ला का नाम भेजा गया है। संबंधित विभाग के ऊपरी स्तर पर इसे शामिल किए जाने की तैयारी प्रक्रियाधीन है। इस दिशा में पुनः वरीय पदाधिकारी द्वारा जानकारी अवगत नहीं कराया गया है। जैसा दिशा निर्देश मिलेगा उस अनुसार आगे किया जाएगा। निश्चित ही रसगुल्ला बड़हिया के लिए एक बेहतर उद्योग और उत्पाद है। उपेंद्र तिवारी जिला उद्योग विस्तार पदाधिकारी, लखीसराय। 01. व्यापार में विश्वसनीयता बहुत जरूरी है। जिसका बखूबी ध्यान रखा जाता है। न सिर्फ स्वाद और मिठास बल्कि स्वच्छता भी हमारी प्रथम प्राथमिकता है। रसगुल्ला के इस कच्चे व्यापार में चुनौती है, परंतु इसने मुझे और मेरे प्रतिष्ठान को पहचान देने का काम किया है। अमित कुमार, दुकानदार 02. हमारे दादाजी ने ये दुकान शुरू की थी। आज चौथी पीढ़ी इसे चला रही है। मुनाफा भले कम हो, लेकिन पहचान और संतोष बहुत मिलता है। ग्राहक दूर दूर से आते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। बड़हिया का रसगुल्ला अब नाम बन चुका है। रितेश गुप्ता, दुकानदार 03. मैंने पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश की लेकिन फिर यही व्यवसाय अपनाया। रसगुल्ले की डिमांड ने रोजगार का जरिया बना दिया। शादी विवाह में ऑर्डर की भरमार रहती है। अगर जीआई टैग मिले तो और फायदा होगा। बहादुर कुमार, दुकानदार 04. सुबह छह बजे से काम पर लग जाता हूं। रसगुल्ले के गोले बनाना, चीनी की चाशनी तैयार करना, ये सब सीख लिया है। दिन की मजदूरी से घर चलता है। यही सहारा है। त्योहारी सीजन में काम ज्यादा होने पर कमाई भी ठीक होती है। मुरारी कुमार, मजदूर 05. दूसरे जिले से आकर यहां काम करता हूं। रोज 300-400 रुपये मिलते हैं। काम मेहनत का है लेकिन यहां सम्मान भी है। कई बार मजदूर की कमी पड़ जाती है। तब दो दो शिफ्ट करनी पड़ती है। पर बड़हिया हमें रोजी देता है। अशोक कुमार, मजदूर 06. हम रोज़ाना 200 लीटर दूध पहुंचाते हैं। बड़हिया का बाजार ही हमारी आजीविका है। जितना ज्यादा रसगुल्ला बनता है। उतनी ज्यादा हमारी आमदनी होती है। पशुपालन ही हमारा जीवन है। जिसे मिठाई उद्योग संजीवनी देता है। दिलीप यादव, दुग्ध उत्पादक 07. पशुपालन हमारे खेतों जितना जरूरी है। दूध का अच्छा दाम मिल जाता है। दुकानदार हमसे सीधे दूध लेते हैं, इसमें कोई बिचौलिया नहीं होता। अगर सरकारी सहायता मिले तो हम और भी उत्पादन बढ़ा सकते हैं। कमलेश कुमार, पशुपालक 08. हर शादी विवाह के पहले हम बड़हिया से रसगुल्ला मंगवाते हैं। यहां का स्वाद अनोखा है। दशकों से हमारे घरों की मिठास यही रसगुल्ला है। ऑर्डर पहले दे देते हैं और तय समय पर मिठाई मिल जाती है। सुधीर महतो, ग्राहक 09. मैं हर दो महीने में बड़हिया आता हूं मिठाई लेने। यहां की मिठाई में एक अलग देसीपन है। जो शहरों में नहीं मिलता है। स्पंजी रसगुल्ला तो विशेष पसंद है। रेट भी ठीक है और स्वाद भी गजब की होती है। अमन कुमार, ग्राहक 10. महाजन से चीनी, कोयला उधार मिलता है और फिर हम हफ्ते-दस दिन में चुका देते हैं। यही सहयोग हमें व्यापार में टिकाए हुए है। हम छोटे दुकानदार हैं, लेकिन मेहनत कर अपने कारोबार को बड़ा करने का सपना देखते हैं। राजेश गुप्ता, दुकानदार 11. बड़हिया का रसगुल्ला अब केवल मिठाई नहीं, एक सामूहिक आजीविका का स्रोत बन गया है। दुकानदारों से अपील होगी कि स्थानीय पशुपालक किसानों को प्राथमिकता दें। सरकार पहल करे, तो यहां के हजारों लोगों का भविष्य और भी उज्जवल हो सकता है। मनोरंजन कुमार, समाजसेवी 12. यह मिठाई कारोबार ही हम मजदूरों का जीविकोपार्जन है। जिससे जुड़कर हम जैसे सैकड़ो परिवार का चूल्हा जलता है। अन्य दिनों में सामान्य जबकि लग्न के दिनों में काम की अधिकता होती है। दुकान के साथ ही हम लोग विभिन्न आयोजनों में जाकर भी मिठाई बनाते हैं। पिंटू कुमार, कारीगर
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