बोले गया : बुनकरों के लिए बिजली आपूर्ति की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए
मानपुर के पटवा टोली में 11 हजार बुनकर हैं, लेकिन उन्हें आधुनिक तकनीकों और प्रशिक्षण की कमी का सामना करना पड़ रहा है। कॉमन फैसिलिटी सेंटर की मांग की जा रही है, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं...

मानपुर के पटवा टोली में लगभग 11 हजार पावरलूम और हैंडलूम के बुनकर हैं। 1040 यूनिट से वस्त्रों के उत्पादन का काम होता है। लेकिन, आधुनिकता के युग में यहां के बुनकरों को प्रशिक्षण का अभाव है। उत्पादन और कारोबार का बेहतर प्रशिक्षण नहीं रहने के कारण पटवा टोली के बुनकरों के व्यवसाय में निखार नहीं आ रहा है। कॉमन फैसिलिटी सेंटर निर्माण की यहां के बुनकर लगातर मांग कर रहे हैं। सरकार इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठा रही है। ऐसे में यहां के बुनकरों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
सूती कपड़ों के उत्पादन के साथ रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के लिए भी देश-विदेश में गया जिले का मानपुर स्थित संकीर्ण गलियों में बसा पटवा टोली मोहल्ला प्रसिद्ध है। पटवा टोली को वस्त्र उद्योग का मिनी मैनचेस्टर भी कहा जाता है। पटवा टोली देश के प्रमुख औद्योगिक संस्थानों को कुशल इंजीनियर देने के लिए भी जाना जाता है। यहां के हजारों परिवार पीढ़ियों से बुनकरी के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
हैंडलूम और पावरलूम के 11 हजार से अधिक बुनकर हैं। 1040 यूनिटों के साथ पटवा टोली हैंडलूम और पावरलूम उद्योग का एक बड़ा केंद्र है। 24 घंटे यहां की मशीनें चलती हैं। लेकिन, यहां के बुनकरों को लगातार बढ़ती परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां के बुनकर अपने मैनेजमेंट में उलझे हुए हैं। इनकी परेशानियों को सुलझाने में केंद्र और राज्य सरकार कोई पहल नहीं कर रही है। दूसरे राज्यों के बुनकर आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर सूती कपड़ों के उत्पादन के साथ- रेशमी वस्त्रों का भी तेजी से उत्पादन कर रहे हैं। पटवा टोली के बुनकर अब भी पारंपरिक पद्धतियों पर निर्भर हैं। डिजाइनिंग और ऑटोमेशन की कमी के कारण यहां के उत्पादों की प्रतिस्पर्धा लगातार कमजोर हो रही है। भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग द्वारा मानपुर प्रखंड में एक कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफएस) बनाने की योजना बनाई थी। ताकि बुनकरों को आधुनिक मशीनें, डिजाइनिंग सुविधाएं, प्रशिक्षण और मार्केटिंग के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। लेकिन, यह सेंटर जहां बनना चाहिए था, वहां अब तक बनकर तैयार नहीं हो सका है। सीएफएस सेंटर के निर्माण से यहां के बुनकरों को बड़े पैमाने पर लाभ होता और उनका व्यापार बढ़ता।
राज्य सरकार ने बुनकरों को कार्यशील पूंजी के रूप में 15 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की थी। लेकिन, अब तक यह राशि अधिकांश बुनकरों को नहीं मिली है। बिना पूंजी के बुनकर अपने व्यापार को सही तरीके से नहीं चला पा रहे हैं। पटवा टोली में लहंगा, साड़ी, गमछा, लूंगी, बेडशीट, पीतांबरी और पर्दा बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं। लेकिन, आज इनकी मांग में गिरावट आयी है। ऑनलाइन मार्केटिंग और बड़े-बड़े ब्रांडों के कारण छोटे बुनकरों की बिक्री काफी कम हो गई है। पहले पटवा टोली में बनने वाला वस्त्रों का डिमांड बिहार के अलावा झारखंड, असम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों के बड़े-बड़े बाजारों में होता था। अब वैसी स्थिति नहीं रह गई है। पटवा टोली में भागलपुर, नवादा, मोहनिया, सासाराम, बांका, सिवान, जहानाबाद, अरवल सहित अन्य जिलों के बड़ी संख्या में कामगार काम करते रहे हैं। काम अभाव में अब पहले की तुलना में 20 से 25 प्रतिशत कामगार काम छोड़कर दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने चले गए हैं।
डिजाइनिंग की कमी से उत्पादों की मांग हो रही कम
गया। मानपुर के पटवा टोली में बड़े पैमाने पर लहंगा, साड़ी, गमछा, लूंगी, बेडशीट, पीतांबरी और पर्दा बनता है। इसके लिए पश्चिम बंगाल, पंजाब व कर्नाटक से गोला (धागा) आता है। इसमें 40 प्रतिशत उजला और 60 प्रतिशत रंगीन धागा रहता है। वस्त्र तैयार करने में पहले जैसा उत्साह अब नहीं रह गया है। चूंकि ऑनलाइन मार्केटिंग और बड़े-बड़े ब्रांडों के कारण छोटे बुनकरों की बिक्री काफी कम हो गई है। दूसरे प्रदेशों में पटवा टोली वस्त्रों की मांग में गिरावट आयी है। पटवा टोली के दुखन पटवा, दुर्गा प्रसाद, पारसनाथ, गिरधारी लाल सहित अन्य बुनकरों ने बताया कि गोला को बंडल बनाने से लेकर वस्त्र तैयार करने में काफी मेहनत लगता है। लेकिन, पूंजी और मेहनत के मुताबिक अब पहले जैसा मुनाफा नहीं होता है। क्योंकि कपड़ेकी बुनाई में इस्तेमाल होने वाला धागा, रंग और अन्य सामग्री भी महंगा हो गया है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ गया है और मुनाफा कम हो गया है। दूसरे राज्यों के बुनकर आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर तेजी से उत्पादन कर रहे हैं, जबकि पटवा टोली में अभी भी पारंपरिक पद्धतियों पर निर्भरता है। डिजाइनिंग और ऑटोमेशन की कमी के कारण यहां के उत्पादों की प्रतिस्पर्धा कमजोर हो रही है। पटवा टोली का बुनकरी उद्योग भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहा है। लेकिन, आज यह संकट में है। अगर सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस उद्योग को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करें तो यह क्षेत्र फिर से आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकता है। बुनकरों के लिए सही नीतियों, योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन और आधुनिक तकनीक के उपयोग से पटवा टोली का गौरव फिर से लौट सकता है। जरूरत है ठोस कदम उठाने की, ताकि बुनकरी की परंपरा जीवित रहे और यह उद्योग फिर से अपने स्वर्णिम युग में प्रवेश करे। बुनकरों के लिए सरकार की कई योजनाएं हैं। लेकिन, अधिकांश योजना कागजों तक सीमित रह गया है। सरकारी सहायता का लाभ बुनकरों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
बिजली में 5 रुपये प्रति यूनिट मिलनी चाहिए सब्सिडी
पहले और अब में तुलना किया जाए तो हाल के कुछ वर्षों में बिजली के बिल में चार गुना की वृद्धि हुई है। वहीं सब्सिडी पहले 1.50 रुपये मिलनी शुरू हुई। बाद में 3 रुपय्े सब्सिडी मिलनी शुरू हुई, जो अब तक यही है। हमलोगों को प्रति यूनिट 5 रुपया बिजली बिल में सब्सिडी मिलनी चाहिए। एक तरफ बार-बार बिजली ट्रिप करती है जिसके कारण मशीन अचानक बंद हो जाती हैं। ऐसे में मशीन पर दबाव पड़ता है और कामगारों को भी नुकसान पहुंचता है। चूंकि वो जितना काम फाइनल करते हैं। उसी के आधार पर उन्हें भुगतान होता है। जेनरेटर से मशीन चलाना मुश्किल होता है। डीजल भी महंगा है और मशीनों की क्षमता के आधार पर अधिक पावर का जेनरेटर खरीदना संभव नहीं है।
दर्द-ए-दास्तां : यूनिट के बाहर मजदूरों के लिए तख्ती लटका रखे हैं बुनकर
पटवा टोली में काम के आधार पर कामगारों को उनकी मजदूरी मिलती है। इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूर असंगठित क्षेत्र के मजदूर कहलाते हैं। इन्हें ईएसआई और ईपीएफ जैसी सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिलती है। ऐसे में कम मजदूरी में भी सालों भर यहां काम नहीं मिलता है।
इस कारण पटवा टोली में काम करने वाले बड़ी संख्या में कामगार दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करने लगे हैं। कामगारों की कमी के कारण पटवा टोली में कई हैंडलूम और पावरलूम यूनिट के बाहर बुनकरों के मालिक वर्ग द्वारा कामगारों की आवश्यकता है लिखकर तख्ती लटका दिया गया है। ताकि उसे देखकर काम के लिए कामगार पहुंच सकें। फिलहाल इन मजदूरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा कोई खास योजना भी नहीं बनायी गयी है।
शिकायतें और सुझाव
1. बुनकर उद्योग में आई गिरावट से पटवा टोली के बुनकरों को आर्थिक संकट सहित परेशानियों को झेलना पड़ रहा है। सरकार बुनकरों की समस्याओं को दूर करे।
2. सरकार ने बुनकरों को कार्यशील पूंजी के रूप में 15 हजार रुपये प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी। अब तक नहीं मिले।
3. बिजली का बिल पहले की तुलना में चार गुना बढ़ गया है। बिजली ट्रिप करने से उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
4. ऑनलाइन मार्केटिंग और बड़े-बड़े ब्रांडों के कारण छोटे-छोटे बुनकरों के उत्पादों की बिक्री कम हो गयी है।
5. काम के अभाव में युवा दूसरे राज्यों में मजदूरी कर रहे हैं। पटवा टोली में बुनकर उद्योग में कामगारों की कमी है।
1. अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस कॉमन फैसिलिटी सेंटर का पटवा टोली में निर्माण हो। कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन लैब, डिजाइनिंग यूनिट और ट्रेनिंग सेंटर होने चाहिए।
2. बिजली की सब्सिडी की राशि सीधे बुनकरों के बिजली बिल में कटौती के रूप में लागू होना चाहिए।
3. समस्याओं के समाधान को ले सरकार, प्रशासन और बुनकर समाज को मिलकर काम करना चाहिए।
4. बिजली संकट का स्थायी समाधान हो। बुनकरों के लिए अलग से इंडस्ट्रियल बिजली लाइन हो।
5. बाजार और बिक्री को बढ़ावा देने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर पटवा टोली के उत्पादों को बेचने की व्यवस्था हो ।
बुनकरों की पीड़ा
भारत सरकार के एमएसएमई योजना के तहत मानपुर प्रखंड में कॉमन फैसिलिटी सेंटर स्थापित करने के लिए अवगत कराया गया है। लेकिन, अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। कॉमन फैसिलिटी सेंटर बन जाने से अच्छे क्वालिटी का कपड़ा बनता और मुनाफा अधिक होता।
-गुलाबचंद प्रसाद।
बुनकरों का कपड़ा महंगा होने का सबसे बड़ा कारण बिजली दर में बेइंतहा बढ़ोतरी। पुराने टेक्नोलॉजी से काम करना। हमलोग लगातार सात वर्षों से बिजली दर में कटौती को लेकर सरकार से मांग कर रहे हैं। लेकिन, कोई सुनने वाला नहीं है।
- प्रेम नारायण प्रसाद।
आर्थिक स्थिति से कमजोर बुनकरों को एक आजीविका का साधन रहा है। 20 वर्ष पहले बुनकरों को सस्ती दर पर बिजली मिलती थी। मौजूदा दिनों मे बिजली दर में बढ़ोतरी कर दिया गया है, जिससे आर्थिक स्थिति से कमजोर बुनकरों को संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है।
-नंदकिशोर प्रसाद।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार के सहयोग के मानपुर प्रखंड के सादीपूरी गांव मे कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाने को लेकर जमीन का अमानटन किया गया था। चार वर्ष बीत जाने के बाद भी सिर्फ बाउंड्री है। काम कब शुरू होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है।
-दुर्गा प्रसाद।
अन्य राज्यों की तुलना में बिहार राज्य मे बिजली की महंगाई बहुत ज्यादा होने के कारण बुनकर महंगाई की मार झेल रहे हैं। हमलोग चाहते हैं कि बिजली पर तीन प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। उसकी जगह पांच प्रतिशत सब्सिडी दी जाए।
-केशो राम।
मानपुर प्रखंड में बुनकरों का एक अपने आप में हब रहा है। आज के दौर में धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है। इसके पीछे सरकार और जनप्रतिनिधि जिम्मेवार हैं।
-गोपाल प्रसाद।
हमलोग पुरखों का व्यवसाय से जुड़े हुए है। आधुनिकता के दौर मे पिछड़ते जा रहे हैं। आधुनिकीकरण होने के कारण व्यवसाय पर गहरा असर पड़ा है। पर्याप्त पूंजी है की आधुनिक मशीन खरीद सके। व्यवसाय के लिए बैंक से लोन भी नहीं दिया जाता है।
-धनेश्वर प्रसाद।
मानपुर शहर में 29 हैंडलूम मशीन का उपयोग किया जा रहा है। हैंडलूम का उपयोग करने वाले व्यवसाय की स्थिति अब बहुत अच्छी नहीं है। जिला प्रशासन द्वारा भी सहयोग नहीं किया जाता है। हैंडलूम कारोबारी को व्यवसाय में गिरावट आने लगी है।
-प्रेम नारायाण प्रमाद।
बुनकर समाज के साथ हमेशा से छलवा किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण बुनकर समाज का नेतृत्व करने वाला कोई भी प्रतिनिधि नहीं होना। यही कारण है कि बुनकर समाज की अवाज को संसद और विधानसभा में नहीं रख पाते हैं।
-गिरधारी लाल।
हमलोग कुशल व्यवसाय हैं। फिर भी बैंक के माध्यम से सहयोग नहीं किया जाता है। अगर मानपुर प्रखंड में कॉमन फैसिलिटी सेंटर की स्थापना हो जाती तो बुनकरों का भाग्य उदय हो जाता। पुराने टेक्नोलॉजी से काम करने के दौरान सेहत पर भी असर पड़ रहा है।
-प्रेम नारायण पटवा।
मानपुर प्रखंड में बुनकरों की संख्या लगभग 10 हजार है। इस काम से जुड़े मजदूरों की संख्या 40 हजार के आसपास है। अब यहां के मजदूर दूसरे शहर में पलायन करने लगे। यहां के बने कपड़े पश्चिम बंगाल,उड़ीसा, झारखंड, पंजाब सहित अन्य राज्यों में जाते थे।
-फलदारी प्रसाद।
मानपुर में 1100 यूनिट बुनकरों का चल रही है। बिजली की आपूर्ति सुचारु रूप से नहीं होने के कारण मजदूरों को काम करने मे परेशानी हो रही है। 24 घंटे में 30 बार बिजली कटती है। इससे मजदूर को मजदूरी नहीं मिल पाता है।
-भगीरथ प्रसाद।
हमलोगों को तकनीकी दौर में जागरूक करने की जरूरत है। जागरूकता की कमी रहने के कारण हमलोग अपना व्यवसाय को सही तरीके से नहीं कर पाते हैं। अभी पूरी व्यवस्था तकनिक पर टिकी हुई है। हुआ है। काम करने में असमर्थ हो
रहे हैं।
-प्रकाश कुमार।
बुनकरो को आधुनिक युग में परीक्षण की दरकार है। इसके लिए मानपुर प्रखंड में कॉमन फैसिलिटी सेंटर की स्थापना हो। सरकार से मांग करने के बावजूद अब तक नहीं हो पाया है।
-दुखन पटवा।
मानपुर प्रखंड में लगभग 11 हजार हैंडलूम और पावरलूम संचालित हैं। लेकिन, सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं। सरकार ने 15 हजार रुपये सहयोग देने की घोषणा हुई थी। अब तक किसी को नहीं मिले।
-सूर्यदेव प्रसाद।
आर्थिक तंगी के कारण दूसरे के यहां काम करता हूं। वहां भी जरूरत के अनुसार मुनाफा नहीं हो पाता है। सरकार को
चाहिए कि आर्थिक स्थिति से कमजोर रहने वाले बुनकरों का सहयोग करे।
-उमाशंकर प्रसाद।
बुनकरों की समस्या हमेशा बनी रहती है। कभी पूंजी अभाव तो कभी मार्केटिंग का अभाव रहता है। सबसे ज्यादा समस्या कम पूंजी वाले कारोबारी को हो रही है।
-गोपाल प्रसाद पटवा।
बुनकरो के लिए सरकार की योजना आती है। सिर्फ कागज पर ही सिमट कर रह जाती है। बहुत पहले मानपुर में परीक्षण के लिए एक मशीन लगाई गई थी। उसे भी यहां से भागलपुर में स्थापित करा दिया गया।
-कृष्णा प्रसाद।
बुनकरों की सबसे बड़ी समस्या है बिजली बिल बढ़ जाना। बिजली की कटौती से कामगार काम करना नहीं चाहते हैं। कामगारों के बुलाने के लिए बोर्ड लगाकर जानकारियां देना पड़ता है।
-नंदु कुमार।
हमलोगों के लिए सरकार किस तरह की योजना चला रहे हैं। इस कारण मिलने वाली सुविधाओं से बंचित रह जाते हैं। इससे आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर हो रही है।
-जितेन्द्र प्रसाद।
प्रस्तुति: रविशंकर/पप्पू।
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