बोले हाजीपुर : साधारण थाली की कीमत के बराबर भी नहीं रसोइयों का मानदेय
महंगाई के चलते रसोइयों का मानदेय 1650 रुपए मासिक होना उनकी जीवन यापन के लिए पर्याप्त नहीं है। रसोइयों ने सरकार से न्यूनतम मानदेय बढ़ाने और अन्य सुविधाओं की मांग की है। 10 माह का वेतन मिलने से परिवार...
साधारण थाली की कीमत के बराबर भी नहीं रसोइयों का मानदेय महंगाई बढ़ती जा रही है। आज महंगाई के समय में महज 1650 रुपए मासिक मानदेय में गुजारा मुश्किल है। साल भर खटना होता है, लेकिन सरकार महज 10 माह का वेतन ही हमें देती है। इसके कारण परिवार चलाने में तंगी से गुजरना होता है। इसके साथ ही सुबह नौ बजे से लेकर विद्यालय बंद होने तक हमारी सेवा ली जाती है। इसके तहत हमें कम से कम दैनिक मजदूरी मिलनी चाहिए। इसके साथ ही अवकाश का प्रावधान भी सरकार को करनी चाहिए। हम महिलाओं को अपने घर के कामकाज के साथ स्कूल के मिडडेमिल योजना को सफल बनाने के लिए एक पैर पर खड़े होकर काम करना पड़ता है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के बोले हाजीपुर अभियान के दौरान रसोइयों ने अपने दर्द को खुलकर साझा किया। प्रस्तुत है रिपोर्ट:
रसोइया का काम भोजन तैयार करना तो होता ही है। रसोईघर की सफ़ाई और खाद्य सामग्री का प्रबंधन भी होता है। रसोइये को शेफ़ के नाम से भी जाना जाता है। हमारा काम मेन्यू बनाना और तैयार करना भोजन की मात्रा और अंश तय करना, खाद्य सामग्री की आपूर्ति की निगरानी करना रसोईघर को साफ रखना, रसोई कर्मचारियों का प्रबंधन करना, खाद्य स्टेशनों का प्रबंधन करना, भोजन की योजना बनाना या सहायता करना, भोजन के उचित भंडारण और तैयारी की देखरेख, भोजन पकाना और वितरण करने के लिए बर्तनों का इस्तेमाल करना है। रेस्तरां में रसोइये को उनके काम के हिसाब से अलग-अलग नाम दिए जाते हैं जैसे कि, ब्रॉयलर कुक, फ्राई कुक, पेंट्री कुक, और सॉस कुक। सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन कराने के लिए भी रसोइये काम करते हैं, लेकिन इन रसोइयों को सिर्फ मानदेय दिया जाता है। वैश्विक परिपेक्ष में देखें तो एक टाइम का खाना खाने के लिए किसी रेस्तरां की साधारण थाली भी 70 से 80 रुपए की मिलती है, लेकिन हम रसोईयों को आठ घंटा सेवा देने के बाद भी उचित मानदेय नहीं मिल पाता है। यह कहना है सरोइयों का। वे कहते हैं कि सरकार को प्रत्येक वर्ष हमारे मानदेय में इजाफा करने की जरूरत है। समिति का गठन कर हमारी जरूरतों के हिसाब से कुछ सकारात्मक दिशा में काम करना चाहिए। वर्तमान समय में इस कार्य को करने से हमारा पेट एक समय भी नहीं भर पा रहा है। कुछ अच्छा हो हमलोग हमारे समूह के हक में इसको लेकर कई बार आवाज उठा चुके हैं। पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री पोषण योजना के अंतर्गत प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में कार्यरत रसोइयो की ज्वलंत समस्यायों को लेकर बैठक का आयोजन प्रखण्ड परिसर हाजीपुर में हुआ था। बैठक में रसोइयो के आलावा संगठन के पदाधिकारी भी पहुंचे थे। बोले कि 1650 रुपए में काम नहीं चल पाएगा। हमलोगों को कम से कम 10 हजार रुपए देना चाहिए।
भला 1650 रुपए महीने में क्या होगा
सरकार के गलत नीतियों के कारण रसोइया भूखमरी की शिकार हो रही है। सरकार सौतेला व्यवहार कर रही है तथा नौकरी के नाम पर शोषण कर रही है। इस भीषण महंगाई में वर्तमान में मिलने वाला मानदेय ऊट के मुंह में जीरा की तरह है। काम के बदले उचित मजदूरी का भुगतान करना सरकार की बाध्यता होनी चाहिए। भारत के सभी नागरिक को गरिमा पूर्वक जीने का अधिकार है। भला 1650 रुपए महीने में क्या होगा। रसोइये एकजुट होकर पटना के गर्दनीबाग में भूख मिटाओ हक़ दिलाओ रैली के जरिए आवाज बुलंद करने की तैयारी में हैं। रसोइये कई वर्षों से काम कर रहे हैं। मासिक मानदेय इतना कम है कि आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। हमारी तो सरकार से एक ही मांग है। श्रम विभाग की तरफ से निर्धारित न्यूनतम मानदेय का आदेश तुरंत लागू कर दें। जो भी न्यूनतम वेतन है दिया जाए। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में रिक्त पदों पर रसोइयों की नियुक्ति करना चाहिए। रसोइयों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष की करने के साथ ही । सेवा समाप्ति पर 10 हजार पेंशन और 10 लाख की ग्रेच्युटी हमलोगों को मिलना चाहिए। पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा, 14 दिन का आकस्मिक अवकाश और 90 दिन का मातृत्व अवकाश भी हम रसोइयों को मिलना चाहिए। साथ ही पिछले चार महीने से रुका मानदेय जल्द से जल्द दिया जाए।
हमारी भी सुनें
1. हमारे हित में सरकार को विचार करना चाहिए। हमलोग भी बिहार समेत पूरे वैशाली जिले में बहुसंख्य आबादी के रूप में विद्यालय में काम करने वाली कामकाजी महिलाकर्मी हैं। जब इस देश में महिलाओं के सम्मान की बात की जाती है। एक तरफ उनके साथ न्याय को लेकर अहित व्यवहार किया जाता है। - रूबी देवी रसोईयाकर्मी
2. रसोईया के काम में लगे कर्मी में ज्यादा महिला कर्मचारी हैं, जिनको अपने घर के लिए भी समय इसी 24 घंटों में से निकालना पड़ता है। सरकारी एक भी छुट्टी हमलोगों को नहीं मिलने से काफी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इससे अपने बच्चों का सही तरीके से देखभाल करने के लिए भी समय का अभाव रहता है।
- मीरा देवी रसोईयाकर्मी
3. हम रसोईया की एक ही समस्या है कि हमारा वेतन सम्मानजनक नहीं है। इसलिए जो समय चल रहा है इसमें गुजारा करना असान काम नहीं होता है आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण से हमलोग को मन करता है कि ये जॉब छोड़ दें।
- दिनेश सिंह, रसोईयाकर्मी सह प्रखंड अध्यक्ष
4. क्या बताएं अपनी मनोदशा। हमारी सुनने वाला कौन है, लेकिन अपने हक के लिए तब तक आवाज उठाने का काम करते रहेंगे, जब तक हमारी जीत ना हो जाए। हमारी आर्थिक आधारित सामाजिक स्थिति चरमराने से बच जाएगा। सरकार को हमारे बारे में सोचना चाहिए।
- गनौर साह रसोईयाकर्मी सह जिला सहयोगी
5. सरकार रसोइयो के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। नौकरी के नाम पर शोषण हो रहा है। भीषण महगाई में वर्तमान में मिलने वाला मानदेय ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। न्यूनतम मजदूरी के रेट से मानदेय का भुगतान करने की सरकार से अपेक्षा है।
- नीलम कुमारी रसोईयाकर्मी
6. हमारे परिवार में अगर घर चलाने वाले अविभावक न होते तो हमलोग इस महंगाई के समय में कैसे गुजारा कर पाते। यदि उनका सहयोग नहीं मिलता तो गौर करने की बात है कि सरकार को यह मालूम होना चाहिए कि दैनिक मजदूरी करके मजदूरा वर्ग भी देहारी 300 रुपए है, लेकिन हमलोग को डेली का 55 रुपए ही दिया जाता है। - माधुरी कुमारी रसोईयाकर्मी सह जिला अध्यक्ष पातेपुर प्रखंड
7. किसी परिवार में मोबाइल रखने वाले की संख्या ज्यादा होने से रिचार्ज कराने में दो से तीन हजार रुपए का खर्च महिने का आता है, लेकिन सरकार हमारे प्रति अन्याय करने का काम कर रही है। हम अपना गुजर वसर 1650 रुपए में कैसे करें।
- शंकर कुमार प्रदेश कार्यकारणी सदस्य सह रसोईयाकर्मी
8. महंगाई में एक समय का पांच सदस्यीय परिवार के लिए प्याज खरीदने जाए बाजार तो आपको 40 से 45 रुपए प्रति किलो दिया जाएगा, बताएं इस मानदेय में हमारी मनोदशा व स्थिति कैसी रहेगी। 55 रुपए रोजाना पर कैसे कोई व्यक्ति काम करेगा।
। - सोना देवी रसोईयाकर्मी
9. सरकार कम से कम दिहाड़ी मजदूरी के हिसाब से ही हमलोग को मानदेय में बढ़ोतरी करने का काम करे जिसके फलस्वरूप हमलोग भी कम से कम मिलाजुलाकर दैनिक जीवन की आर्थिक उलझने से निदान पा सके साथ ही अपने परिवार के लिए कुछ सम्मानजनक करने को सोचे।
- संजू देवी रसोईयाकर्मी
10. इस बदहाली में हमारी समस्याए को दरकिनार किया जा रहा है। छुट्टी नहीं मिलती है। कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन 1500 की नौकरी को वर्तमान समय के हिसाब से 15 हजार करने की जरूरत है। कई वर्षों से दैनिक दिहाड़ी करीब 55 रुपए ही मिल रही है।
- शिवशंकर पंडित रसोईयाकर्मी
11. बारह माह कार्य करते हैं और 10 माह का ही मानदेय दिया जाता है। अवकाश की सुविधा भी नहीं है। घर-परिवार में शादी-विवाह कार्यक्रम जाने में असुविधा होती हैं। सरकार को चाहिए कि हर माह मानदेय का भुगतान किया जाए। अवकाश भी मुहैया करें।
रीना देवी, रसोईयाकर्मी।
12. 1650 में सुबह से शाम तक कार्य लिया जा रहा है। श्रम अधिनियम के तहत भी मानदेय नहीं है। कठिनाई हो रही है। दिहाड़ी पर काम कर रहे मजदूर को भी 400 रुपए दिए जाते हैं। सरकार को चाहिए कि हमारे जितने भी कार्यरत रसोईया हैं, उनको वाजिब हक दिलाने के लिए श्रम अधिनियम के तहत कम से कम 10 हजार रुपये मानदेय का भुगतान किया जाए।
- रामकृपाल भाई संस्थापक सह राष्ट्रीय महासचिव रसोईया संघ
13. सरकारी विद्याालय में रसोईया कार्य करती हूं, लेकिन उचित मानदेय भी नहीं दिया जा रहा है। मैं विधुर हूं। मेरे बच्चे अब बड़े हो रहे हैं। इतने कम मानदेय में घर-परिवार एवं शिक्षा कहां से दे पाऊंगी। सरकार चाहिए कि हम जैसी विधुर महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजना लाई जाए जिससे बच्चों को देखरेख में दिक्कत न हो।
- गीता देवी, रसोईयाकर्मी।
14. राष्ट्रीय मध्याह्न भोजन की जो योजना केन्द्र व बिहार सरकार की है। इससे और भी परेशानियां बढ़ रही हैं, क्योंकि इस योजना से सिर्फ शिक्षा विभाग के कर्मीयों को फायदे हो रहे हैं। सरकार की इस योजना को केन्द्र या बिहार सरकार मानदेय का भुगतान करें।
जितू कुमार, रसोईयाकर्मी।
15. विद्यालय में रसोईयाकर्मी का कार्य कर रहे कर्मी का कहना है कि छह माह से मानदेय नहीं मिला है। महाजन से कर्ज लेकर राशन का सामान खरीद कर खा रहा हूं। समय पर मानदेय का भुगतान किया जाए। इपीएफ दिया जाए, ताकि भविष्य में कुछ तो हाथ लगे। - सुनीता देवी रसोईयाकर्मी
16. सरकार हमलोगों के साथ सौतला व्यवहार कर रही है। 10 वर्षों से काम कर रहे हैं, लेकिन मानदेय की बढ़ोत्ती नहीं की जा रही है। सरकारी विद्यालयों में कार्य कर रहे कर्मीयों को फायदा पहुंचा सके। सरकार को स्थाई नीति अपनी चाहिए। नियमित बहाली कर स्थाई करना चाहिए।
- गायत्री देवी रसोईयाकर्मी
17. मेरी उम्र 50 वर्ष हो गई है। बिहार के नियम से अब 10 वर्ष नौकरी बची है, लेकिन सरकार से आशा करती हूं कि विद्यानसभा चुनाव से पहले हम रसोईया के लिए सरकार स्थाई कर दे। मानदेय भी कुछ ऐसा करें कि सम्मानजनक लगे। पिछला बकाया जल्द-जल्द भुगतान करें।
ईना देवी रसोईयाकर्मी
19. हमारी आर्थिक निर्भरता के लिए किसी और पर आश्रित रहना ना पड़े इसको लेकर सरकार को चाहिए की हमारी जरूरतों को ध्यान रखकर हमारी मानदेय में आवश्कयता अनुसार बढ़ोतरी करे। इलाज कराने के लिए साल में कुछ बीमा राशि फिक्स करें।
- उर्मिला देवी रसोईयाकर्मी
20. हम रसोईयों को हक के लिए भी लड़ना पड़ रहा है। सरकार को चाहिए कि हमलोगों का मानदेय बढ़ाकर 10 हजार रुपए प्रति माह कर दें, ताकि हमलोगों को आर्थिक रूप से फायदा हो।
- रंजीता कुमारी रसोईयाकर्मी
21. हम रसोईया की एक समस्या है। हमारी लाचारी व असहाय समय को ठीक करने के लिए हमलोगों का मानदेय 1650 रुपए से बढ़ाकर सम्मान जनक कर देने की जरूरत है। इससे हमलोगों का भला होगा।
- रंजू देवी रसोईयाकर्मी
सुझाव
1. रसोइयों की न्यूनतम मजदूरी कम से कम दस हजाए रुपए प्रति माह मानदेय लागू किया जाए।
2. कार्यरत रसोइयों को स्थाईकरण करते हुए वर्ष के बारह माह मानदेय भुगतान किया जाए।
3. कार्य करने के दौरान रसोइयों को चोट लगने या घायल होने पर इलाज के लिए राशि उलब्ध कराई जाए।
4. सभी कार्यरत रसोईयों को मातृत्व अवकाश व विशेष अवकाश लागू कर लाभ दिया जाना चाहिए।
5. सभी रसोईयों को भविष्य निधि योजना का लाभ दिया जाए जिससे आने वाला कल सुख में बीते।
समस्या
1. काम करने वाले सभी महिला रसोइयों को दो सूती साड़ी एवं पुरुष को दो पैंट शर्ट उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।
2. रसोइयों पर कार्य का दबाव ज्यादा होने से परेशानी का सबब बना रहता है बच्चों व रसोईयों के बीच कोई अनुपात तय नहीं है।
3. रसोईयों का चयन जिला शिक्षाधिकारी या जिलाधिकारी के अधीनस्थ नहीं कराए जाने से बढ़ रही परेशानी।
4. अभीतक सभी रसोइयों को नियुक्ति पत्र व पांच लाख तक का बीमा नहीं दिए जाने से दैनिक जीवन की कठिनाई बढ़ गई है।
प्रस्तुति : - विवेकानंद
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