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प्राथमिक शिक्षा का आधार संग मैथिली में हो शब्दकोष

मैथिली एक प्राचीन भाषा है, जिसकी लिपि, व्याकरण और साहित्यिक धरोहर समृद्ध है। हालांकि, यह भाषा पिछड़ी हुई है और नई पीढ़ी की रुचि में कमी आई है। साहित्यकारों ने सरकारी उपेक्षा को इस स्थिति का कारण बताया...

Newswrap हिन्दुस्तान, दरभंगाThu, 6 March 2025 02:52 AM
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प्राथमिक शिक्षा का आधार संग मैथिली में हो शब्दकोष

मैथिली प्राचीन भाषा है। इसका प्रयोग संस्कृत विद्वान मातृभाषा के तौर पर करते थे। इसकी अपनी लिपि, व्याकरण नियम व समृद्धशाली साहित्यिक विरासत है। इसी बल पर आधुनिक दौर में मैथिली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हुई। इसके माध्यम से आज विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बीपीएससी-यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित प्रतियोगिता परीक्षाओं का भी माध्यम मैथिली बनी हुई है। झारखंड में इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। मैथिली साहित्यकार सरकारी पुरस्कार से नवाजे जाते हैं और विश्व क्षितिज पर मैथिली का परचम लहरा रहा है। इसके बावजूद मैथिली भाषा पिछड़ी-दबी हुई है। इसका भाषाई विकास अवरुद्ध है और नई पीढ़ी की अभिरुचि से मैथिली दूर हो रही है। इस कारण मैथिली साहित्यकारों में आक्रोश व्याप्त है। साहित्यकार इस स्थिति का जिम्मेवार सरकारी उपेक्षा को मानते हैं। साहित्यकार बताते हैं कि सरकारी उदासीनता के चलते ही मैथिली बिहार की राजभाषा नहीं बन सकी है और शास्त्रीय मान्यता प्राप्त करने में भी पिछड़ गई है। मैथिली के चर्चित साहित्यकार कमलेश मिश्र बताते हैं कि प्राचीन मैथिली शब्द मर रहे हैं। देशज शब्द के स्थान पर विदेशी शब्दों को मैथिली भाषा में पिरोने का चलन बढ़ रहा है। इससे भाषाई विकृति उत्पन्न हो चुकी है। साथ ही पनपियाई, जलखै, भिनसर जैसे परंपरागत ग्रामीण मैथिली शब्द प्रयोग से बाहर हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि व्याकरण सम्मत मैथिली भाषा को संरक्षण की आवश्यकता है। इसके विकास के लिए जमीनी पहल होनी चाहिए। मैथिली साहित्य के शलाका पुरुष डॉ.भीमनाथ झा भी इसे स्वीकारते हैं। बताते हैं कि मातृभाषा मैथिली का विकास समय की मांग है। इसका विकास होगा, तभी मिथिला क्षेत्र और स्थानीय आबादी विकसित बनेगी। साथ ही भाषाई विकृति पर विराम लगेगा। उन्होंने बताया कि अब इसे विकास मानिए या विनाश, पर आधुनिक डिजिटल युग में भाषाई क्षरण हो रहा है। सभी भाषाएं इससे प्रभावित हैं क्योंकि जानकार लोगों का अभाव है। इसी के चलते मैथिली भाषा में भी विकृति उत्पन्न हुई है। उन्होंने बताया कि मैथिली में संस्कृत तद्भव शब्दों की प्रचुरता थी, पर अब फारसी और अंग्रेजी के शब्दों की बहुलता है। आम लोग और साहित्यकार न चाहते हुए भी इसका प्रयोग कर रहे हैं। आलोचकों ने भी पुरानी और नई मैथिली का नाम देकर स्वीकार लिया है। इससे परंपरागत मैथिली भाषा के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। साहित्यकार प्रो. भास्कर नाथ ठाकुर, कवियित्री मुन्नी मधु, शीला मिश्रा, हरिचंद हरित, मिथिलेश कुमार झा आदि बताते हैं भाषाई विकास का मूल आधार ही नहीं है। मैट्रिक के सिलेबस में यह ऐच्छिक विषय के रूप में शामिल है। इसके बावजूद मैथिली प्राथमिक शिक्षा का माध्यम नहीं बनी। इससे नई पीढ़ी को मैथिली का परंपरागत ज्ञान नहीं मिल रहा है। साहित्यकारों ने बताया कि मैथिली भाषा के लिए यह खतरनाक हालत है। मैथिली बुद्धिजीवियों को इसकी स्मिता के रक्षार्थ आवाज उठानी चाहिए।

प्रारंभिक शिक्षा के लिए मिली हुई है स्वीकृति: मैथिली भाषा की स्थिति से दुखी साहित्यकार नबो नारायण मिश्र, कामेश्वर झा कमल आदि बताते हैं कि बिहार सरकार ने वर्ष 1950 में मैथिली भाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा देने की स्वीकृति दी। सैकड़ों प्राथमिक शिक्षा स्तर की मैथिली पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। फिर राजनीति उठापटक से शिक्षा विभाग ने प्राथमिक विद्यालयों में पठन-पाठन का माध्यम बनाने की कवायद ठंडे बस्ते में डाल दी। इसके बाद सैकड़ों बार सरकारी आश्वासन दिया गया, पर पहल नहीं हुई। साहित्यकारों ने बताया कि मैथिली बिहार की इकलौती संवैधानिक मान्यता प्राप्त मातृभाषा है। उच्च शिक्षा के मुख्य माध्यम में मैथिली शामिल है, इसलिए प्राथमिक स्तर पर इसे शिक्षा का माध्यम बनाने की जरूरत है। फिर भी शिक्षा विभाग इसे लागू करने अभिरुचि नहीं दिखा रहा है। उन्होंने बताया कि स्थानीय स्तर पर संचालित पब्लिक स्कूल भी मैथिली में पढ़ाई नहीं कराते हैं, जबकि अधिकतर संचालक मैथिल हैं। इसे लेकर राजनीतिक व सामाजिक सगठनों को अभियान चलाना चाहिए। मैथिली भाषा में प्राथमिक शिक्षा की सुविधा बहाल होने पर भाषाई समृद्धि बढ़ेगी। साथ ही रोजगार सृजन भी होगा।

- प्रस्तुति : राजकुमार गणेशन

बोले जिम्मेदार

हम तो मैथिली को शास्त्रीय भाषा दिलाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने के साथ ही इसे रोजी-रोजगार से जोड़ा जाए, इसके लिए भी हमारी ओर से प्रयास किया जा रहा है।

- डॉ. गोपाल जी ठाकुर, सांसद

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