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परंपरा : मेले में बहुत कुछ परिवर्तित पर नहीं बदला हरिहरनाथ का ‘शगुन

मिट्टी की सीटी व घिरनी की ओर आज भी आकर्षित हो रहे बच्चे रूप में मिट्टी के खिलौने सीटी और घिरनी आज भी बिक रहे हैं। यहां मिलनेवाले पंरपरागत खिलौनेआज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनमें भी एक खास...

Newswrap हिन्दुस्तान, छपराSun, 1 Dec 2024 09:28 PM
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छपरा, नगर प्रतिनिधि। सारण जिले के विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला में भले ही बहुत कुछ बदल गया हो, लेकिन नहीं बदला तो वह है हरिहरनाथ का ‘शगुन । हरि और हर के प्रतीक के रूप में मिट्टी के खिलौने सीटी और घिरनी आज भी बिक रहे हैं। यहां मिलनेवाले पंरपरागत खिलौनेआज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनमें भी एक खास खिलौना है जो गांव-समाज से जुड़े लोगों के जेहन में आज भी जीवित है। हम बात कर रहे हैं मिट्टी से बनी सीटी और घिरनी की। इस पर काले रंग का लेप लगाकर आकर्षक रूप दिया जाता है। आधुनिकता के रंग में रंग चुके इस मेले में हर किस्म और तरह तरह के खिलौने उपलब्ध हैं । ये सीटी और घिरनी जैसे खिलौने आज भी अपना अस्तित्व बचाए रखने में सफल हैं। बताया जाता है कि जिनकी यादों में बचपन है और खासकर सोनपुर मेले की सुनहरी यादें जुड़ी हैं, वो इस मेले में पंहुचने के बाद सबसे पहले जिस चीज को खोजते हैं,वह मिट्टी से बने यही काले रंग के खिलौने होते हैं। रविवार को सोनपुर मेला पहुंचे पूर्णिया के राम पुकार साहू ने कहा कि ये खिलौने बचपन की यादों को ताजा औऱ जीवंत बना देते हैं। ये यादें हमारी समृद्ध धरोहर भी हैं। महज 10 - 10 रुपये में में दो घिरनी और दो सीटी मिल रही है। उन्होंने कहा कि विश्वप्रसिद्ध सोनपुर मेला का खिलौना के रूप में घिरनी और सीटी पूर्णिया जिला में काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जब से यहां पर मेला आयोजित हो रहा है, उसी समय से यहां मिट्टी की बना घिरनी और सीटी बिकती चली आ रही है।आज के आधुनिक दौर में भी इन खिलौनों को लोग बड़े चाव से खरीदते हैं।दरअसल, सोनपुर मेला को हरिहर क्षेत्र का मेला कहा जाता है,क्योंकि यहां एक ही शिला में हरि अर्थात विष्णु और हर अर्थात शिव विराजमान हैं।कार्तिक मास की पूर्णिमा को इन्हीं हरि और हर पर जलाभिषेक के साथ सोनपुर मेले की शुरुआत होती है और मेले में हरि और हर के प्रतीक के रूप में मिट्टी के खिलौने सीटी और घिरनी बिकते हैं। सोनपुर मेला में अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ कटिहार से आयी सुनीता ने कहा कि यह हरिहर नाथ बाबा का शगुन है। यह सब दिन नहीं बिकता है यह मेला भर ही बिकता है। इसलिए वह 50 रुपये की घिरनी व सीटी खरीद रही है। घर के अन्य बच्चों ने भी आते समय सोनपुर मेला से यह खिलौना खरीदने को बोले थे। अपने बच्चों के लिए खिलौना खरीद रही वैशाली की अनीता देवी ने कहा कि मैं तो यहां 20 सालं से आ रही हूं, प्रकृति के लिए यह मिट्टी का खिलौना बहुत ही अच्छा है और बच्चे बहुत पसंद करते हैं। सोनपुर मेला में जगह - जगह इस खिलौनों को बेचने बैठे लोगों को इन्हें बेचकर भले ही बहुत ज्यादा आमदनी नहीं होती हो, लेकिन उन्हें सुकून जरूर मिलता है। मुजफ्फरपुर की रहने वाली बेदान्तों देवी पिछले 40 साल से सोनपुर मेला आती रही हैं और इतने साल से वे लगातार इन्हीं खिलौनों को बेचने आती हैं। सास -ससुर के जमाने से इन खिलौनों को बेचने की पंरपरा रही है इसलिए मेला शुरू होते ही इऩ खिलौनों को लेकर मेले में पंहुच जाती हैं। सड़क किनारे खिलौने लेकर बेचने की विवशता होती है क्योंकि मेले में कोई समुचित स्थान निर्धारित नहीं है।

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