मिथिला में जूड़ शीतल पर्व पर लोगों ने किया घटदान
मनीगाछी | एक संवाददाता सनातन काल से मानव जीवन से जुड़ी हिंदुओं की महान आस्था
मनीगाछी | एक संवाददाता
सनातन काल से मानव जीवन से जुड़ी हिंदुओं की महान आस्था का पर्व जूड़ शीतल बुधवार को ‘घटदान के साथ ही संपन्न हो गया। वेदों, पुराणों एवं ज्योतिषीय ग्रंथों में उल्लिखित सृष्टि के संबंध में प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की रचना स्रष्टा ने की थी। नक्षत्रों, राशियों एवं ग्रहों के समन्वय से रचित इस सृष्टि के प्रारंभ काल के दिन को मानव जीवन के लिए वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित अत्यंत ही उत्कृष्ट मानते हुए कालांतर में इस प्रारंभिक काल को ऐतिहासिक राजा ‘विक्रमादित्य ने विक्रम संवत्सर के रूप में चलाया था। ज्योतिषीय गणनाओं में प्रथम राशि ‘मेष नक्षत्र में ‘अश्विनी की शुरुआत भी आज ही के दिन होती है। भौतिक जगत में अवस्थित मानवादि जीव-जंतुओं पर नभो मंडल में चलने वाली गतिविधियों का सीधा असर विकिरणों के माध्यम से पड़ने के कतिपय वैज्ञानिक प्रमाण देखे गए हैं। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि हमारे महान पूर्वज ऋषि महर्षियों ने अपनी ऊर्जा से पृथ्वी पर अवस्थित जीवों को जीवन प्रदान करने वाले ग्रहपति सूर्य को मेष राशि में प्रवेश के दिन को अत्यंत ही महत्वपूर्ण मानते हुए जलदान की परंपरा की शुरुआत की थी जो पूर्णत: वैज्ञानिक माना गया है। मानव जीवन में प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होते बदलावों में वसुंधरा पृथ्वी के गर्भ में संरक्षित बीजों का स्वाभाविक अंकुरण, वृक्षों में नए पल्लवों का आगमन, विभिन्न प्रकार के पुष्पों का प्रस्फुटन देखा जाता है। नव वर्ष की शुरुआत में संभवत: पृथ्वी के मूक प्राणियों की खुशियों का यह प्रमाण माना जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि हमारे महान ऋषियों ने आहार को मानव जीवन के लिए सर्वथा उपयुक्त मानते हुए शरीर के लिए सर्वोपयोगी सत्तू एवं गुड़ का स्वयं आहार लेने तथा इसका दान कर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित किया था। चैत्र मास में जल का उत्तरोत्तर अभाव देखते हुए मानव जीवन के लिए अत्यंत ही आवश्यक जल दान का विशेष महत्व माना गया है। सनातन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के उपरांत भी शुभाशुभ कर्मों का फल आत्मा को मिलने के कारण पितरों के निमित्त भी वारिपूर्ण घटदान की परंपरा है। ज्ञात हो कि सनातन धर्म के सभी पर्व वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। इसी दिन को प्रथम दिन मानते हुए यहां की परंपरा में कुलदेवता को भी ‘बासी भात का भोग लगाने की परंपरा है।
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