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अन्याय पर न्याय की स्थापना हुई थी हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले में

धर्म- कर्म और पशु मेले के लिए प्रसिद्ध है सोनपुर मेलाअन्याय पर न्याय की स्थापना थी हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले

Newswrap हिन्दुस्तान, छपराFri, 15 Nov 2024 09:43 PM
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धर्म- कर्म और पशु मेले के लिए प्रसिद्ध है सोनपुर मेला सोनपुर। संवाद सूत्र कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सरकारी स्तर पर 32 दिनों तक लगने वाला हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। ऐतिहासिक, धार्मिक ,पौराणिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से इस मेले का राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय महत्व है। धर्म- कर्म के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध इस मेले की मान्यता है कि हरिहरनाथ की स्थापना स्वयं मर्यादा पुरूषोतम श्रीराम ने की थी। यह भी मान्यता है कि कौनहारा घाट पर ही गज और ग्राह के बीच युद्ध हुआ था। सैकड़ों वर्षों तक चलने वाले इस युद्ध में गज ने अपने प्राण की रक्षा के लिए भगवान श्री नारायण की स्तुति की थी। अपने भक्त गज की पुकार सुनकर नारायण अपने वाहन गरूड़ पर सवार होकर कौनहारा घाट आये और सुदर्शन चक्र से ग्राह को मारकर गज के प्राण रक्षा की थी। अन्याय पर न्याय और अधर्म पर धर्म का विजय हुआ था। तब से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देश के विभिन्न भागों से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैंऔर गंगा- गंडक नदी में स्नान कर बाबा हरिहरनाथ मंदिर में जलाभिषेक एवं पूजा- अर्चना कर मोक्ष की कामना करते हैं। हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले का उल्लेख महाभारत, स्कंद पुराण, बौद्ध व जैन साहित्य के अलावा मध्य युगीन साहित्य में भी मिलता है। हरिहरक्षेत्र सोनपुर शैव, वैष्णव, शाक्त, कबीर सहित अनेक पंथों का मिलन स्थल भी माना जाता है। यहां हरि अर्थात विष्णु और हर अर्थात शिव की पूजा होती है। देश का यह पहला महत्वपूर्ण धर्म स्थल है जहां एक साथ हरि और हर का संयुक्त विग्रह स्थापित किया गया है। हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला भी माना जाता है। यहां पहले बड़े स्तर पर गाय बाजार, बैल बाजार, भैंस बाजार, हाथी बाजार, घोड़ा बाजार, चिड़ियां बाजार, कुता बाजार, बकड़ी बाजार के साथ- साथ विभिन्न प्रकार के दुर्लभ पक्षियों का बाजार भी लगा करता था। वे यहां बिक्री के लिए लाए जाते थे। पहले इस मेले में गदहों का भी बाजार लगता था और उनकी खरीद- बिक्री भी होती थी। पर एनिमल क्रुएल्टी के नाम पर प्रतिबंधित पशु- पक्षियों की खरीद- बिक्री पर रोक लगा दी गई। परिणाम स्वरूप हाथियों के आने के साथ ही चिड़ियां बाजार को भी बंद कर दिया गया था। इस मेले की विशेषता यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक मिलता है। पर इस एशिया प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले के स्वरूप में विगत एक- डेढ़ दशकों में तेेजी से बदलाव आया है । कभी यह मेला एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता था । पर सरकार की गलत पशुधन नीति और वन संरक्षण अधिनियम के कारण इस मेले का वजूद हर वर्ष सिमटता जा रहा है। आज यह मेला गर्दिश के दौर से गुजर रहा है। हाथियों और प्रतिबंधित पक्षियों की खरीद- बिक्री पर प्रतिबंध लग जाने से भी मेले में इनकी आवक प्रभावित हुई है। बावजूद इसके यह मेला आज भी परंपरा, लोक आस्था, सामाजिक सदभाव, समरसता, व्यापार, वाणिज्य, परस्पर भाईचारा और सर्वधर्म समभाव का संदेश देती है।

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