Hindi Newsबिहार न्यूज़जमुईTilkut Market Flourishes in Jhajha A Local Industry Thrives

झाझा में तिलकुट का बाजार सजने लगा है

झाझा में तिलकुट का बाजार सजने लगा है झाझा में तिलकुट का बाजार सजने लगा हैझाझा में तिलकुट का बाजार सजने लगा है

Newswrap हिन्दुस्तान, जमुईTue, 19 Nov 2024 12:40 AM
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झाझा । नगर संवाददाता झाझा में तिलकुट का बाजार सजने लगा है। ठंड की शुरुआत से ही झाझा में तिलकुट के काउंटर खुल जाते हैं। स्थानीय स्तर पर लोगों को साधन मिलता है। झाझा के तिलकुट झाझा नगर के अलावे दूसरे नगरों एवं राज्यों की बाजारों का रुख करते हैं। दूसरे नगरों के थोक दुकानदार वाहनों से तिलकुट लेकर झाझा से जाते हैं और अपने बाजारों में इसे बेचते हैं। तिलकुट उत्पादन झाझा मे एक लघु उद्योग अथवा घरेलू उद्योग का रूप ले चुका है। झाझा में लगभग 3 महीनों तक तिलकुट निर्माण में काफी संख्या में दुकानदार जुटे रहते हैं। मालूम हो कि झाझा की प्रसिद्ध तिलकुट बिहार के अन्य जिलों के अलावे पश्चिम बंगाल के बाजारों का भी रुख करती है। चीनी/ गुड़ तिलकुट 200 से 240 तिलकुट तथा खोवा तिलकुट 350 से 400 किलो के दर से बेचे जाते हैं। एक आकलन के अनुसार तिलकुट निर्माण में लगे मजदूरों को लगभग 10 हजार कार्य दिवस उपलब्ध होते हैं। झाझा बाजार के अलावे जमुई सिकंदरा खैरा चकाई बामदह तेलवा सिमुलतला बटिया दलसिंहसराय समस्तीपुर आसनसोल मधुपुर जैसे बाजारों से थोक खरीदारों की मांग रहती है। थोक में झाझा बाजार में तिलकुट 160 प्रति किलो के हिसाब से मिल जाते हैं। इस वजह से थोक व्यापारियों का झाझा की ओर झुकाव बना हुआ रहता है। तिलकुट हेतु तील एवं गुड़ अथवा चीनी के पाग तैयार करते रहने से तिलकुट की खुशबू नुमा माहौल बाजार से गुजरने वाले राहगीरों के अलावे वाहन चालकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रही है। बकौल दुकानदारों कन्हैया हलवाई सुरेश हलवाई नरेश हलवाई आकाश उर्फ चीकू हलवाई रिंकु गुप्ता राहुल अग्रहरि सूरज गुप्ता रवि मोदी गोपी गुप्ता विजय गुप्ता आदि, कोरोना काल में उन लोगों का तिलकुट का बाजार अन्य वर्षो की तुलना में बहुत कम पकड़ पाया था परंतु इस वर्ष के मकर संक्त्रांति तक एवं उसके बाद तिलकुट निर्माण में लगे ऐसे कारोबारियों को अच्छी बिक्त्री की उम्मीद है। तिलकुट निर्माण में लगे कारोबारी इसी आस में जहां-तहां से उधार लेकर भी अपने यहां अच्छे एवं गुणवत्तापूर्ण तिलकुट के निर्माण करने एवं अच्छे स्टॉक के साथ बिक्री करने का मन बनाए हुए हैं और इसी दिशा में अपने सहयोगी मजदूरों के साथ खुद भी निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। ऐसे निर्माताओं के अलावे मजदूरों का भी कहना है कि हम लोग सुबह से लेकर रात तक तिलकुट निर्माण कार्य में लगे रहते हैं और इसी दौरान तिलकुट की बिक्री भी जारी रहती है। इन कारोबारियों ने बताया कि रेलवे से पश्चिम बंगाल के विभिन्न शहरों के अलावा दिल्ली मुंबई आदि शहरों की यात्रा करने वाले या झाझा से अपने रिश्तेदारों के यहां बाहर जाने वाले यात्रियों के द्वारा भी संदेश के रूप में झाझा की तिलकुट ले जाई जाती रही है और इस बार भी उम्मीद है कि अच्छी मात्रा में तिलकुट को संदेश के रूप में ले जाया जा सकेगा। बताया कि उत्तर बिहार के जिलों यथा समस्तीपुर मुजफ्फरपुर दरभंगा के अलावे पटना जिला आदि के अंतर्गत आने वाले शहरों में झाझा से थोक भाव में चार पहिया वाहनों पर तिलकुट लादकर बाहर के कारोबारी झाझा से खरीद कर ले जाते हैं और अपने-अपने शहरों में अवस्थित दुकानों में झाझा की तिलकुट बतला कर अच्छे दामों में बिक्त्री करते हैं। इस प्रकार से जहां बाहर के कारोबारियों के अलावे उनके वाहन चालकों को रोजगार के अवसर पैदा होते हैं तो वही झाझा के भी तिलकुट निर्माता सैकड़ों मजदूरों के लिए 3 माह से अधिक समय के लिए रोजी-रोटी का साधन बनते हैं। दुकानदारों ने बताया कि मजदूरों को 600 से अधिक प्रतिदिन की मजदूरी देनी पड़ती है इसके अलावा तीनों शाम का खाना चाय आदि देना पड़ता है। बताया कि तील की कीमत में बढ़ोतरी होने पर वे लोग तिलकुट की कीमत में बढ़ोतरी करते हैं। आकलन बतलाते हैं कि नवंबर मध्य के उपरांत तिलकुट निर्माण प्रारंभ होता है जो फरवरी माह तक चलता है। इस दौरान तिलकुट निर्माण के लघुतम रूप में उद्योग में लगे दर्जनों मजदूरों को लगभग 10 हजार कार्य दिवस मजदूरी के लिए सुलभ हो जाते हैं।

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