श्रीमद भगवात ज्ञान यज्ञ के जलभरी में उमड़ी महिलायों की भीड़
श्रीमद भगवात ज्ञान यज्ञ के जलभरी में उमड़ी महिलायों की भीड़महिला व पुरूष बैंड बाजे के साथ कुजापी सूर्य पोखरा से जल भर यज्ञशाला तक...
श्रीमद भगवात ज्ञान यज्ञ के जलभरी में उमड़ी महिलायों की भीड़
महिला व पुरूष बैंड बाजे के साथ कुजापी सूर्य पोखरा से जल भर यज्ञशाला तक पहुंचे
संध्या में श्री स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज द्वारा ज्ञानामृत की वर्षा हुयी
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गया। निज संवाददाता
शहर के डेल्हा खरखुरा संगम चौक के समीप श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन शुक्रवार को जलभरी की गयी। सुबह से काफी संख्या में महिलायें रंगीन परिधानों में यज्ञशाला में पहुंच कलश लेने को इच्क्षुक दिखी। लाल व पीली साड़ियों में सिर पर जय माता दी के पटटा लगाये महिलाये हाथों में कलश व नारियल लेकर जलभरी यात्रा में शामिल हुयी। इसके पहले मंत्रोचार के साथ पूजन कर इसकी शुरूआत की गयी। बैंड बाजे के साथ निकली जलभरी यात्रा में पुरूषों से ज्यादा महिलाये दिखी। सभी लोग सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुये कुजापी सूर्य पोखरा तक गयी । जहां से कलश में जलभर यज्ञशाला तक पहुंची जहां महिलायों को आयोजन समिति द्वारा फलाहार भी कराया गया। वहीं संध्या में स्थानाधीश हुलासगंज जहानाबाद के श्री स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज द्वारा ज्ञान अमृत की वर्षा हुयी।
मरणासन व्यक्ति को श्रीमद भागवत कथा सुनने से मिलती है मुक्ति
महाराज जी ने कहा कि मरणासन पर रहे व्यक्ति को अगर श्रीमद भागवत कथा सुनायी जाये तो उसे मुक्ति मिल जाती है। कलयुग में भूमण्डल के प्रथम राजा परिक्षीत हुए थे। वे शिकार के दृष्टि से सेना लेकर वन में घूम रहे थे। उन्हें जोर से प्यास लग गयी थी उनकी दृष्टि आश्रम पर परी जो समीक मुनि का था वे महात्मा वधमासन पर बैठकर नारायण का ध्यान कर रहे थे। राजा ने सोचा की आश्रम में जल अवश्य होगा ,राजा उसके अंदर प्रवेश करने लगे। उन्होंने कलयुग को एक वरदान दिआ था की सुवर्ण हो उसके पास तुम रहना। राजा परिक्षीत सुवर्ण के मुकुट पहने हुए थे। कलयुग का प्रभाव राजा परिक्षीत पर आ गया इससे राजा की भावना दुसित हो गया, राजा को ऐसा लगा की ,महात्मा छल से आँख बंद कर लिए हैं ताकि राजा का स्वागत नहीं करना परे ,राजा महात्मा को देख कुपित हो गए ,उन्होंने मृत सर्प लेकर महात्मा के गले में डाल दिए। राजा परिक्षीत अपने राजधानी चले गए। श्रृंगी कुपित होकर श्राप दिया की जो मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है उसे आज से सातवे दिन तक्षक नाम का सर्प डसेगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी। राजा परिक्षीत को ये बात ज्ञात हो गयी। अपने पुत्र जन्मेजय को राजा बनाकर स्वयं गंगा किनारे जाकर बैठ गए। वहां श्री सुकदेव जी भी आ गए उन्हें बिधिवत पूजन कर राजा परिक्षीत ने पूछा की जो व्यक्ति मरनासन हो रहा है । उसे कैसे मुक्ति हो सकती है इसी रहस्य को समझाने के लिए श्री सुकदेव जी ने राजा परिक्षीत को श्रीमद्भागवत का उपदेश दिया।
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