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गयाधाम में हैं तीनों काल के भगवान सूर्य, दूर-दूर तक फैली है महिमा

गयाजी में तीन काल के सूर्य मंदिर हैं, जहाँ श्रद्धालु अन्न-धन, स्वास्थ्य और पुत्र की प्राप्ति के लिए पूजा करते हैं। ये मंदिर द्वापर युग में बने थे और वायुपुराण में इसका वर्णन है। छठ व्रत पर यहाँ भारी...

Newswrap हिन्दुस्तान, गयाMon, 4 Nov 2024 05:03 PM
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गयाजी की प्रसिद्धि पिंडदान, महाबोधि मंदिर, श्री विष्णुचरण मां मंगलागौरी मंदिर के साथ ही सूर्य मंदिर को लेकर भी है। विष्णुनगरी में तीनों काल के भगवान सूर्य के मंदिर हैं। गयाधाम के प्रसिद्ध तीनों मंदिरों की महिमा मगध प्रमंडल के अलावा दूर तक-दूर तक फैली हुई है। सूबे में औरंगाबाद जिले के अलावा गया शहर में ही प्रात:कालीन, मध्यकालीन और सायंकालीन भगवान सूर्य के मंदिर हैं। गयाधाम के प्राचीन तीन सूर्य मंदिरों का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। इसका वर्णन वायुपुराण में है। ऐसी मान्यता है कि इन मंदिरों में भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना से अन्न-धन, स्वास्थ्य और पुत्र की प्राप्ति होती है। छठ व्रत पर सूर्य मंदिरों वाले फल्गु के इन घाटों पर व्रतियों और श्रद्धालु अपार भीड़ होती है। सालों भर दूर-दराज के श्रद्धालु अपनी मनोकामना लिए मंदिरों में पूजा-अर्चना को आते हैं।

फल्गु के तट पर हैं स्थित तीनों काल के मंदिर

मोक्षदायिनी फल्गु के तट किनारे ही तीनों काल के सूर्य मंदिर हैं। पितामहेश्वर घाट पर प्रात:कालीन उतरायण सूर्य भगवान ब्रह्म के रूप में मौजूद हैं। ब्राह्मणी घाट पर मध्याह्न सूर्य भगवान शंकर और देवघाट (सूर्यकुंड) में दक्षिणायन भगवान विष्णु के रूप में हैं। तीनों मंदिरों में छठ व्रत में भारी भीड़ होती है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सूर्यकुंड के प्राचीन सूर्य मंदिर और उगते आदित्य को अर्घ्य देने के लिए पितामहेश्वर व ब्राह्मणी घाट पर भारी भीड़ होती है। सालों भर रविवार को इन मंदिरों में भीड़ होती है। अगहन से लेकर वैशाख तक हर रविवार को व्रतियों विशेष भीड़ जुटती है। विष्णुपद इलाके में स्थित सूर्यकुंड के पश्चिम गेट के सामने स्थित मंदिर में व्रतियों को सबसे ज्यादा भीड़ होती है।

कंचन काया, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति के लिए करते हैं सूर्य की आराधना : आचार्य

आचार्य नवीनचंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि औरंगाबाद के बाद गयाजी में तीन काल के भगवान सूर्य के मंदिर हैं। अतिप्राचीन सूर्यमंदिरों के द्वापर युग में निर्माण व इसकी महत्ता का वर्णन वायुपुराण में वर्णित है। इन मंदिरों का निर्माण वेद व्यास ने कराया था। छठ में इन मंदिरों और घाट पर भारी भीड़ होती। खासकर शाम के वक्त अर्घ्य देने के लिए अधिकतर व्रतियों की भारी भीड़ सूर्यकुंड में होती है। सुबह पितामहेश्व व ब्राह्मणी घाट पर। आचार्य ने बताया कि ब्राह्मणी घाट पर सूर्य सप्तमी के मौके पर भगवान सूर्य को सामूहिक अर्घ्य दिया जाता है। कहा जाता है कि कंचन काया, सुख-समृद्धि व पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ति के लिए इन मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। आचार्य ने कहा कि तीनों काल के सूर्य मंदिरों का वर्णन वायुपुराण के अलावा हिमाद्रि ग्रंथ (चर्तुवर्ग चिंतामणि ग्रंथ) में भी है।

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