शेरघाटी की श्रीरामपुर पंचायत में अतिरिक्त प्राथमिक स्वा.केंद्र खुलने का सपना रह गया अधूरा
शेरघाटी की श्रीरामपुर पंचायत में अतिरिक्त प्राथमिक स्वा.केंद्र खुलने का सपना रह गया अधूरा श्रीरामपुर में टीकाकरण तक ही सिमट कर रह गई हैं उप स्वास्थ...
शेरघाटी की श्रीरामपुर पंचायत में अतिरिक्त प्राथमिक स्वा.केंद्र खुलने का सपना रह गया अधूरा श्रीरामपुर में टीकाकरण तक ही सिमट कर रह गई हैं उप स्वास्थ केंद्रों की गतिविधियां
सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की नाकामी से अंधविश्वास में जकड़े ग्रामीण ले रहे ओझा गुणी का सहारा
शेरघाटी प्रखंड की श्रीरामपुर पंचायत
फोटो न्यूज, श्रीरामपुर पंचायत के बीटी बीघा गांव का मिडिल स्कूल जिसे दिया गया है इंटर स्कूल का दर्जा, 2- श्रीरामपुर गांव का मिडिल स्कूल, श्रीरामपुर स्कूल में खेलते बच्चे
शेरघाटी। निज संवाददाता
भगवान श्रीराम के नाम पर बसी शेरघाटी की श्रीरामपुर पंचायत में परिकल्पित रामराज्य तो नहीं आया है, मगर पांच सालों के दौरान सड़क, नाली, पेयजल, भवन, रोजगार के साधन और दूसरे मौलिक संसाधनों में जरूर इजाफा हुआ है।
अलबत्ता स्वास्थ, शिक्षा के साधनों के विकास और गरीबी तथा कूपोषण के विरूद्ध लड़ाई के कारगर हथियार समझे जाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों की दशा में सुधार आने का इंतजार अब भी बना हुआ है। विकास की मंजिल को पाने में कुछ रोड़े अब भी बने हुए हैं।
प्रखंड मुख्यालय के बिल्कुल नजदीक में स्थित यह पंचायत पड़ोस के बांकेबाजार प्रखंड और झारखंड के हंटरगंज प्रखंड की सीमा पर स्थित है। पंचायत में सड़कों की कोई कमी नहीं है। श्रीरामपुर पंचायत से गुजरकर एक सड़क जहां बांकेबाजार, इमामगंज होते हुए डाल्टनगंज और मनातू तक चली जाती है, वहीं दूसरी सड़क इमामगंज-रानीगंज को जोड़ती है। कमी है तो बुढ़िया नदी में श्रीरामपुर पंचायत के बीटी बीघा-दुमुहान और बांकेबाजार के मदारपुर गांव को जोड़ने वाले एक पुल की। जिससे, दोनों ओर की सड़कों की उपयोगिता बढ़ सके और खुशहाली की नई कहानी भी लिखी जा सके। पंचायत के दो वार्डों में आज की तारीख तक नल-जल योजना शुरु भी नहीं हो सकी है।
स्थानीय मुखिया संजय सिंह के दावे को मानें तो पंचायत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान 1500 से ज्यादा घरों में शौचालयों का निर्माण कराया गया है। इसके बावजूद विरोधी कहते हैं कि एक चौथाई परिवार अब भी दिशा-मैदान के सहारे है। पंचायत के श्रीरामपुर, नवादा और भुजौल के स्वास्थ उपकेंद्रों की उपयोगिता केवल साप्ताहिक या विशेष तौर पर किए जाने वाले टीकाकरण कार्य तक ही सीमित है। हफ्ते के बाकी दिनों में इन केंद्रों में गतिविधियां शून्य होती हैं। तीनों स्वास्थ उपकेंद्रों का अपना भवन नहीं है। भाड़े के एक-एक कमरे में तीनों केंद्र चल रहे हैं। श्रीरामपुर गांव में प्रस्तावित अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र अब तक नहीं खोला जा सका है। राज्य सरकार ने कई वर्ष पूर्व ही यहां छोटा अस्पताल खोलने की मंजूरी दे दी थी।
महिला, किशोरी और बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए प्रोग्राम तो यह तय था कि पंचायत के सभी वार्डों में एक-एक आंगनबाड़ी केंद्रों का गठन होगा, मगर हकीकत यह है कि वार्ड न. 3, 8, 10, 13 और 14 में कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। चौदह वार्डों वाली इस पंचायत में सिर्फ 9 आंगनबाड़ी केंद्र है। केंद्र से वंचित वार्डों के पोषक क्षेत्र को कागज पर तो दूसरे आंगनबाड़ी केंद्रों के साथ टैग किया गया है, मगर सच यह है कि इन इलाके के बच्चे पोषाहार और स्वास्थ गतिविधियों का लाभ नहीं उठा पाते। सात निश्चय योजना और मनरेगा योजना से पिछले पांच वर्षों में 70 से अधिक गली और सड़कों के निर्माण का दावा किया जाता है। पंचायत का अब कोई भी गांव-टोला सड़क से वंचित नहीं है।
संजय कुमार सिंह, मुखिया, श्रीरामपुर
पंचायत में पांच वर्षों के दौरान 13 नल-जल योजनाएं कार्यान्वित की गई हैं और 70 से अधिक सम्पर्क सड़कें बनायी गई हैं, पौधारोपण, रोजगार के साधनों के विकास, सिंचाई साधनों में इजाफा, पंचायत सरकार भवन के बेहतर इस्तेमाल तथा आपसी सदभाव और भाइचारे को बढ़ाने के लिए भी विविध कार्यक्रम किये गए।
मिथलेश सिंह, पूर्व मुखिया, श्रीरामपुर
पंचायत में विकास के नाम पर ज्यादातर गड़बड़ियां की गई हैं। विकास कार्यों की गुणवत्ता भी बेहतर नहीं है। सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई अब भी सपना बनी हुई है। पंचायत के तीनों स्वास्थ उपकेंद्रों को अबतक भवन नसीब नहीं हो सका है। डाक्टर तो क्या इन केंद्रों में नर्स और कर्मचारी भी मौजूद नहीं रहते। इसी तरह समूची पंचायत को खुले में शौच से मुक्त अर्थात ओडीएफ घोषित कर दिया गया, मगर एक चौथाई आबादी अब भी शौच के लिए खेत-नदी में जाती है।
रवि सिंह, ग्रामीण, बीटी बीघा
पंचायत में दलित और पिछड़ों की आबादी वाले दो वार्डों में अब तक नल-जल योजना का काम शुरु नहीं हो सका। गर्मी में दोनों वार्डों क्रमश: वार्ड नम्बर 1 और 3 के लोगों को पीने के पानी हासिल करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
मनोज प्रसाद सिंह, ग्रामीण, बीटी बीघा
श्रीरामपुर पंचायत में आधारभूत संरचना के विकास के लिए खूब काम किया गया है, मगर दोमुहान से निकलने वाली पइन को अगर पक्काकरण कर दिया जाता तो इससे नदी से पानी आसानी से नवादा आहर तक चला जाता। सिंचाई के साधन विकसित होते।
अमरेश कुमार, ग्रामीण, श्रीरामपुर
श्रीरामपुर गांव में कई वर्ष पूर्व ही सरकार ने अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र खोले जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, मगर आजतक अस्पताल खोलने की कोई पहल नहीं की गई। उपस्वास्थ केंद्र भी बदहाल पड़े हैं। ग्रामीणों को इलाज के लिए शेरघाटी जाना पड़ता है। बरसात के दिनों में मुश्किल होती है।
श्रीरामपुर पंचायत
आबादी- 10, 760
अनु.जा. आबादी 30 प्रतिशत
मतदाता- 7300
वार्ड- 14
राजस्व गांव- 08
अफजलपुर, नवादा, बीटी बीघा, बेलडीह, श्रीरामपुर, भुजौल, शेरपुर, पंडित बीघा
साक्षरता- 63 प्रतिशत
जनसंख्या अनुपात 1000:935
उपलब्धियां-
गांव-टोले में 70 से अधिक सड़कों का निर्माण
13 नल-जल योजनाओं का काम पूर्ण
बीटी बीघा मिडिल स्कूल को मिला जमा दो स्कूल का दर्जा
40 हजार पौधे रोपे गए
रोजगार सृजन के लिए 30 गौशाला का निर्माण
रोजगार सृजन के लिए 10 मुर्गी फार्म का निर्माण
सिंचाई के लिए 14 आहरों की सफाई
मछली पालन के लिए 5 तालाब खुदवाए गए
30 से अधिक नाली का निर्माण
मनरेगा और सात निश्चय योजनाओं में 800 लोगों को मिला रोजगार
नाकामियां-
पंचायत में खेती के लिए बिजली कनेक्शन लेने वालों को नहीं मिला तार-खंभा
श्रीरामपुर गांव में अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र खोलने का काम नहीं हुआ पूरा
तीन स्वास्थ उपकेंद्रों को नहीं मिल सका अपना भवन
पंचायत के पांच वार्डों में नहीं खुल सके आंगनबाड़ी केंद्र
शौचालयों के निर्माण के बावजूद हकीकत में पंचायत नहीं हो सकी ओडीएफ
पंचायत सरकार भवन बनने के बाद भी सप्ताह के सभी दिन नहीं मिलते कर्मचारी
सड़क
सड़क के मामले में श्रीरामपुर पंचायत आस-पास की दूसरी पंचायतों से बेहतर है। शेरघाटी से बीटी बीघा-नवादा गांव को जोड़ने वाली सड़क सीधे बांकेबाजार, इमामगंज और डाल्टनगंज तक चली जाती है। रास्ते में बुढ़िया नदी पर पुल नहीं होने के कारण यातायात में गतिरोध है। इसके अलावा पंचायत के सुदूर दक्षिण में स्थित भुजौल और इदुडीह तक को सड़क सम्पर्क से जोड़ दिया गया है। अलबत्ता दोमुहान से सीधे भुजौल को जोड़ने वाली कच्ची सड़क को बेहतर करने में कामयाबी नहीं मिल सकी। इस सड़क के निर्माण से भुजौल के लोगों की पंचायत और प्रखंड मुख्यालय से दूरी कम हो सकती थी। ग्राम पंचायत के मुखिया संजय सिंह का दावा है कि पंचायत में 70 से ज्यादा सम्पर्क सड़कों का निर्माण किया गया है।
नल-जल योजना
सूबे की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में शामिल सात निश्चय योजना के तहत पेयजल उपलब्ध कराने वाली नल-जल योजना में अपेक्षाकृत बेहतर काम हुआ है। समूची पंचायत में 13 योजनाएं चल रही है, अलबत्ता पंचायत के वार्ड नम्बर एक और तीन अर्थात गरजूडीह, शेरपुर और अवधपुर आदि टोलों में नल-जल योजना का काम शुरु भी नहीं हो सका है। पंचायत के मुखिया संजय कुमार सिंह के मुताबिक राशि के अभाव में दोनों वार्डों में काम शुरु नहीं हो सका है। नल-जल योजनाओं से पानी तो लोगों को मिल रहा है, लेकिन कुछ स्थानों पर इस योजना के पानी से खेतों की सिंचाई किए जाने तथा पानी के बर्बाद होने की भी शिकायत है। योजना के संरक्षण और देखरेख के लिए राशि का अभाव भी बना रहता है। कहीं-कहीं लापरवाही भी दिखती है। लाभांवित ग्रामीणों से पानी टैक्स की वसूली का काम भी बेहतर ढंग से शुरु नहीं हो सका है।
रोजगार सृजन
रोजगार सृजन के क्षेत्र में भी पंचायत ने बेहतर काम किया है। स्थानीय मुखिया की मानें तो मनरेगा योजनाओं और सात निश्चय योजनाओं के कार्यान्वयन से 800 लोगों को रोजगार दिया गया। निजी जमीन पर एक लाख सात हजार रुपये के सरकारी खर्च (प्रति गौशाला) से 30 गौशालाएं बनायी गईं। मुर्गीपालन के लिए सरकारी खर्च से 10 फार्म (प्रति फार्म 70 हजार रुपये) बनाए गए। मछली पालन के लिए निजी जमीन में 5 तालाब खुदवाए गए। इसके अलावा सड़कों-गलियों के निर्माण से सवारी ढोने वाले ऑटो और ई-रिक्शा की पहुंच सभी गांवों-टोलों तक हो गई। सड़क सुविधा बढ़ने के साथ कृषि उपज के बाजार पहुंचने में आसानी हुई। चौक-चौराहों और सड़कों के किनारे कारोबार के लिए दुकानें खुलीं।
सिंचाई-
सिंचाई के लिए श्रीरामपुर पंचायत के अलग-अलग गांवों में 14 आहर की सफाई की गई। इतनी ही संख्या में पईन की सफाई का काम भी हुआ। खासकर मोरहर नदी में दोमुहान से निकलने वाली ढाई किमी लम्बी पईन की सफाई से बीटीबीघा, नवादा और शेरपुर समेत चार गांवों में सिंचाई के साधन बेहतर हुए। वर्षों से बंद पड़े छह में से पांच स्टेट नलकूप को 18 लाख रुपये खर्च कर बिजली के तार-खंभे और ट्रांसफार्मर आदि से लैस कर सिंचाई के लिए कामयाब बनाया गया।
बिजली
पंचायत के सभी गांव-टोलों में बिजली तो पहुंच गई, मगर गांवों में बिजली संजाल को दुरूस्त किए जाने का काम अभी बाकी है। बांस के खंभों पर झूलते नंगे और घटिया गुणवत्ता के बिजली तारों से अक्सर गांव-टोले में विद्युत स्पर्शाघात का डर बना रहता है। खासकर कृषि कार्य के लिए बिजली का कनेक्शन लेने वाले किसानों को अबतक तार-खंभे या अलग से ट्रांसफार्मर उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। किसानों को खेतों में लगी सिंचाई केबिन तक बिजली ले जाने के लिए बांस के खंभों का उपयोग करना पड़ रहा है। श्रीरामपुर गांव और आस-पास में मीलों लम्बी दूरी में इसी तरह बिजली के तारों को ले जाया गया है। कृ़षि फीडर से अबतक बिजली की आपूर्ति किसानों को नहीं की गई है। बिजली लाइन के मेनटेनेंस में भी मुश्किलें होती हैं। गांव वालों की मानें तो शिकायतों की त्वरित सुनवाई नहीं होती है। इसके अलावा बिजली की ओवर बिलिंग का मसला भी है।
स्वास्थ
स्वास्थ के क्षेत्र में श्रीरामपुर पंचायत में पिछले पांच वर्षों के दौरान कुछ खास नहीं हो पाया। सरकार की मंजूरी के बावजूद श्रीरामपुर गांव में अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र खुलने के रास्ते में रोड़ा बना हुआ है। पंचायत के तीन स्वास्थ उपकेंद्रों की गतिविधियां भी सिर्फ टीकाकरण तक ही सीमित हैं। भाड़े के मकानों में चलने वाले इन स्वास्थ उपकेंद्रों में सप्ताह के शेष दिन ताले ही लटके रहते हैं। डाक्टर की कौन कहे नर्स और कर्मचारी तक से भेंट मुश्किल है। स्वास्थ केंद्रों में उपलब्ध सुविधाओं की भी कोई जानकारी ग्रामीणों को नहीं मिलती है। बुखार-सर्दी से पीड़ित ग्रामीणों को दो टैबलेट भी ऐसे केंद्रों से हासिल नहीं होते। प्रसव पूर्व जांच या प्रसव के बाद महिलाओं के स्वास्थ देखभाल की भी उपकेंद्रों में कोई सुविधा नहीं है। स्वास्थ उपकेंद्रों के अनुपयोगी बने होने का सबसे ज्यादा नुकसान अशिक्षित और अंधविश्वास में जकड़े ग्रामीणों को होता है, जो अक्सर सिरदर्द, पेटदर्द, कमजोरी, दुबलेपन और बुखार जैसी शिकायतों को लेकर गांव-टोले में धंधा पसारे ओझा-गुणी की शरण में पहुंच जाते हैं। ग्रामीण चिकित्सक भी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की इस नाकामी का खूब फायदा उठाते हैं।
पंचायत सरकार भवन
एक करोड़ से ज्यादा रकम खर्च कर श्रीरामपुर पंचायत में बुढ़िया नदी के तट पर पंचायत सरकार भवन का निर्माण तो कर दिया गया, मगर अब भी तमाम कर्मचारियों और पंचायत प्रतिनिधियों के एक छत के नीचे मौजूद रहने का सपना पूरा नहीं हो सका। सप्ताह में दो-तीन दिन ही इस भवन में कुछ कर्मचारियों से मुलाकात हो सकती है। राजस्व कर्मचारी तो शायद ही कभी आते हों। ग्रामीणों को राजस्व कार्यों के लिए शेरघाटी ही जाना पड़ता है। पंचायत में आरटीपीएस काउंटर पर भी सारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।
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