Hindi NewsBihar NewsGaya NewsFailed Initiatives to Curb Opium Cultivation in Naxal-Affected Barachatti

बाराचट्टी में धड़ल्ले से हो रही अफीम की खेती

फोटो न्यूज मादक पदार्थ की खेती रोकने के लिए प्रत्येक साल बनायी जाती हैं

Newswrap हिन्दुस्तान, गयाWed, 18 Dec 2024 06:30 PM
share Share
Follow Us on

नक्सल प्रभावित बाराचट्टी में 22 साल से प्रतिबंधित मादक पदार्थ अफीम की खेती रोकने की दिशा में पुलिस-प्रशासन की पहल विफल साबित हो रही है। पुलिस प्रशासन की ओर से प्रतिबंधित मादक पदार्थ की खेती रोकने की दिशा में प्रत्येक साल योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन तस्कर तमाम योजनाओं पर हावी हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बाराचट्टी इलाके में साल 2004 से अफीम और गांजे की खेती की शुरुआत हुई थी। साल 2005 में इसका खुलासा तब हुआ था जब मगध जोन के डीआईजी अरविंद कुमार की अगुवाई में सुरक्षा बलों की टीम ने पिपराही गांव जाकर बड़े पैमाने पर गांजा और अफीम को बरामद किया था। पुलिस प्रशासन की बड़ी कार्यवाही के बाद भी अफीम की खेती का धंधा रुका नहीं, बल्कि और तेजी से बढ़ने लगा।

नक्सल प्रभावित इलाके में की जाती है खेती

प्रतिबंधित मादक पदार्थ अफीम की खेती ज्यादातर नक्सल प्रभावित इलाकों में की जाती है। संबंधित इलाकों में सुरक्षा बलों के कदम यदाकदा नक्सली इलाकों में पहुंचते थे, जिसका फायदा तस्कर उठाते हैं। जानकारी के अनुसार दूसरे राज्यों के तस्कर भी कुछ स्थानीय लोगों को पट्टे पर रखकर खेती करवा रहे हैं। बाराचट्टी के भलूआ, जयगीर, बुमेर पंचायत के अलावा धनगांई थाना क्षेत्र के पतलुका, झाझ पंचायत के इलाके में बड़े पैमाने पर फसल लगाई गई है। अफीम की फसल अमूमन अक्टूबर महीने में लगाई जाती है। ढाई से तीन महीने के बाद इससे अफीम निकलना शुरू हो जाता है। अफीम की खेती काफी फायदेमंद खेती मानी जाती है इसमें अफीम की फसल से तरल अफीम के अलावा पोस्ता दाना और उसके डंठल से डोडा बनाया जाता है। इस कारण तस्करों को यह धंधा काफी लुभाता है।

वन और सरकारी भूमि पर लगाई जाती है फसल

बाराचट्टी थाना क्षेत्र के दक्षिणी जोन के इलाके में वन और सरकारी भूमि पर फसल लगाई जाती है। लोगों का कहना है कि सितंबर महीने में जब वन भूमि एवं सरकारी भूमि का जेसीबी के माध्यम से समतलीकरण किया जाता है। उस दौरान इस पर रोक लगनी चाहिए थी। मगर संबंधित इलाके के विभागीय कर्मियों द्वारा उदासीनता बरते जाने के कारण यह धंधा मजे से फल-फूल रहा है। वनों के क्षेत्र पदाधिकारी शशि भूषण चौहान ने बताया कि वन भूमि पर फसल लगाने वालों के खिलाफ लगातार मुकदमा किया जा रहा है।

हरियाणा और पंजाब के इलाके में भेजी जाती है तरल अफीम और डोडा

बाराचट्टी के इलाके से उत्पादित तरल अफीम और डोडा चूर्ण को ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के इलाकों में भेजा जाता है। बाराचट्टी इलाके के तस्करों के तार संबंधित राज्यों के तस्करों से जुड़े हैं। जानकारी के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में अफीम और डोडा की काफी डिमांड है और अच्छी कीमत भी मिलती है। पिछले कुछ महीनो में पंजाब और हरियाणा के कई तस्कर भी बाराचट्टी इलाके से गिरफ्तार हुए हैं। मादक पदार्थ को भेजने के लिए स्थानीय तस्कर इलाके के होटल के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड या मदनपुर सीमा तक जाकर डिलीवरी करते हैं।

अफीम का हब जोन बन गया है बाराचट्टी

अफीम की खेती को लेकर बाराचट्टी की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो गई है। इस कारण संबंधित इलाका अफीम के हब जोन के रूप में चिन्हित हो गया है। इलाके के युवाओं को यह धंधा काफी आकर्षित करता है। नतीजतन युवाओं का झुकाव संबंधित धंधे की ओर हो गया है। अफीम की काली कमाई लोगों को इतनी आकर्षित कर रही है की मुकदमा दर मुकदमा दर्ज होने के बाद भी धंधा थम नहीं रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अफीम की काली कमाई का प्रभाव आने वाली नई पीढ़ी पर भी पड़ रहा है। जिस कारण समाज का माहौल विषाक्त होते जा रहा है।

तस्करी रोकने के लिए वन भूमि पर बने होटलो को किया गया था ध्वस्त

बाराचट्टी इलाके से अफीम की तस्करी रोकने के लिए जीटी रोड के किनारे वनभूमि पर बने कई होटल को नष्ट किया गया था। तब के तत्कालीन जिला वन पदाधिकारी अभिषेक कुमार की अगुवाई में सुरक्षा बलों ने बाराचट्टी से भलुआ तक के कई लाईन होटल को ध्वस्त किया था। संबंधित इलाके में जेसीबी मशीन के माध्यम से ट्रेंचिंग की गई थी ताकि संबंधित भूमि पर किसी तरह का निर्माण न हो सके। जिला प्रशासन अफीम की खेती रोकने के लिए नारकोटिक्स, आबकारी, पुलिस, वन विभाग की टीम के साथ प्रत्येक साल बैठक करती है। मगर बैठक का प्रभावी रूप जमीन पर नहीं उतर रहा है। प्रत्येक साल फसलों को नष्ट किया जाता है। इस दौरान जेसीबी मशीन एवं ट्रैक्टर का उपयोग किया जाता है। अच्छी खासी राजस्व खर्च कर फसलों को नष्ट करने की कार्रवाई की जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर सितंबर महीने में ही पूरे मुस्तैदी से प्रशासन सजग हो जाए तो तस्कर अफीम की फसल लगाएंगे ही नहीं।

अफीम की जगह वैकल्पिक खेती को दिया जाए बढ़ावा

नक्सल प्रभावित इलाके में अफीम की खेती की जगह वैकल्पिक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। हालांकि पूर्व के वर्षों में तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक कुमार के नेतृत्व में बाराचट्टी के नक्सल प्रभावित इलाकों में लेमनग्रास की खेती को बढ़ावा देने की पहल शुरू की गई थी। इसके तहत कुछ इलाकों में लेमनग्रास लगाई गई थी। लोगों का झुकाव भी इस ओर काफी तेजी से हो रहा था। लेकिन इस खेती को व्यापक रूप बाद के दिनों में नहीं दिया जा सका।

22 साल के दौरान 300 से ज्यादा लोगों पर हुए हैं मुकदमा दर्ज

अफीम की खेती और तस्करी करने मामले में तीन सौ से ज्यादा लोगों पर मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। इनमें से सौ से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। कई अभियुक्त अब भी फरार चल रहे हैं। थाना प्रभारी उमेश प्रसाद ने बताया कि अफीम की खेती और तस्करी करने मामले में शामिल आरोपियों के गिरफ्तारी को लेकर पुलिस सजग है। तस्करों की लगातार गिरफ्तारी की जा रही है एवं उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें