4 सितंबर,23 की तारीख ने दिया था झाझा की श्री कृष्ण गोशाला को ‘पुनर्जीवन
4 सितंबर,23 की तारीख ने दिया था झाझा की श्री कृष्ण गोशाला को ‘पुनर्जीवन 4 सितंबर,23 की तारीख ने दिया था झाझा की श्री कृष्ण गोशाला को ‘पुनर्जीवन
झाझा, निज संवाददाता तारीख 04 सितंबर,2023.....इस तारीख को न झाझा की श्रीकृष्ण गोशाला समिति भूली है, न ही स्थानीय गो भक्त व गो प्रेमी। यही वह तारीख है जिसने लगभग गुमनामी के साए में समा चूकी झाझा की नामचीन गोशाला के ‘पुनर्जीवन की पटकथा लिखी थी। बीते करीब 26 सालों से पूरी तरह गो-विहीनता के आलम की वजह से बस ‘इतिहास बनकर रह जाने वाली उक्त नामचीन गोशाला का वीरान व सूना पड़ा आंगन 5 सितंबर, 23 के तड़के लगभग ब्रह्ममुहूर्त्त के वक्त पूरी तरह गोवंश से गुलजार हो उठा था। ढ़ाई दशक से अधिक वक्त से जिस गोशाला परिसर से गऊओंे रंभाने की आवाज सुनने को झाझा के गो प्रेमी तरस कर रह गए थे उसी गोशाला के हर हिस्से,हर कोने से आज गोवंश के रंभाने का शोर ही गूंजा सुनाई पड़ रहा था। और....उक्त गूंज से तमाम गो प्रेमियों के बीच उत्साह व उमंग की लहर दौड़ गई थी। बीते 26 सालों तक गोपाष्टमी के पावन दिन गो माता की पूजा व अभिनंदन की रश्म निभाई को गोशाला में एक अदद गाय तक भी नसीब नहीं वाली उक्त गोशाला गोवंश से गुलजार हो उठा, इस बात पर सहसा किसी को यकीन नहीं हो रहा था। ऐसे में सच जानने व उसे अपनी आंखों से निहारने को ले 5 सितंबर के पूरे दिन लोगों का गोशाला में तांता लगा रहा था। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि बीते 26 सालों के पूर्व गोशाला की स्थिति ऐसी नहीं थी। अपितु,गोवंश के मामले में काफी समृद्ध हुआ करती थी और गोशाला का पूरा परिसर हरियाणा,पंजाब आदि प्रदेशों की उन्नत व उम्दा नस्ल की गायों से भरा-पटा रहा करते थे। अपनी उक्त समृद्धि की वजह से यह तब के एकीकृत बिहार की टॉप-10 गोशालाओं में शुमार हुआ करती थी।
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