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साहित्य में एआई की भूमिका अनुपयोगी : डॉ. मिश्र

दरभंगा में आयोजित पांच दिवसीय संस्कृत अनुवाद दक्षता संवर्धन कार्यशाला में डॉ. अरुण रंजन मिश्र ने कहा कि अनुवाद में शब्दों का सही चयन और भाव का सही प्रदर्शन आवश्यक है। कार्यशाला में लगभग 40...

Newswrap हिन्दुस्तान, दरभंगाSun, 9 March 2025 04:02 AM
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साहित्य में एआई की भूमिका अनुपयोगी : डॉ. मिश्र

दरभंगा। संस्कृत में अनुवाद के क्रम में अनेक भाषाओं के शब्दों का प्रयोग हुआ है। शब्द की दृष्टि से संस्कृत भाषा समृद्ध भाषा है। साहित्य से इतर विषयों में मशीनी अनुवाद (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) मददगार हो सकता है, लेकिन साहित्य में यह कदाचित उपयोगी नहीं है। पूर्व भारतीय भाषा समिति, नई दिल्ली एवं कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय संस्कृत अनुवाद दक्षता संवर्धन कार्यशाला में शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल के सेवानिवृत प्राचार्य डॉ. अरुण रंजन मिश्र ने उक्त बातें कही। संस्कृत में प्रयुक्त शब्दों के अनुवाद में प्रयोग विधि पर चर्चा करते हुए डॉ. मिश्र ने कहा कि जिस ग्रंथ का प्रभाव एवं प्रसिद्धि समाज में सबसे ज्यादा हो उसका अनुवाद आवश्यक होता है। अनुवादकों की योग्यता की चर्चा करते हुए कहा कि अनुवादक को जिस भाषा से जिस भाषा में अनुवाद करना है- उन दोनों भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है। भाषा के साथ संस्कृतियों का ज्ञान भी जरूरी है। मात्र शब्दों का अनुवाद करने से अनुवाद की पूर्णता नहीं होती, अपितु उनका भाव भी व्यक्त होना आवश्यक है। संस्कृत भाषा में एक शब्द के लिए अनेक पर्यायवाची शब्द उपलब्ध हैं। शब्दों का चयन सावधानी पूर्वक करना चाहिए। पीआरओ निशिकांत ने बताया कि कार्यशाला का उद्घाटन पूर्व कुलपति प्रो. रामचंद्र झा, कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय, डीएसडब्ल्यू डॉ. शिवलोचन झा, डॉ. ममता पांडेय ने किया। संयोजक डॉ. यदुवीर स्वरूष शास्त्री ने विषय प्रवर्तन करते हुए सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम में सीसीडीसी डॉ. दिनेश झा, डॉ. शंभु शरण तिवारी, डॉ. रितेश कुमार चतुर्वेदी, डॉ. एल सविता आर्या सहित लगभग 40 प्रतिभागी शामिल रहे।

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