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गंगा नदी के किनारे पक्षियों की विविधता के लिए जिले के घाट क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। शरद ऋतु में साइबेरियन पक्षी यहाँ आते हैं। गंगा के प्रदूषण का मुख्य कारण जनसंख्या का बढ़ना और अपशिष्ट जल है। हमें नदी में...
जिले के बर्ड एक्सपर्ट एवं एशियन वॉटर बर्ड के कोऑर्डिनेटर बताते हैं कि गंगा नदी के किनारे पक्षियों की विविधता के लिए जिले के कई घाट क्षेत्र मशहूर हैं और गंगा नदी के किनारे कई तरह के पक्षी पाए जाते हैं। शरद ऋतू में साइबेरियन लगभग 20 तरह के पक्षी हज़ारों किलोमीटर दूर से गंगा नदी के किनारे आते हैं। ये गंगा की छोटी छोटी मछलियां खाते हैं और नदी किनारे रेत पर अंडे देते हैं। गंगा नदी के प्रदूषण के 70 प्रतिशत में नदी किनारे बसे शहर में तेजी से बढाती जनसंख्या से अपशिष्ट का नदी में आना है। नालों से बहने वाले अपशिष्ट जल को रोकने मोड़ने और उपचार करने की जरूरत है। हमें प्लास्टिक कि थैली, बोतल आदि को नदी में फेकने से बचना चाहिए । - डॉ सत्येन्द्र कुमार, एकेडेमिक एडवाइजर, स्कूल फॉर रिवर स्टडीज, आर्यभट नॉलेज यूनिवर्सिटी, पटना गंगा नदी की समस्याओं में मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले जाल, नावों और स्टीमर के प्रोपेलर भी जो डॉल्फ़िन सहित अन्य जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं और प्रोपेलर से भी जीवों की मौत हो जाती है। मछली पर शोध के दौरान छात्रों को गंगा नदी में प्रदूषण की वजह से मछलियों के पेट में हानिकारक माइक्रो प्लास्टिक, कपड़ों के रेशे और थर्माकोल जैसे पदार्थ मिलते रहते हैं। मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित जलिय जीव है तथा नदी के पर्यावरण को संतुलित रखती है। गंगा नदी के पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं होगी। - कोमल, शोध छात्रा (मछली), पटना साइंस कॉलेज, पटना विवि
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