ललित नारायण मिथिला विवि में शोध को मिलेगा बढ़ावा
दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय को 2025 में शोध विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने से 100 करोड़ की राशि प्राप्त होगी, जिससे शोध की गुणवत्ता में सुधार होगा। खेल निदेशालय की स्थापना भी नए वर्ष में...
दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के लिए आगामी वर्ष 2025 कई मायनों में उपलब्धियों का रहने वाला है। नए वर्ष में विवि में शोध को बढ़ावा मिलेगा। केंद्र से शोध विवि का दर्जा मिलने पर विवि को आगामी वर्ष में 100 करोड़ की राशि मिलने वाली है, जिससे शोध की गुणवत्ता बढ़ेगी। शोध में कमजोर स्थिति के कारण विश्वविद्यालय नैक मूल्यांकन में ए ग्रेड प्राप्त करने में चूक गया था। शोध विवि का दर्जा मिलने से विवि की यह कमजोरी दूर होगी। लनामिवि को प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (पीएम उषा) के तहत शोध विवि का दर्जा मिला है। नए वर्ष में विवि में खेल निदेशालय की स्थापना भी मूर्त रूप लेने वाली है। इससे खेल के क्षेत्र में भी विवि नई छलांग लगाने जा रहा है। लनामिवि के लिए वर्ष 2024 भी कई मामलों में खास रहा। साल के प्रथम माह में ही लनामिवि को स्थायी कुलपति मिलने से विवि का कामकाज पटरी पर लौटा था। इसी वर्ष पहली बार राज्यपाल सह कुलाधिपति ने सीनेट की बैठक में भाग लेते हुए अध्यक्षता की। खेल निदेशालय की स्थापना की दिशा में इसी वर्ष ठोस पहल सामने आई जिसका परिणाम आने वाले वर्ष में दिखने वाला है। कई मामलों को लेकर लनामिवि इस वर्ष खासा चर्चा में रहा। वित्तीय अनियमितता मामले में पूर्व कुलपति, कुलसचिव, डीडीई निदेशक सहित विवि के एक दर्जन से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों पर विशेष निगरानी इकाई ने प्राथमिकी दर्ज की। जांच के सिलसिले में निगरानी की टीम के विवि मुख्यालय पहुंचने से सनसनी मची। शिक्षकेतर कर्मचारियों ने भी विवि प्रशासन के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका जिसके बाद कर्मचारियों को लंबे इंतजार के बाद पदोन्नति का लाभ मिल सका। इस वर्ष कई विषयों में लनामिवि को स्थायी असिस्टेंट प्रोफेसर मिले, जिससे शिक्षकों की कमी कुछ हद तक दूर हुई। साल के अंतिम दौर में कुलसचिव चर्चा में रहे। उनके चिकित्सावकाश पर जाने को लेकर विवि महकमे में अफवाहों का बाजार गरम रहा। दिसंबर में उनके चिकित्सा अवकाश से लौटने पर प्रभार लेने का प्रकरण भी काफी चर्चा में रहा। पहली बार विवि में ऐसा हुआ कि किसी कुलसचिव के चिकित्सा अवकाश से लौटने पर उनके स्वास्थ्य की मेडिकल बोर्ड से जांच करायी गई और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर सवाल भी खड़े किये गये। इस मामले में सिविल सर्जन के पत्र से विवि प्रशासन बैकफुट पर आया और कुलसचिव को प्रभार मिल सका।
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