Hindi NewsBihar NewsHajipur NewsMalik Community s Traditional Craft Struggles Amid Modernization and Inflation

आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा मलिक समाज के हाथों का हुनर

मलिक समाज के कारीगर आधुनिकता और महंगाई के कारण परेशान हैं। शादी और पूजा जैसे अवसरों पर सूप और दउरा की मांग कम हो रही है। बांस से बने इन उत्पादों की जगह धातु के सामान ने ले ली है। समाज के लोग सरकारी...

Newswrap हिन्दुस्तान, हाजीपुरFri, 21 Feb 2025 05:54 PM
share Share
Follow Us on
आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा मलिक समाज के हाथों का हुनर

बोले हाजीपुर : आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा मलिक समाज के हाथों का हुनर दउरा, सूप और हिंदू रीति रिवाज में वैसे तो हर समाज के लोगों को महत्व का प्रावधान है, लेकिन विवाह जैसे अनुष्ठान को संपन्न कराने में मलिक समाज के डाला और दउरा की भूमिका अनोखी होती है। इसके बिना अधूरी सी मिठास की संभावना वाली बाते हो जायेगी, इस पेशे को मुख्य व्यवसाय के रूप में देख रहे मलिक समाज की भी कई समस्याएं है। उनकी समस्या को लेकर अभी तक कोई भी धरातल पर आवाज नहीं उठाया है। मलिक समाज के लोगों ने बोले हाजीपुर अभियान के दौरान कहा कि किसी भी पदाधिकारी से अश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिल पाया है। जनप्रतिनिधि भी चुनाव के समय आते हैं, खोखले वादे करके चले जाते हैं। महंगाई की मार कुटीर उद्योगों पर पड़ रही है, छोटे-छोटे धंधे प्रभावित हो रहे हैं... प्रस्तुत है रिपोर्ट।

जिले के मलिस समाज के सैकड़ों लोगों के हाथों को काम दिलाने वाले कुटीर उद्योग सरकारी उपेक्षा, बढ़ती महंगाई और आधुनिकता की दौड़ के बीच दम तोड़ रहा है। शादी-व्याह के मौसम और महापर्व छठ को छोड़ दें तो मल्लिक समाज के द्वारा बनाए गए सूप, दउरा, डाला की पूछ नहीं है। महापर्व पर भी आधुनिकता की छाप अब दिखने लगी है। धातु के सूप और दउरा बाजार में आ जाने से पुरानी संस्कृति को लोग भूल रहे हैं और खामियाजा भुगत रहा है मल्लिक समाज। समाज के पुरुषों और महिलाओं द्वारा बनाए गए बांस के सूप का महापर्व हो या फिर शादी-व्याह खास महत्व है। इसके बिना पूजा की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्तमान परिवेश में लगातार आर्थिक रूप से बेवश और लाचार हो रहे हैं दउरा और सूप बनाने वाले कारीगर। इनकी संख्या पूरे जिले में सामान्य होने के बावजूद इनके लिए आवाज उठाने का काम किसी भी सामाजिक संगठन या राजनीतिक संगठन ने नहीं किया है। कहते हैं कि पूजा-पाठ, शादी-विवाह व अन्य घरेलू कार्य में बांस से बने सूप, दउरा व अन्य सामान का विशेष महत्व होता है। आमतौर पर दुकान और बाजार के बीच मिलने वाले बांस के ये सामान दिखने मे बेहद सामान्य लगते हैं, लेकिन इसके बनाने में कारीगरों की घटों की मेहनत छिपी होती है।

पीतल के सूप का प्रचलन तेज हुआ है

वैशाली में इस पेशे से गरीब, महादलित परिवार के लोग जुड़े हुए हैं। अब परंपरागत सूप व दउरा बनाने का व्यवसाय मंदा होता जा रहा है। कहते हैं कि धंधे में पहले जैसी बात नहीं रही, बाजार में इसके बदले आधुनिक सामान आने से इसकी मांग घटती जा रही है। पहले छठ पर बांस से बने सूप व दउरा का ही प्रयोग किया जाता था। अब पीतल के सूप का प्रचलन तेज होता जा रहा है। महादलित समुदाय के कई परिवार बांस से सूप, दउरा व अन्य सामान के निर्माण के पेशे से जुड़े हैं। कहते हैं कि सूप व दउरा बनाने में पूरे परिवार की मेहनत लगी होती है।

मनपसंद बांस की लगती है कीमत अधिक

आधुनिक समय में बाजार में परिवार के पुरुष सदस्य गांव-गांव घूमकर पहले मनपसंद बांस की तलाश करते हैं। फिर उसे 90 से 100 रुपये की दर से खरीदकर घर तक लाते हैं। बांस को फाड़ने, छीलने, सुखाने फिर उसे पानी में फुलाने व उससे सूप व दउरा बनाने के लिए पट्टी तैयार करने में कई दिनों की मेहनत छिपी होती है। इसके बाद घर की महिलाएं घटों की मेहनत के बाद हाथ से बुनकर इसे तैयार करती हैं। तब बाजार में जाकर यह 100 से 200 रुपए की बीच बिकता है। औसत एक दिन में बांस से मुश्किल से दो सूप या दउरा तैयार हो पाता है। बताया कि एक सप्ताह में पूरा परिवार मिलकर 15 से 16 सूप या दउरा ही बना पाता है।

खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा समाज

पूरा परिवार इस पारंपरिक पुश्तैनी पेशे पर निर्भर है। वर्षों से बांस निर्मित सूप, दउरा, डाला, डलिया आदि बनाकर जीविकोपार्जन करने वाला समाज निचले पायदान पर खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। परिवार के भरण-पोषण के अलावा उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी बाधित हो रही है। सरकारी योजनाएं इनकी बस्तियों की दहलीज तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं। कई ऐसे परिवार हैं जिनको आज तक इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिला है। परेशानी का सामना करने वाले मलिक समाज के लोग सिर्फ राशन समय पर पाते हैं। इसके अलावा अभी तक किसी तरह के सरकारी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिल सका है। सड़क किनारे झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर समाज के लोगों के पास सिर ढकने के लिए कब छत नसीब होगी, यह तो भगवान जानें। कहते हैं कि गर्मी, जाड़ा और वर्षा इसी झपड़ी में काट लेते हैं। रीना देवी कहती हैं कि हम लोगों में ही कई लोग इतने गरीब हैं कि खाने तक के लाले पड़े रहते हैं। इस बढ़ रही मंहगाई के दौर में तो जरूरत का खर्च पूरा कैसे कर पायेंगे समझ नहीं आता। पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत हमलोगों को दिगभ्रमित करने का काम भी किया जाता है, जैसे रुपए की मासिक किस्त को लेकर भरने में ये अक्षमता जाहिर कर रहे हैं। किसी प्रकार के लाभ लेने के लिए भी सटीक सूचना के अभाव में उचित लाभ नहीं मिल पाता है।

राजू कहते हैं कि वारिश के दिनों में झोपड़ी जलमग्न हो जाती है। चारों तरफ से पानी झोपड़ी में प्रवेश कर जाता है। एक तरफ महिला कारीगर मुसमात रीना देवी कहती हैं कि घर में हमारी चार बच्चियां हैं जिनका भरण पोषण के साथ ही विवाह शादी की बात सोचकर चिंता बनी रहती है। हमारे पति के देहवसान के बाद कोई नहीं है देखने वाला। आर्थिक रूप से परिवार को चलाने के लिए बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही विधवा पेंशन के तहत महज 400 रुपए मिलते हैं, जिससे घर चलाने के लिए जूझना पड़ रहा है।

हमारी भी सुनें...

1. दउरा सूप बनाने में मेहनताता अब पहले जैसा नहीं मिलता। हमें विधवा पेंशन के अलावा किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिल पाता है। इससे परेशानियों का सामना करना पड़ता है परिवार में चार बेटिया हैं, इनकी शादी करने की चिंता सता रही है। कैसे विवाह कर पायेंगे, इस मंहगाई के युग में।

- रीना देवी, कारीगर सूप, दउरा

2. अगर हम विकलांग हैं तो इसमें हमारा क्या कसूर है। हमें अभी तक किसी प्रकार का तीन पहिया या कोई अन्य उपकरण और वाहन नहीं मिल सका है। शरीर से अपाहिज को जो कुछ भी दिया जाता है, मुझे सरकार से नहीं मिला। इससे दैनिक अर्जन करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। मां कमाकर देखभाल करती है, आगे हमारा कौन सहारा बनेगा।

- किशन मलिक, दिव्यांग कारीगर दउरा व सूप

3. महिला कारीगर का कहना है कि हमलोग को पूरे वर्ष काम नहीं रहने से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन इस समस्या को लेकर कोई सुधि लेने वाला तक नहीं है। इससे घर परिवार चलाने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिले तो हमारा भविष्य संवर जाए।

- रीता मलिक, दउरा व सूप कारीगर

4. हमलोग समाज के वैसे पिछड़े वर्ग से आते हैं जहां आर्थिक रूप से असमानता के कारण समाजिक विकास की धारा के अनुकूल नहीं हो पाते है। जिससे हमारी सर्वांगीन विकास हो सके। शिक्षा व रोजी- रोजगार मिले तो हमारी पीढ़ी भी अपने अधिकार व कर्तव्य को समझकर ईमानदारी पूर्वक आगे बढ़ने के लिए प्रत्यन्नशील रहे।

- मनोज मलिक दउरा सूप कारीगर

5. हमलोग पढ़ी लिखी महिला होकर भी रोजगार के अवसर के अभाव में परेशान हैं। आगे बढ़ने में सामाजिक बाधाएं रास्ता रोकती हैं। समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। इसके साथ ही आर्थिक और मानसिक रूप से अपने बच्चों को सबल बनाने के लिए प्रयासरत रहने का काम करना है, भले कितनी भी सच्ची लगन से मेहनत करनी पड़े।

- अंजली देवी दउरा सूप कारीगर

6. दउरा-सूप युवा कारीगर का कहना है कि साल में बारह मास लगन नहीं होता है। हमलोगों की यही परेशानी है। मौसमी बेरोजगारी का प्रकोप अक्सर बना रहता है,इससे आगे बढ़ने के लिए तमाम संभावनाएं होने के बावजूद भी कुछ बेहतर कार्य करने के क्षेत्र में बाधाएं आने से परिणाम तक पहुंच पाने में परेशान हो जाते हैं।

- रूपेश मलिक दउरा सूप कारीगर

7. मंहगाई का दंश झेल रहे हैं। हमलोग दो वक्त के रोटी के आस में पैनिया पसारी का काम करना पड़ता है। यह काम भी केवल लगन भर ही चल पाता है इसके साथ ही हम विधवा होकर भी अपनी बेटी व बेटा को अभी तक समान भाव से पढ़ाई का अवसर दे रहे हैं। उन लोगों के लिए कभी अभाव का आलम आने नहीं दिए हैं आगे सब ईश्वर मालिक है।

- लक्ष्मी देवी दउरा सूप कारीगर

8. हमारी घर की महिलाएं किसी दूसरे के यहा खेत में काम करने नहीं जाती हैं। यही हमारा मुख्य पेशा है। इस क्षेत्र में किसी प्रकार का आर्थिक सहयोग नहीं मिलने से असमायिक कार्य के लिए हाथ में एकमुश्त रूपए नहीं रह पाता है जिसके कारण मन उदास भी रहता है। परिवार सही से चलाना चुनौतीपूर्ण है।

- सुनैना देवी दउरा- सूप कारीगर

9. बढ़ रही महंगाई में बच्चों के पालन पोषण से लेकर पढ़ाई, स्वास्थ्य व दवाई के लिए साथ ही बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक निर्भरता के क्षेत्र में चुनौती भरा संघर्ष रहता है इसको लेकर हमारी परेशानी और बढ़ जाती है पता नहीं कब जाकर हमारी यह समस्या हल हो पाएगी। हमारी समस्याएं आधुनिक युवक में कुछ ज्यादा बढ़ी हुई है।

- आशा देवी दउरा सूप कारीगर जफराबाद

10. हमारी समस्या जस के तस बनी रहती है। हमारी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। लगन होने पर डाला दउरा का काम चलता है, जिसके द्वारा किसी प्रकार से दाल रोटी का दाम निकल पाता है। खेत पथारी में मजदूरी करने वाले नहीं हैं। हम लोग बांस से बने उत्पाद जैसे दउरा व सूप का ही काम करेंगे जिसके माध्यम से अपना गुजर वसर करना होता है।

- जलिंदर मलिक दउरा सूप कारीगर

11. महंगा बांस खरीदकर बेरोजगारी के समय में डाला दउरा का काम करते हैं। ठीक से रहने के लिए छत का घर नसीब नहीं है। किसी प्रकार का सरकारी लाभ जैसे इंद्रिरा आवास, पीएम आवास योजना और विश्वकर्मा योजना के तहत मिलने वाली सहायता नहीं मिल पाई है। इस वजह से ओर परेशानी बढ़ जाती है हमलोगों का।

- रीना देवी दउरा सूप कारीगर जफराबाद

12. आधुनिकता की दौर में डाला दउरा के क्षेत्र में रंग बिरंगे रेडिमेड समान के आ जाने से हमलोग के लिए चुनौती का सबब बन गया है। एक तरफ महंगी बांस की खरीदारी विलुप्त होती मकोर बांस की खेत पथारी जिसके कारण काफी महंगी कीमत पर खरीद कर तब जाकर कई दिनों तक काम में लगे रहने के बाद दउरा सूप तैयार करते हैं।

- उमेश मलिक दउरा सूप कारीगर

13. दउरा सूप के बादशाह उम्र के दहलीज को इसी पेशा में पूरा समय देने वाले का कहना है भूमिहीन हैं। कोई स्थाई बंदोवस्त नहीं मिल रहा है। सुपली दउरा छठ पूजा के समय बेचकर व लगन के समय पिटारी का काम करके किसी तरह से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ किया जाता है। बीमारी के लिए लोन या कर्ज लेकर इलाज करवाते हैं।

- गणेश मलिक दउरा सूप कारीगर

14. हमलोगों को अस्थाई रूप से रहने के लिए किसी भी मौसम में परेशानियों से गुजरना पड़ता है। किसी भी मौसम में चैन नहीं है। गर्मी जाड़ा हो या वर्षा हमारा जीना मोहाल है। ना ही अपनी जमीन रहने के लिए होने से परेशानी से गुजरना पड़ता है इसके वजह से स्थाई घर द्वार के दृष्टिकोण से बंदोबस्त कर पाना मुश्किल हो जाता है। किसी प्रकार से असामी के रूप में रहने के लिए मजबूर हैं।

- रामवती देवी दउरा व सूप कारीगर

15. एक से एक हर क्वालिटी के बाजार में रेडीमेड उत्पाद के आ जाने से इस व्यवसाय के क्षेत्र में आर्थिक मंदी आ गई है। आश्रित होकर परिवार चलाना मुश्किल काम हो गया है। सदैव परेशानी से गुजरना पड़ता है। पहले वाली अब बात नहीं रहा लोग किसी तरह अभाव में अपना गुजर कर लेते थे अब हर हाथ में मोबाइल का युग है, जिसे रिचार्ज कराने के लिए ही सोचना पड़ेगा।

- चंदा देवी दउरा व सूप कारीगर

16. महुआ के लक्ष्मीपुर के रहने वाली दउरा व सूप की कारीगर किशन की मां का कहना है कि विकलांग सर्टिफिकेट में 40 फीसदी होने के बावजूद इन्हें किसी प्रकार के लाभ के तौर पर केवल ₹महिने का 400 रूपए ही मिल पाता है जिसके कारण परिवार के साथ साथ सभी लोगों की जिम्मेवारी इसका देखभाल करने के दृष्टिकोण से बढ़ जाता है। दिव्यांग होने की वजह से जमीन पर चलते-चलते गिर जाते हैं इन्हें सरकार द्वारा गाड़ी मुहैया कराई जाए तब जाकर हमारी समस्याएं कम हो पायेंगी।

- आशा देवी दउरा सूप कारीगर

17. घर में बच्ची एग्जाम दे रही है। एग्जाम दिलवाने के लिए किसी भी प्रकार का कोई सहारा नहीं है। हमारे अलावा हम अपना सारा समय अभी परीक्षा केंद्र पर केंद्रित करेंगे। हमारे पांच परिवारों का भरण पोषण करने के लिए आमदनी नहीं हो पाती है। परेशानियों से गुजरना पड़ता है।

- सुनिता देवी दउरा सूप कारीगर

18. महंगाई के समय में हिंग से हल्दी तक खरीद कर खाना पड़ता है। परेशानी की वजह यही है। हमारी आय खर्च के वनस्पति में बहुत कम है। इसके कारण कई कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है। इसको लेकर हमारे परिवार में आर्थिक रूप से परेशानी का सबब बना रहता है। किसी तरह की कोई आर्थिक मदद रोजी-रोजगार को लेकर भी नहीं मिल पाने से हाल बेहाल रहता है।

- राजदेव मलिक दउरा सूप कारीगर

19. हमारे परिवार में कमाने खाने वाले की संख्या में कमी होने से परेशानियों का सबब बना हुआ है। पीएम विश्वकर्मा के तहत किस्त भरने के लिए कहा जाता है जिसके लिए हमारे पास रुपए उपलब्ध नहीं होने से परेशानी का सामना करना पड़ता है। पति के गुजरने के बाद देखभाल करने वाला हमारे बच्चों का हमारे सिवा कोई नहीं है।

- रेणु देवी दउरा व सूप कारीगर

20. दीपक मलिक का कहना है कि वर्तमान समय में बेरोजगारी का महौल बना रहता है। हमलोग को किसी योजना के तहत कोई लाभ नहीं मिल पाने से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साल में कई महिना बेरोजगारी का दौर बना रहता है साथ ही काम के लिए अन्य प्रदेश भी जाना होता है लगता है अपने पुश्तैनी पेशा से जिंदगी चलाना मुश्किल है।

- दीपक मलिक दउरा व सूप कारीगर

सुझाव :

1. रोजी रोजगार की गारंटी हमलोग के लिए भी सुनिश्चित की जाए जिसके तहत हमारी समस्याएं का हल हो सके।

2. हमारे पास हेल्थकार्ड नहीं है। किसी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए।

3. दउरा सूप के क्षेत्र मौसमी बेरोजगारी की स्थिति को दूर करने के लिए कुछ सार्थक कदम उठाने की सरकार के स्तर पर जरूरत है।

4. रहने के लिए सरकार द्वारा स्थाई भूमि उपलब्ध कराने से सड़क किनारें रहने के लिए मजबूर होने से बचा जा सकता है।

5. हमलोग को भी सरकार के अन्य योजनाएं से जोड़ा जाना चाहिए तब अपने विलुप्त हो रहे पुश्तैनी पेशे को बचा पाएंगे।

परेशानियां..

1. हमारे लिए स्वास्थ्य संबंधी किसी तरह का बीमा नहीं होने से परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

2. तबीयत खराब होने पर व्याज पर कर्ज लेकर इलाज करवाना पड़ता है, या फिर सरकारी अस्पताल के भरोसे रहना पड़ता है।

3. सरकार हमलोग के लिए किसी प्रकार से रहने के लिए स्थाई बंदोवस्त तक नहीं कर पाई है जिससे परेशानियों से गुजरना पड़ता है।

4. पीएम विश्वकर्मा के तहत लाभ को लेकर पहले ही बिचौलियों द्वारा रूपए की मांग किया जाता है जिसको पाने से हम वंचित है।

5. हमारे पास अभीतक जमींन का कोई अपनी रसीद नहीं है जिससे अनेकों प्रकार के लाभ से वंचित रह जाते है।

प्रस्तुति:- विवेकानंद

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें