पं. अमर के रोम-रोम में विद्यमान थी मिथिला-मैथिली
दरभंगा में मैथिली कवि पं. चंद्रनाथ मिश्र अमर की जन्मशताब्दी पर व्याख्यान आयोजित किया गया। पूर्व प्रधानाचार्य प्रो. विश्वनाथ झा और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता डॉ. योगानंद झा ने पं. अमर की रचनाओं और...
दरभंगा। मैथिली कवि-साहित्यकार पं. चंद्रनाथ मिश्र अमर ने अपनी साहित्यिक कृतियों के माध्यम से क्षेत्रीय संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, समकालीनता आदि को संजो कर रखा है। साहित्य जिस सर्वसाधारण के इतिहास को अपने अंत:करण में रखता है, वह पं. अमर की रचनाओं में प्रत्यक्ष है। सीएम कालेज में मैथिली विभाग के तत्वावधान में आयोजित जन्मशताब्दी व्याख्यान में पूर्व प्रधानाचार्य प्रो. विश्वनाथ झा ने उक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि पं. अमर मूलत: कवि थे, लेकिन उन्होंने कथा, उपन्यास, नाटक आदि विभिन्न विधाओं में सफलतापूर्वक अपनी लेखनी चलाई। उनकी रचनाओं में काव्य तत्व नदी के जल के समान प्रवाहित होती रही हैं। उनके रोम-रोम में मिथिला और मैथिली विद्यमान रही है। उनके प्रयोग किए गए शब्दों को एकत्र कर लिया जाए तो बहुमूल्य शब्दकोष तैयार किया जा सकता है। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित डॉ. योगानंद झा ने कहा कि पं. अमर सरीखे साहित्यकारों के अवदान से ही मैथिली भाषा-साहित्य आज शीर्षस्थ है। उन्होंने कहा कि पं. अमर की रचनावली और उनके जीवन को देखने से पता चलता है की दोनों में ही समानता है। जिन तथ्यों को उन्होंने साहित्य में रखा उसे जीवन में भी उतारा।
प्रधानाचार्य डॉ. मुश्ताक अहमद ने कहा कि दरभंगा परिक्षेत्र भाषाओं को पल्लवित-पुष्पित करने का केंद्र अतीत से ही रहा है। क्षेत्रीय भाषाओं में स्थानीय माटी-पानी की आवाज होती है। किसी भी क्षेत्र के इतिहास, वहां की सांस्कृतिक व आर्थिक स्थितियों से अवगत होना हो तो साहित्य सबसे प्रमुख स्रोत है। अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. रागिनी रंजन ने कहा कि पं. अमर ने अपने नाम को सार्थक किया। वे आज भी हमारे बीच अपनी रचनाओं के माध्यम से विद्यमान हैं।
प्राप्ति कुमारी, मानसी कुमारी एवं रोशन कुमार के मंगलाचरण से आरंभ कार्यक्रम में डॉ. सुरेंद्र भारद्वाज ने पं. अमर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को रेखांकित किया। संचालन करते हुए डॉ. अमलेन्दु शेखर पाठक ने कहा कि पं. अमर का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है और उनके शिष्यों की लंबी श्रृंखला है। वे अपने आप में संस्था थे। कार्यक्रम में पं. अमर के एकमात्र पुत्र शंभुनाथ मिश्र, डॉ. रमेश झा, डॉ. सत्येंद्र कुमार झा, डॉ. सुनीता झा, डॉ. विजय शंकर पंडित सहित कई कॉलेजों के शिक्षक व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
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