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अंतिम चरण में तीन दिवसीय रास महोत्सव की तैयारी

ठाकुरगंज के चुरली पंचायत में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर तीन दिवसीय रास महोत्सव की तैयारी पूरी हो चुकी है। शुक्रवार को राधा कृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर महोत्सव की शुरुआत होगी। इस अवसर पर महिलाएं पूजा...

Newswrap हिन्दुस्तान, किशनगंजThu, 14 Nov 2024 01:05 AM
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ठाकुरगंज, एक संवाददाता। प्रखंड में चुरली पंचायत स्थित नन्हा झा के बगान में कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर आयोजित होने वाला तीन दिवसीय रास महोत्सव की तैयारी लगभग पूरी हो गयी है। शुक्रवार को राधा कृष्ण की प्रतिमा को रास पर स्थापित कर महोत्सव का शुभारंभ होगा। मूर्तिकार द्वारा प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जा रहा है और भव्य रूप से मंदिर परिसर से लेकर पूजा पंडालों को सजाने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। कार्तिक पूर्णिमा का बहुत बड़ा महत्व है। इस मौके पर मुख्य रूप से महिलाएं पूरे कार्तिक मास सुबह स्नान कर आँवला के पेड़ की पूजा कर दिया जलाती हैं और कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद पूजा अर्चना किया जाता है। सीमावर्ती इलाकों प्रखंड के झाला व गलगलिया थाना क्षेत्र के गलगलिया गच्छ में इस मौके पर रास महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमे आठ जोड़ा राधा कृष्ण की प्रतिमा बनाकर उन्हें रास पर स्थापित किया जाता है। इसके अलावे बजरंगबली, चानेश्वरी माता के साथ उनकी चार बहने, गौर निताई व बड़ो बूढ़ी माता की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना कार्तिक पूर्णिमा की शाम को आरंभ होता है। क़ुर्लिकोट थाना क्षेत्र अंतर्गत झाला गांव में आयोजित होने वाले रास महोत्सव आयोजन कमिटी के नंद कुमार झा ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण पूजा के साथ अनुष्ठान का आगाज होता है। इसके बाद 48 घंटे का अष्टयाम संकीर्तन शुरू होता है। जिसमे बंगाल के कलाकार के अलावे नेपाल के भी कीर्तन मंडली पहुंचते हैं। इस दौरान भक्तों का मंदिर परिसर में तांता लगा रहता है। उन्होंने बताया कि इस स्थान पर 100 वर्षो से भी अधिक समय से पूजा होती आ रही है। पूर्व में यहां के गंगई समाज द्वारा पूजा किया जाता था। इस पूजा को उनके द्वारा बरक़रार रखते हुए उनके द्वारा बीते 50 वर्षो से रास महोत्सव मनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस महोत्सव की विशेषता है कि प्रखंड के चपाती गांव के मूर्तिकार मंदिर आकर यही पर सभी प्रतिमा बनाते हैं। यहां के भगवान की शक्ति को देखकर ही मूर्तिकार से लेकर प्रखंड, बंगाल व नेपाल के भक्तजन यहां पहुंचते हैं।

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