वजीरगंज में अचानक हुए दो मवेशियों की मौत से सहमे ग्रामीण
वजीरगंज एक संवाददाता। अमैठी पंचायत अंतर्गत् आरोपुर गांव में बिते मंगलवार की रात को अचानक दो मवेशियों की मौत हो...
वजीरगंज एक संवाददाता।
अमैठी पंचायत अंतर्गत् आरोपुर गांव में मंगलवार की रात को अचानक दो मवेशियों की मौत हो गई। जानवरों में कोरोना होने की आशंका से ग्रामीण दहशत में आ गये। पशुपालक स्वामी जितेन्द्र यादव ने बताया कि हम रोज की तरह ही मवेशियों को शाम में खाने के लिए चारा डाले थे, लगभग एक घंटे वे चारा खाते रहे और अचानक थरथराने लगे और अचानक मवेशी जमीन पर गिर पड़ा। इसकी जानकारी स्थानीय ग्रामीण चिकित्सक को दी और उन्होंने उसका इलाज भी किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। दो घंटे के अंदर एक बैल और गाय का पेट फूल गया और उनकी मौत हो गई, मवेशी की मौत होने से लगभग 55 हजार रूपये का नुकसान हुआ है। बाद में वजीरगंज पशु चिकित्सा पदाधिकारी डॉ आशीष ने मवेशियों में बीमारी का लक्षण के आधार पर बताया कि उनकी मौत एक्यूट सर्रा नामक बीमारी से हुई है। उन्होंने ग्रामीणों को आश्वस्त करते हुए बताया कि फिलहाल क्षेत्र के मवेशियों में कोरोना बीमारी की पुष्टी नहीं हुई है, संदिग्ध मवेशियों की जांच विशेष दल द्वारा कराया जा रहा है।
फोटो :- वजीरगंज के आरोपुर में मृत मवेशियों को देखते लोग
क्या होता है सर्रा बिमारी
सर्रा बीमारी चमोकन, बड़ी मख्खी जैसे परजीवियों में पलने वाले प्रोटोजोआ से होता है। जब मवेशी इस तरह के परजीवियों के संपर्क में आते हैं तो सर्रा का प्रोटोजोआ मवेशियों के रक्तकण में मिल जाते हैं। जिसके बाद कई मवेशियों में यह महीने भर पलता रहता है और अचानक मवेशी कांपने लगता है, उसका पेट फुलने लगता है और मुंह से लार गिरने सहित अन्य लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं, लेकिन गंभीर लक्षण दिखने के चौबिस घंटे के अंदर ही इलाज के बावजूद अधिकांश मवेशियों की मौत हो जाती है। हालांकि सर्रा से पीड़ित होने के मामले बहुत ही कम दिखाई देते हैं। इनका इलाज लक्षणों के अनुसार किया जाता है, जिसमें कम और मध्यम वर्ग के लक्षणों वाले मवेशी रिकवर हो जाता है, लेकिन एक्यूट सिमटम वाले मवेशियों की मौत हो जाती है।
क्या है सर्रा से बचाव के उपाय
मवेशियों को सर्रा से बचाने का साधारण उपाय है। सर्रा के जीवाणु गंदगी के कारण फैलते हैं और परजीवियों के माध्यम से मवेशियों को संक्रमित करते हैं। इसलिये मवेशियों के शरीर पर चमोकन जैसे परजीवि पनपने न दें और उसके रहने वाले स्थान की साफ - सफाई करते रहें तथा प्रत्येक तीन माह एवं छ: माह के भीतर चमोकन एवं पेट का कीड़ा मारने की दवा दें तो इस तरह की बीमारी से बचा जा सकता है।
फोटो :- पशु चिकित्सा पदाधिकारी डॉ आशीष
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