सीटों की क़िल्लत: प्रवासी यात्रियों की बढ़ी परेशानियां
होली के अवसर पर, सारण जिले के हजारों प्रवासी लोग घर लौटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रेलवे में लंबी वेटिंग और बसों-टैक्सियों के ऊंचे किराए के कारण, कई लोग निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं। प्रवासियों ने...

रेलवे में लंबी वेटिंग, बसों और टैक्सियों के ऊंचे किराए के बीच घर लौटने की जद्दोजहद सक्षम लोगों के बीच निजी वाहनों से घर आने का बढ़ रहा चलन छपरा/ एकमा,निज संवाददाता। होली के मौके पर एकमा समेत सारण जिले के हजारों प्रवासी लोग घर लौटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पुणे, बेंगलुरु जैसे शहरों में काम करने वाले मजदूर, छात्र और नौकरीपेशा लोग समय से टिकट न मिलने और बढ़ते किरायों की वजह से परेशान हैं। रेलवे में लंबी वेटिंग, बसों और टैक्सियों के ऊंचे किराए के कारण कई लोग मजबूरी में सफर करने की योजना बना रहे हैं, तो कुछ सक्षम लोग निजी वाहनों का सहारा लेने का मन बना लिए हैं। दिल्ली में नौकरी करने वाले शशांक मिश्रा ने बताया कि हम चार दोस्तों ने मिलकर एक एसयूवी बुक की है जिससे पटना तक पहुंचेंगे और वहां से अपने अपने गंतव्य को चले जाएंगे। प्रति व्यक्ति खर्च 5000 रुपये आएगा लेकिन ट्रेन का टिकट नहीं मिलने और बस की धक्का-मुक्की से अच्छा विकल्प यही है। प्रवासी यात्रियों ने बताया समाधान एकमा,दाउदपुर, रसूलपुर समेत जिले के प्रवासियों ने कहा कि हर साल त्योहारों पर यह स्थिति बनती है, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकलता। यात्रियों का कहना है कि रेलवे को सारण के प्रवासी मजदूरों और नौकरीपेशा लोगों के लिए अधिक स्पेशल ट्रेनें चलानी चाहिए। सरकार को बसों और टैक्सियों के अनियंत्रित किराए पर भी लगाम लगानी चाहिए। वहीं, सक्षम यात्रियों के लिए कारपूलिंग और राइड-शेयरिंग जैसी सुविधाओं को बढ़ावा देना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। केस 1: टिकट नहीं मिलने पर मजबूरी में बस का सहारा तरैया निवासी आशीष कुमार दिल्ली में नौकरी करते हैं। उन्होंने बताया कि होली से एक महीने पहले ही टिकट बुक करने गया तो वेटिंग 180 तक पहुंच गई। तत्काल टिकट की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह भी 30 सेकंड में खत्म हो जा रहा है। मजबूरी में बस से आने का फैसला किया है, लेकिन वहां भी तीन गुना किराया देना पड़ेगा। केस 2: जनरल डिब्बे में सफर बना चुनौती मुंबई में रहकर काम करने वाले मढ़ौरा के राहुल तिवारी ने कहा कि होली पर छपरा आने के लिए स्पेशल ट्रेनों की घोषणा होती है, लेकिन उनकी भी टिकटें तुरंत फुल हो जाती हैं। जनरल डिब्बे में तो पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती। कई यात्री तो ट्रेन की छतों पर बैठकर आते हैं। केस 3: बसों और टैक्सियों में भी जगह नहीं दिल्ली में काम करने वाले मशरक के विनोद सिंह ने बताया कि छपरा आने वाली बस का किराया 1200 रुपये से 3500 रुपये हो गया। टैक्सियों में सीट पाना मुश्किल है। हर साल यह समस्या होती है, लेकिन कोई हल नहीं निकलता। केस 4: सक्षम लोग निजी वाहनों का ले रहे सहारा छपरा के रहने वाले और कोलकाता में बिजनेस करने वाले अभिषेक झा बताते हैं हर बार त्योहारों पर ट्रेन और बस की स्थिति खराब रहती है। इसलिए इस बार मैंने दोस्तों के साथ मिलकर एक कार किराए पर ली और खुद ड्राइव कर छपरा पहुंचेंगे। खर्च थोड़ा ज्यादा आ रहा है लेकिन सफर आरामदायक होगा।
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