63 साल पहले चीन युद्ध के दौरान हुआ था मॉक ड्रिल
-गांव में खुदवाए गए थे गड्ढे 1962, 1965,1971 और कारगिल युद्ध के वक्त आम लोगों में भी गजब का था उत्साह मढ़ौरा व आसपास के इलाकों में देश के लिए हवन पूजन व सेना के लिए फंड जुटाए जा रहे थे रेलवे स्टेशन...

मढ़ौरा, एक संवाददाता 1962 में हुए चीन युद्ध के बाद 2025 में मढ़ौरा और इसके आसपास के लोग युद्ध को लेकर मॉक ड्रिल की बात करने लगे हैं। यहां के कई बुजुर्ग बताते हैं कि आज से करीब 63 साल पहले जब भारत व चीन का युद्ध शुरू हुआ था उस वक्त प्रशासन के निर्देश पर रात में घरों की लाइट बुझा दी जाती थीं और गांव-गांव में लंबे-लंबे नालों के आकार में गड्ढे खुदवा दिए गए थे। इसमें हमले के वक्त छुपने की ट्रेनिंग दी गई थी। हालांकि अब यहां कोई भी सिविल डिफेंस समिति अस्तित्व में नहीं है। बावजूद इसके विभिन्न समाचार माध्यमों से मिल रही जानकारी को लेकर लोग आपस में युद्ध के समय हवाई हमले का सायरन बजने के बाद सुरक्षा के दृष्टिकोण से उठाए जाने वाले जरूरी कदमों की चर्चा हर चौक चौराहों पर करते हुए सुन जा रहे हैं।
राहीमपुर निवासी बुजुर्ग ग्रामीण दीपनारायण सिंह का कहना है कि चीन से हुए युद्ध के समय रात में घरों में जलने वाले लालटेन व दीये आदि को बुझा दिया जाता था। गांव में प्रशासन के निर्देश पर बड़े-बड़े गड्ढे खुदवाए गए थे जिसमें हमले के समय सायरन बजने पर छुपने का निर्देश दिया गया था। मढ़ौरा के अवारी निवासी बुजुर्ग ग्रामीण रामबाबू सिंह बताते हैं कि चीन, पूर्वी पाकिस्तान,पश्चिमी पाकिस्तान व कारगिल युद्ध के समय भी यहां के लोगों में गजब का उत्साह था। यहां के लोग भारतीय सेना के लिए घूम-घूम कर फंड एकत्र कर रहे थे और भारतीय सेना की जीत के लिए जगह-जगह पर हवन पूजन की जा रही थी। सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए लोग रेलवे स्टेशन और विभिन्न बाजारों में तिरंगा झंडा के साथ भारत व भारतीय सेना के समर्थन में गगनभेदी नारे लगा रहे थे। इन युद्धों के समय सेना के जवानों में भी उत्साह चरम पर दिखता था। अब जब एक बार फिर से पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति बनते देख यहां के लोगों मे कुछ उसी तरह का माहौल इस बार भी देखा जा रहा है। लोग पाकिस्तानी आतंकियों की करतूत से काफी मर्माहत है और आतंकियों के आका पाकिस्तान का समुचित इलाज किए जाने के पक्ष में हैं। भारतीय सेना को मजबूत मानते हैं रिटायर्ड आर्मी अफसर कारगिल युद्ध के समय जम्मू कश्मीर के अखनूर सेक्टर में तैनात बेहतर कार्य के लिए राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रशस्ति पत्र प्राप्त करने वाले भारतीय सेवा के रिटायर अधिकारी मढ़ौरा के सेंदुआरी निवासी शिवकुमार पांडे के अलावा बारोपुर निवासी सेना के रिटायर्ड बीके सिंह और मढ़ौरा निवासी उपेंद्र शर्मा ने बताया कि भारतीय सेना पाकिस्तान के मुकाबले कई गुना अधिक मजबूत है और यह आदेश मिलते ही कुछ ही दिनों अंदर पाकिस्तान पर जीत हासिल कर भरतीय तिरंगा फहरा सकती है। इन लोगों का मानना है कि पाकिस्तान से जब भी युद्ध जैसा माहौल बनता है तो सेना के जवानों में गजब का उत्साह बढ़ जाता और जवान जोश से भर जाते हैं । यही जोश उन्हें विजय पताका फहराने में सहयोग करता है। इनसेट नागरिक सुरक्षा को लेकर दिए कई टिप्स मढौरा। लड़ाई के वक्त नागरिक सुरक्षा की बात बताते हुए आर्मी के रिटायर्ड अफसरों ने कहा कि जब दो देशों के बीच युद्ध का ऐलान हो जाता है तो नागरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से ब्लैकआउट के तहत रात में घरों की लाइटे बंद करने, हवाई हमले के वक्त सायरन बजने पर 5 से 10 मिनटों के अंदर बंकर या किसी सुरक्षित घर के अंदर जाकर लेट जाने, युद्ध के दौरान कुछ दिनों के लिए जरूरी खाद्य सामग्री, दवाएं आदि को एकत्र करने, अफवाहों पर ध्यान नहीं देकर प्रशासन के निर्देशों का पालन करने, किसी भी परिस्थिति में ज्यादा पैनिक नहीं होने व भगदड़ की स्थिति पैदा नहीं करने, आसपास की हर संदिग्ध बातों की सूचना पुलिस प्रशासन को देने, आसपास के लोगों के साथ साथ सुरक्षा बलों की हर जरूरी मदद करने आदि की बाते भी आम लोगों व स्कूली बच्चों को बताई जाती है ताकि युद्ध के दौरान नागरिकों और स्कूली बच्चों को सुरक्षित रखा जाय व युद्ध के दौरान कोई अफरातफरी की स्थिति पैदा न हो सके। जब पाकिस्तान के 135 टैंकों पर भारी पड़ा 14 भारतीय टैंक 1971 के युद्ध में मढ़ौरा के लाल ने किया था कमाल भारत के हर गांव के लोगों का था गजब का समर्थन मढौरा। बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने के लिए 1971 में लड़ी गई लड़ाई के दौरान भारतीय सेना का हिस्सा बनकर मढ़ौरा के सेंदुआरी निवासी रामप्रवेश पांडे ने टीम के साथ अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया था। इस दौरान अधिकारियों का आदेश पाकर रामप्रवेश पांडे अपने अन्य साथियों के साथ ढाका की और कूच कर रहे थे। इस दौरान रात करीब 2:00 बजे के आसपास जंगल के एक निर्जन स्थान पर पूरी टीम आगे की कार्रवाई का आदेश मिलने की प्रतीक्षा में विश्राम कर रही थी। इस दौरान सामने से पाकिस्तानी टैंकों की आहट सुनाई दी और उसकी लाइटें दिखाई पड़ी। इसके बाद रामप्रवेश पांडे और उनकी पूरी टीम हरकत में आ गई और वरीय अधिकारियों से आदेश पाकर मात्र एक भारतीय स्क्वाडन ने अपने मात्र 14 टैंकों की बदौलत पाकिस्तान के 135 टैंकों वाली पूरी ब्रिगेड को तहस-नहस कर दिया था। इस युद्ध में भारत को एक ऐतिहासिक जीत मिली और पाकिस्तान के हजारों सैनिक बंदी बनाए गए थे। इसके बाद बांग्लादेश आजाद हुआ था। रिटायर्ड रामप्रवेश पांडे का कहना है कि उस वक्त सेना के जवानों को भारत के हर गांव के लोगों का गजब का समर्थन प्राप्त था और लोगों में काफी उत्साह था जिसे देख सेना के जवान भी काफी उत्साहित थे।
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