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आजादी के दीवाने: नटाय के सीने पर गरजी थी ब्रितानी बंदूकें

शहीदों के मजार पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बांकी निंशा होगा। अबतक यह पंक्तियां इतिहास के पन्नों पर ही सिमट कर रह गया...

Newswrap हिन्दुस्तान, कटिहारSat, 15 Aug 2020 03:44 AM
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शहीदों के मजार पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बांकी निंशा होगा। अबतक यह पंक्तियां इतिहास के पन्नों पर ही सिमट कर रह गया है।

देश के लिए मर मिट कर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जान की बाजी लगा देने वाले लोगों को भूलते जा रहे है। सिर्फ औपचारिकता निभाई जाती है। स्वतंत्रता संग्राम में समेली का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 9 से 12 अगस्त तक 1942 का वह दिन जब देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के नारे गूंज रहे थे। भारत माता के सच्चे सपूत ब्रितानीयों को भारत छोड़ने के लिए आंदोलन तेज किए। चिंगारी भड़क कर ज्वालामुखी का रूप ले लिया। आजादी के दीवानों ने समेली प्रखंड के चकला मौला नगर के 52वर्षीय नटाय परिहार अपने साथियों के साथ मिलकर देवीपुर के समीप कुरसेला में रेलवे पटरी उखाड़ने में अपने सीने पर गोली खाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने देश की हिफाजत के लिए छह साथियों के साथ शहीद हो गये। स्मारक कब पूरा होगा यह भविष्य के गर्त में है। शहीद नटाय का जन्म चकला मौलानगर गांव के निर्धन बनेश्वर तियर के घर छह फरवरी 1890 में हुआ था। इसी मनोहरी धरा ने अपने महान विभूतियों में यशस्वी उपान्यास कर अपून साहित्य रत्न, ब्रितानी सरकार की गोली अपने सीने पर खाने वाले जागेश्वर महलदार, मजदूरों की मसीहा, चमरू सहनी, मैला आंचनल के चरित्र नायक स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार, साहित्म्य साधार प्रोफेसर जयनारायण मंडल आदि को जन्म दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन के नारे थे प्रेरित

गरीबी के कारण 12 आना मजदूरी पर जमींदार सरदार कुलदीप सिंह के यहां सिपाही बनकर जीविकोपार्जन किया। देवीपुर के समीप अंग्रेजों की कोठी थी। क्षेत्र के लोगों पर जुल्मों सितम दिनचर्या सी बन गई थी। बैलगाड़ी वालों से जबरन माल ढ़ुलवाना,बहू बेटियों की अस्मत के साथ खिलवाड़, जबरन नील की खेती में मजदूरों को प्रताड़ित कर ले जाना, कोड़े खाकर भी किसी ने बगावत की जरूरत नहीं की। अंतत: गुस्सा ज्वालामुखी का रूप ले चुका था। आजादी का सपना संजोए थे। अंग्रेजों का आंदोलन भारत छोड़ा का नारा दिया ।

नटाय के साथ छह अन्य साथी हुए थे शहीद

12 अगस्त को नटाय परिहार अपने सार्थियों के साथ केले का थंब का नाव बनाकर रेलवे पटरी उखाड़ने लगे। अंग्रेेज देवीपुर कोठी से आकर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया । जिससे सात लोगों ने अपनी शहादत दी थी। उसके चार साथी रमचू, धधुरी, जग्गू, रामजी शहीद हो गए। घायल अव्सथा में स्वतंत्रता सेनानी व वैद्य नक्षत्र मालाकार ने इनका इलाज किया। गरीबी और आर्थिक तंगी के कारण कई दिनों तक अन्न, जल, दवा के अभाव में अपना दम तोड़ दिया। सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली। सरहद पर कल रात सुना है। कुछ ख्वाबों का कत्ल हुआ है। यह शब्द हमेशा नटाय गुनगुनाते अपने साथ शहीदों के साथ अपनी मातृभूमि के रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दी।

शहीद नटाय के माथे पर गोली लगी।

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