जिलास्तर पर साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन हो
गया शहर, जो हिंदी, उर्दू और मगही साहित्य का प्रमुख केंद्र है, आज साहित्यकारों की उपेक्षा का शिकार हो रहा है। साहित्यकारों को सरकारी सहायता और सम्मान नहीं मिल रहा है, जिससे उनकी स्थिति दयनीय हो गई है।...
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धार्मिक महत्ता वाले प्राचीन गया शहर कई विशेषताओं से भरा है। धर्म व गीत-संगीत के साथ कला व साहित्य के क्षेत्र में मगध की इस भूमि की अपनी विशेष पहचान है। साहित्यकारों के लिए गया की भूमि उर्वरा रही है। मोहन लाल वियोगी, हंस कुमार तिवारी, रामनिरंजन परिमलेंदु, राजदेव शर्मा और गोवर्द्धन प्रसाद सदस्य जैसे बड़े साहित्यकार की धरती रही है। गया हिंदी, उर्दू व मगही साहित्य का प्रधान केंद्र रहा है। लेकिन, आज साहित्यकारों की स्थिति अच्छी नहीं है। साहित्य की फसलें बिना सुविधाओं की अच्छे से खिल नहीं पा रही है। साहित्यकार, कवि लेकर शायर तक सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं। किसी तरह की कोई योजना इन सबों के लिए नहीं है। गया जिले में दो सौ से अधिक कवि, शायर व साहित्यकार हैं। हिंदी, उर्दू व मगही साहित्य के क्षेत्र से हैं। शहर के अलावा ग्रामीण इलाकों में इनकी भूमिका है। टिकारी, मैगरा और शेरघाटी भी साहित्यकारों व कवियों की भूमि है। आज समाज के प्रबुद्धजनों पर सरकार की नजर नहीं है। मोबाइल युग ने परेशानी बढ़ा रखी है। गया शहर के साहित्यकार व गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र बताते हैं कि यहां साहित्यकार उपेक्षित हैं। उपेक्षा के कारण प्रतिभा होने पर भी बढ़िया मंच नहीं मिल पा रहा है। सरकारी सहायता नहीं मिल रही। प्रोत्साहन भी नहीं। साहित्यकारों की स्थिति काफी दयनीय है। जिला प्रशासन या राज्य सरकार की ओर से कोई सम्मान या आर्थिक मदद नहीं मिल रही है।
किसी प्रकार का प्रशासनिक सहयोग नहीं मिलने से साहित्यकारों का उत्थान रुका हुआ है। महामंत्री सुमंत कहते हैं कि प्रशासन की ओर से जिले में कहीं भी साहित्यकारों के लिए कोई भवन है। कोई ऐसी जगह नहीं है जहां चार-पांच साहित्यकार बैठकर विचार-विमर्श कर सकें। गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन का अपना कार्यालय है। यहां सिर्फ शहर के साहित्यकार व कवि जुट पाते हैं। सरकारी भवन होता तो साहित्य के नए-नए पौधे उगते। आज गया में साहित्य की दशा व दिशा अलग होती।
मोबाइल युग साहित्यकारों की बड़ी समस्या : आज बच्चों के हाथ में किताब व की जगह मोबाइल है। युवाओं का साहित्य नहीं मोबाइल पर आकर्षण है। ऐसे में नयी पीढ़ी की रुचि साहित्य,कविता या शायरी की तरफ कम गयी है। साहित्यकार व गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त मंत्री डॉ. राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि कहते हैं कि आज का मोबाइल युग साहित्य की सबसे बड़ी समस्या है। नए साहित्यकार को सुनने के लिए सभा में लोग नहीं जाते हैं। कविता, उपन्यास या शायरी की किताब की जगह मोबाइल ने ले लिया है। साहित्य और संस्कृति को बबार्द कर रहा है मोबाइल युग। बताया कि समस्याओं में एक साहित्यकारों की रचनाओं का नहीं छपना है। बाहर के प्रकाशक पैसे लेकर रचनाएं छाप तो देते हैं। लेकिन, प्रकाशित पुस्तकों के वितरण की जिम्मेवारी रचनाकार के ऊपर लाद देते हैं। गया में एक भी अच्छे प्रकाशक नहीं हैं। ऐसे में रचनाएं बस पन्नों में सिमट कर रह जा रही है। सरकारी स्तर से साहित्य का प्रकाशन हो तो साहित्य आगे बढ़ेगा। लोगों को अलग-अलग साहित्य पढ़ने को मिलेंगे। सरकारी का निजी स्तर पर साहित्य समारोह का आयोजन नहीं हो रहा है। समारोह का आयोजन करने से साहित्य को बढ़ावा मिलेगा।
प्रकाशक की बांट जो रहीं कई साहित्यकारों की पांडुलिपियां
साहित्यकारों की उपेक्षा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है गया में कई प्रसिद्ध बडे़ साहित्यकारों की पांडुलिपियां धूल फांक रही हैं। मोहनलाल वियोगी, हंस कुमार तिवारी व गोवर्द्धन प्रसाद सदय जैसे बड़े साहित्यकारों की पंडुलिपियां आज भी प्रकाशक की बाट जो रही हैं। उपेक्षा का हाल यह है कि गया में एक भी सड़क,हॉल या सार्वजनिक स्थल साहित्यकारों के नाम पर नहीं हैं।
रेलवे स्टेशन हो या अन्य कहीं भी एक भी साहित्यकार की तस्वीर नहीं है। जिले में कहीं भी सार्वजनिक स्थलों पर साहित्यकारों की प्रतिमा नहीं है। आज तक यहां के साहित्यकारों के नाम पर कोई समारोह का आयोजन तक नहीं हुआ है। पं.मोहनलाल महतो वियोगी, हंस कुमार तिवारी, रामनरेश पाठक,डॉ.राम निरंजन परिमलेन्दु,डॉ.ब्रजमोहन पांडे नलिन, सुशीला सहाय,पं. गोपाल लाल सिजुआर, डॉ.रामप्रसाद सिंह, गोवर्द्धन प्रसाद सदय के नाम पर कार्यक्रम नहीं होने का मलाल है। साहित्यकार सुमंत कहते हैं कि पहले राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत 12 सदस्यों में एक साहित्यकार कवि होते थे। लेकिन,अब ऐसा नहीं है।
बिहार के राजभाषा विभाग का भी यही हाल है। साहित्यकारों ने बताया कि जिला स्थापना दिवस पर जिला प्रशासन की ओर भव्य आयोजन होता है। लेकिन, साहित्यिक प्रतियोगिता नहीं करायी जाती। साहित्यकारों को मंच नहीं दिया जाता। उर्दू शायर व साहित्यकार खालिक हुसैन परदेशी ने बताया कि हिंदी व मगही के साथ ही उर्दू साहित्य पर भी ध्यान नहीं है। उर्दू साहित्य जगह मशहूर केंद्र होते हुए गया में इसका ख्याल नहीं रखा जा रहा है। सरकार को इस ओर ध्यान देकर साहित्यकारों का मनोबल बढ़ना चाहिए। युवाओं को भी मोबाइल से हटकर साहित्य की ओर झुकाव होना चाहिए।
आजाद पार्क को समस्याओं से आजादी चाहिए
जिले में कहीं भी सरकारी स्तर पर साहित्यकारों के लिए कोई भवन नहीं है। शहर के हृदयस्थली में अंग्रेज जमाने के आजाद पार्क में इनका आशियाना है। आजाद पार्क की धरती पर गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन का भवन है।
1949 में डीएम रहे साहित्य प्रेमी जगदीश चंद्र माथुर ने हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की थी। हंस कुमार तिवारी पहले सभापति और शिवनंदन प्रसाद महामंत्री रहे। आजाद पार्क में बना भवन ही साहित्यकारों का पनाहगाह है। जो भी साहित्य,कविता या या शायरी फल-फूल रही है इसी भवन में है। लेकिन,आज आजाद पार्क की स्थिति बेहद खराब है। साहित्यकार संतोष कुमार क्रांति कहते हैं कि गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, जिले के साहित्यकार की तरह आजाद पार्क भी उपेक्षित है। यहां साफ-सफाई से लेकर पेयजल की कमी भी साहित्यकार झेल रहे हैं।
दिनभर जुआ खेलने वालों का लगा रहता है जमावड़ा : आजाद पार्क के पश्चिमी हिस्से में बने जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के भवन में साहित्यकार बैठते हैं। बीच पार्क और सभा स्थल के आसपास जुआरियों का जमावड़ा लगा रहता है। सुबह से झुंड-झुंड में जुआड़ी बैठकर ताश खेलने लगते हैं। दोपहर से लेकर शाम तक भारी भीड़ होती है। साथ ही शाम होते ही नशेडियों का जमावड़ा लग जाता है।
करीब दो सौ साल पुराना है पार्क
आजाद पार्क का इतिहास काफी पुराना है। साहित्यकार डॉ. राकेश कुमार सिन्हा रवि बताते हैं करीब दो सौ साल पहले अंग्रेजों ने इसका निर्माण कराया था। पिलग्रिम अस्पताल (जेपीएन) के साथ ही इसका निर्माण हुआ था। पूरब से पश्चिम 400 फुट और उत्तर से दक्षिण 600 फुट है। आजादी के पहले इसका नाम बीटी पार्क था। स्वतंत्रता के बाद इसका नाम बदला। बताया कि शहर के हृदय स्थली में पार्क होने की वजह आजादी के दीवाने यह सभा करते थे। यहां देश के कई दिग्गज नेताओं की सभा की है।
सुझाव और शिकायतें
1. गया में साहित्यकारों के नाम विशाल सभा भवन का होना आवश्यक है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में भवन का निर्माण होना जरूरी है।
2. गया के चौक-चौराहे पर गया के प्रसिद्ध साहित्यकारों की प्रतिमाएं लगनी चाहिए। उनके नाम पर सड़क या पार्क का नामकरण होना चाहिए।
3. साहित्यकारों का सम्मान होना चाहिए। जिलास्तर पर समय-समय पर सम्मानित किए जाने से उनके साहित्यिक क्षमता में निश्चित रूप से अभिवृद्धि होगी।
4. रेलवे स्टेशन,बस स्टैंड और सार्वजनिक स्थलों पर गया के साहित्यकारों की तस्वीर और उनके कृतियों से जुड़ी प्रेरणादायी युक्तियां अंकन किए जाने की आवश्यकता है।
5. गया मगही साहित्य का पुराना गढ़ रहा है। इसीलिए गया के मगही साहित्यकारों पर विशेष रूप से फोकस किया जाना चाहिए।
1. पुराने जमाने से गया हिंदी, उर्दू और मगही साहित्य का प्रधान केंद्र रहा है। यहां साहित्यकारों के नाम से एक भी सभा भवन प्रशासनिक स्तर से उपलब्ध नहीं है।
2. गया में चौक-चौराहे पर साहित्यकारों की प्रतिमाएं और गया की सड़क व गलियों का नाम साहित्यकारों के नाम पर नहीं होना दु:खद है।
3. यहां कितने ही साहित्यकार अपनी पांडुलिपि प्रकाशन के लिए प्रयासरत हैं। इसके लिए प्रशासनिक स्तर से सहयोग नहीं मिलता है।
4. साहित्यकारों के नाम सालाना उत्सव का आयोजन नहीं हो रहा है। सरकारी स्तर पर आज तक गया के साहित्यकारों का कोई भी परिचय पुस्तिका नहीं निकली है।
5. गया में साहित्यकारों के लिए कोई वार्षिक अथवा मासिक उत्सव या प्रतियोगिता का अभाव है। कारण सृजनशीलता की भावना का विकास रुका हुआ है।
साहित्यकारों ने रखी बातें
गया पुराने साहित्यकारों का गढ़ रहा है। लेकिन, यहां एक भी सड़क, हॉल या सार्वजनिक स्थल साहित्यकारों के नाम पर नहीं है। अन्य रेलवे स्टेशन की भांति गया रेलवे स्टेशन पर भी प्रतिष्ठित साहित्कारों की तस्वीर लगाई जाए।
- डॉ. राकेश कुमार सिन्हा 'रवि '
गया के साहित्कारों के नाम पर राज्यस्तरीय समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए। साथ ही शहर के सार्वजनिक स्थल चौंक-चौराओं पर उनकी प्रतिमा स्थापित की जाए।
-सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र
गया मगही का गढ़ है। ऐसे में यहां सरकारी स्तर पर प्रतिवर्ष मगही का कार्यक्रम होना चाहिए, जिससे कि यहां के युवाओं में साहित्य के प्रतिति जागरूकता बढे़ और वहमोबाइल छोड़कर भी साहित्य की ओर आकर्षित होकर किताबों कें रुचि लें।
-मुद्रिका सिंह
गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन और गया जिले के साहित्कार दोनों लगभग एक दशक से प्रशासनिक रूप से उपेक्षित है। इस पर विचार किये जाने की आवश्यकता है। जिला प्रशासन को इसके लिए पहल करनी चाहिए।
- संतोष कुमार क्रांति
गया साहित्कारों की उर्वर भूमि रही है। कुछ एक साहित्कारों को छोड़ दे तो विभिन्न साहित्यकों की रचनाओं को किसी बड़े प्रकाशक ने नहीं छापा है। मोहनलाल वियोगी, हंस कुमार तिवारी, गोवर्द्धन प्रसाद सदय जैसे बड़े साहित्कारों की पंडुलिपियां आज भी प्रकाशक की बांट जोह रही है।
-सुमंत
जिला प्रशासन की ओर से स्थापना दिवस पर विभिन्न प्रकार के आयोजन किये जाते हैं। लेकिन, साहित्यक प्रतियोगिता नहीं करायी जाती है। अगर साहित्यिक प्रतियोगिता आयोजित हो तो बेहतर रहता ।
-शंकर प्रसाद
यहां के सभास्थल या सभागार का नाम साहित्यकारों के नाम पर होना चाहिए, जिससे कि यहां के लोग इन साहित्कारों के बारे में जान सके।
-नन्दकिशोर सिंह
अगर साहित्कारों की पुस्तके रियायती दर पर सरकारी सहयोग से छपे तो साहित्य का भंडार और बढे़गा। लोगों को अलग अलग साहित्य पढ़ने को मिलेंगे।
- डॉ. निरंजन श्रीवास्तव
हिंदी साहित्य सम्मेलन में आकर बैठने से साहित्यकारों को रचना लिखने की प्रेरणा मिलती है। साहित्यकारों के सामने बड़ी समस्या है कि उनकी रचनाएं समय पर प्रकाशन नहीं होने से मनोबल टूट जाता है।
- प्रो. सुनील कुमार सिंह
नये साहित्यकों के सामने बड़ी समस्या है। इन नये सहित्यकारों को दर्शक दीर्घा से मंच तक आने का मार्ग कंटकयुक्त है। लोग अब किताब पढ़ना भूल गये हं। मोबाइल से ही चिपके रहते हैं। -विनोद बरबिगहिया
जिले के पत्रकार उपेक्षित हैं। प्रशासनिक सहयोग किसी प्रकार से नहीं होता है। अब यहां के साहित्कारों को प्रशासनिक सहयोग मिल जाए तो और उनका उत्थान हो सकता है।
- विजय श्री
साहित्यकारों की स्थिति काफी दयनीय है। जिला प्रशासन या राज्य सरकार की ओर से समुचित सम्मान व आर्थिक मदद मिलना चाहिए। इससे उत्साह बढ़ेगा।
- सहज कुमार
जिले के पत्रकार उपेक्षित हैं। प्रशासनिक सहयोग किसी प्रकार से नहीं होता है। अब यहां के साहित्कारों को प्रशासनिक सहयोग मिल जाए तो और उनका उत्थान हो सकता है।
- विजय श्री
महिलाओं को साहित्य के क्षेत्र में लाने का प्रयास करना चाहिए। महिला साहित्यकारों व कवयित्रियों को एक मंच पर लाने के लिए महिला दिवस के लिए कार्यक्रम आयोजित करा सम्मानित करना चाहिए।
-अंजू कुमारी
ऐसे कोई जगह नहीं है जहां पांच से दस साहित्यकार बैठकर विचार विमर्श कर सके। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर कहीं साहित्यकारों के लिए इस तरह की व्यवस्था करनी चाहिए।
-डॉ. चंद्रशेखर सिंह, साहित्यकार।
जिले में साहित्यकारों की कमी नहीं है। बस उन्हे प्रोत्साहित करने के लिए प्रशासनिक सहयोग करने की जरूरत है। कहीं साहित्यकारों के लिए कोई भवन प्रशासनिक सहयोग से नहीं है।
- शिवेन्द्र कुमार सिन्हा, साहित्यकार।
युवा वर्ग की अभिरुचि साहित्य के प्रति कम हो गयी है। वह इंटरनेट की दुनिया में जी रहे है। गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन युवा साहित्यकारों को साहित्य से जोड़ना चाहता है।
-उदय सिंह
साहित्य समारोह का आयोजन सरकारी स्तर पर बीच-बीच में होना चाहिए। इससे आजकल के युवा जो मोबाइल में दिन रात लगे रहते है। उनका झुकाव साहित्य की ओर होगा।
-शैलेश कुमार
गया जिले में उर्दू साहित्य से जुड़े मंच की स्थापना सरकारी सहयोग से जरूरी है। ऐसे भी गया उर्दू साहित्य का मशहूर केंद्र रहा है।
-खालिक हुसैन परदेशी
पहले राष्ट्रपति द्वारा मनोनित 12 सदस्यों में से एक साहित्यकार कवि भी होते थे। लेकिन, अब यह नहीं हो पा रहा है। यही हालत बिहार की राजभाषा विभाग की है।
-गजेन्द्र लाल अधीर
प्रस्तुति: सुजीत कुमार/राजेश कुमार
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