शहर का ताल-तलैया कूड़े में तब्दील
नदियां ही नहीं शहर का ताल-तलैया भी कूड़े से पटा है। रेलवे का ताल-तलैया हो या नगर निगम क्षेत्र के सिविल क्षेत्रों का सभी ताल तलैया में नाले का गंदा व प्रदूषित पानी का भंडार केंद्र बना दिया गया है। शहर...
नदियां ही नहीं शहर का ताल-तलैया भी कूड़े से पटा है। रेलवे का ताल-तलैया हो या नगर निगम क्षेत्र के सिविल क्षेत्रों का सभी ताल तलैया में नाले का गंदा व प्रदूषित पानी का भंडार केंद्र बना दिया गया है। शहर के रेलवे स्टेशन के पास करीब छह एकड़ में फैला रेलवे का ताल तलैया की हालत बदतर है।
ललियाही स्थित ताल तलैया का यही हाल है। 1990 के दशक में यहां पर तीन दिशा में छठ घाट बनाकर पूजा पाठ करते थे। आज कूड़ेदान और गंदा पानी का संग्रह केंद्र बना हुआ है। गंदगी व प्रदूषित जल के कारण अब छठ पूजा भी लोग नहीं करते हैं। छिंटाबाड़ी, तेजा टोला के पास, बीएमपी घाट में स्थित ताल तलैया का हाल भी ठीक नहीं है।
हालांकि, बीएमपी के पास स्थित नदीनुमा तालाब के एक किनारे पर सीमेंट का छठ घाट बना हुआ है, लेकिन दूसरे किनारे व अन्य हिस्सों में कू ड़ा व गंदा पानी बहाया जाता है। केवल छठ पूजा के समय ही इसकी समुचित साफ-सफाई होती है। कारी कोसी नदी की हालात भी केवल छठ पूजा के समय ही स्वच्छ रहते हंै। इसके बाद इसकी साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
पहले होता था नौका विहार अब जलाशय हो गया बेकार: एक समय इस तालाब से रेलवे को राजस्व की प्राप्ति होती थी। तालाब के चारों ओर पार्क बना हुआ था। सुबह व शाम रेलवे के साथ-साथ आम लोग भी नौका विहार करते थे। आज कूड़े, जलकुंभी और नाला के गंदा पानी से लबालब है। 1990 के दशक में रेलवे के जलाशय में नौका विहार होता था। जलकुंभी और अन्य जलीय पौधा का चादर पूरे जलाशय पर बिछा हुआ है। ऐसा लगता है कि मानो कोई मैदान हो, लेकिन इसकी देख रेख सही तरीके से नहीं होने के कारण नगर निगम और रेलवे दोनों की साख पर बट्टा लग रहा है। साथ ही असपास के लोग दुर्गंध के बीच जल प्रदूषण ही नहीं बल्कि प्रदूषित हवा के बीच जीवन गुजारने को विवश है।
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