पान उत्पादकों को चाहिए लोन व शहर में वेंडिग जोन
मिथिला में पान की खेती का दायरा कम हो रहा है। पान उत्पादकों का कहना है कि नुकसान और मंडी की कमी के कारण उनकी स्थिति खराब हो रही है। कई उत्पादक मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। सरकार से मदद...
मिथिला में सम्मान का प्रतीक पान की खेती का दायरा कम होने लगा है। पान उत्पादकों का कहना है कि एक तो इसकी खेती में नुकसान बढ़ गया है दूसरा शहर में थोक पान विक्रेताओं के लिए मंडी नहीं है। इस कारण पान विक्रेता और उत्पादक परेशान रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के पान का पत्ता तोड़कर दरभंगा टावर सुबह और शाम में बेचते हैं। इनका दर्द है कि शहर में इनके लिए कहीं वेंडिंग जोन नहीं है। ठंड में तो काम चल जाता है लेकिन गर्मी में पत्ते धूप में खराब हो जाते हैं। इसका अलग नुकसान होता है। खेती से लेकर बेचने तक क्षति होती है। शहर के आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती थी और लोग टावर व शहर के विभिन्न चौराहों पर बैठकर या पान दुकानों में घूमकर पान बेच लेते थे। बीते कुछ वर्षों से मौसम की मार से इसकी खेती प्रभावित हुई। सुखाड़, कुहासा एवं शीतलहर ने पान उत्पादक किसानों की कमर तोड़ दी है। रही-सही कसर जंगली सूअर, नीलगाय एवं बंदरों ने पूरी कर दी है।उत्पादकों की युवा पीढ़ी इस काम को छोड़ दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए पलायन कर गए हैं।
कचनारी पान का था जलवा, अब कलकतिया का बोलबाला : पूर्व में सनहपुर के कचनारी पान की तूती कोलकाता के बाजारों तक बजती थी। आज दरभंगा के बाजारों में कलकतिया पान का बोलबाला बढ़ रहा है। सनहपुर के पान उत्पादक व शहर में पान उपलब्ध कराने वाले पवन कुमार भगत, तारालाही के कंतू भगत, हायाघाट के महेश भगत, बहेड़ी के रामगुलाम भगत, बेनीपुर बसुहाम गांव के अशोक रावत, केवटी पैगंबरपुर के गौड़ी भगत आदि पान उत्पादक किसानों ने बताया कि पान उत्पादकों को क्षति के बावजूद आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली है। बिहार प्रदेश पान कृषक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष भरत चौरसिया एवं महामंत्री नवादा निवासी सुभाष प्रसाद चौरसिया ने बताया कि पान उत्पादक किसानों को वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन एवं क्षति होने की स्थिति में फसल क्षति मुआवजा नहीं मिला तो धीरे-धीरे पान का उत्पादन और लोकल पान की बिक्री बंद हो जाएगी। पान के उत्पादन सहित इस व्यवसाय से जुड़े 10 हजार परिवारों के सामने भुखमरी की स्थिति हो जाएगी। उन्होंने बताया कि पान उत्पादक किसानों की समस्या के लिए विभिन्न जिलों में डीएम से लेकर मुख्यमंत्री तक मदद की गुहार की गई है, लेकिन सरकार हमारी उपेक्षा कर रही है।
अग्निकांड में बर्बाद हुए बरेब का नहीं मिला मुआवजा : अग्निकांड में बर्बाद हुए पान के बरेब को पुन: स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से न तो कोई अनुदान मिला और न मुआवजा। ऐसी स्थिति में दर्जनों उत्पादक बरेब को पुन: व्यवस्थित नहीं कर सके। इस तरह पान के बरेब की संख्या घटती चली गई। पान उत्पादक किसान मजदूरी के लिए परदेस पलायन करने लगे। सनहपुर के हीरा भगत, प्रेम नारायण भगत, अरुण भगत, राम सकल भगत, सिंघेश्वर भगत, बिंदेश्वर भगत, कमोद भगत सहित जिले के कई अन्य लोगों के बरेब में हुई अगलगी का न तो पता लग सका, न ही इसे फिर से लगाने के लिए सरकार की ओर से कोई अनुदान मिल पाया। ऐसी स्थिति में पान की खेती दिनोंदिन सिमटती चली गई।
पान का व्यवसाय कमजोर होने से गुटखा का बढ़ा चलन: पान का व्यवसाय कमजोर होने से गुटखा का चलन बढ़ता जा रहा है। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों बिरौल, बेनीपुर व सदर अनुमंडल में तीन दशक पूर्व तक प्रत्येक चौक-चौराहे व गलियों में पान की दुकानें हुआ करती थीं। वहां लोगों को पान आसानी से उपलब्ध हो जाता था। जैसे ही पान का उत्पादन कम हुआ, इन दुकानों की भी संख्या कम होती चली गई। छोटी पूंजी में पान की दुकान कर परिवार चलाने वाले सैकड़ों लोग मजदूरी के लिए परदेस चले गए। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। पान की दुकानें जैसे ही सिमटी चली गईं, गुटखा एवं पान मसाला की दुकानें बढ़ने लगीं। ग्रामीणों ने बताया कि गुटखा चबाने से बीमार लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी है। पहले जहां जगह-जगह पान की दुकानें गुलजार होती थीं, आज वहां गुटखा की दुकानों ने पांव पसार लिया है। इससे बुद्धिजीवी भी चिंतित हैं।
नगर निगम बोर्ड की बैठक में शहर में छह वेंडिंग जोन बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया है। वेंडिंग जोन बनकर तैयार हो जाने पर उसमें पान विक्रेताओं को भी जगह दी जाएगी। समस्या का निदान होगा।
- रवि अमरनाथ, सिटी मैनेजर
जिले में 30 से 40 एकड़ क्षेत्र में पान की खेती होती है। पान की फसल की क्षति होने पर किसानों को फिलहाल क्षतिपूर्ति देने का प्रावधान नहीं है। सरकार की ओर से इस संबंध में कोई निर्देश आता है तो किसानों को क्षतिपूर्ति दी जाएगी। उनकी समस्याओं का निदान होगा।
- नीरज कुमार झा, सहायक निदेशक, उद्यान
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