निजी स्कूल व कोचिंग पर लगे ताले, रोजगार के लिए भटक रहे गुरुजी
क्षकों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। इनकी हालत आगे खाई व पीछे शेर वाले इंसान की तरह हो गई है। एक तरफ कोरोना के संक्त्रमण के कारण रोजगार बन्द हो गए हैं तो दूसरी तरफ आर्थिक तंगी ने इनके सामने...
गुरुजी ने बदला धंधा, बल्ब व बेकरी बना कर रहे जीविकोपार्जन
कोरोना का कहर
बनियापुर। एक प्रतिनिधि
कोरोना के कहर ने सबसे अधिक निजी विद्यालयों के शिक्षकों व कोचिंग संचालकों को परेशान किया है। बीते पन्द्रह माह से स्कूल व कोचिंग बन्द पड़े हैं जिससे निजी स्कूल व कोचिंग संस्थानों में पढ़ा रहे शिक्षकों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। इनकी हालत आगे खाई व पीछे शेर वाले इंसान की तरह हो गई है। एक तरफ कोरोना के संक्त्रमण के कारण रोजगार बन्द हो गए हैं तो दूसरी तरफ आर्थिक तंगी ने इनके सामने बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। ऐसे में परिवार की भरण पोषण की चिंता ने गुरुजी को अपने धंधे बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। संक्त्रमण से अधिक भूख की चिंता में डूबे
बनियापुर के कुछ शिक्षक पढ़ाना छोड़ बल्ब बनाने के कामों में लग गए हैं। कुछ ने बेकरी का कारोबार शुरू कर दिया है, तो कुछ दुकान खोल अपने तथा परिवार के सदस्यों की भोजन जुटाने में लग गए हैं। एक शिक्षक परचून की दुकान खोल परिवार का भरण पोषण कर रहा है। यह हालत केवल बनियापुर का नहीं हैं। जिले के लगभग सभी प्रखण्डों में इस तरह के शिक्षक मिल जाएंगे जिन्होंने परिस्थितियों से समझौता कर अपने धंधे बदल लिए हैं। संक्त्रमण को लेकर राज्य में लगे लॉकडाउन के बाद स्कूल और कोचिंग संस्थान बन्द पड़े हैं। निजी स्कूल और कोचिंग संस्थान पढ़ेलिखे लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा साधन था। जहां आसानी से रोजगार मुहैया हो जाते थे। लेकिन बीते पन्द्रह महीने से बन्द पड़े संस्थान व बच्चों के पठन पाठन पर लगी रोक से जिले के लगभग 25 हजार शिक्षित युवाओं को प्रभावित किया है। जानकारी हो कि जिले में लगभग छह सौ निजी स्कूल और तेरह सौ कोचिंग संस्थान संचालित हैं। बनियापुर में 144 निजी स्कूल और 200 कोचिंग संस्थान चल रहे थे।
चार वर्षों से नहीं मिला है अनुदान, सरकार है मौन
प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एशोसिएशन के महासचिव डॉ. हरेंद्र सिंह ने बताया कि निजी स्कूल में 25 प्रतिशत बीपीएल छात्रों के नामांकन का प्रावधान है। पंजीकृत स्कूल में पढ़ रहे इन बच्चों की पढ़ाई के लिए राज्य सरकार तय अनुदान स्कूल को देती है जिसका भुगतान चार वर्षों से लंबित है। कोरोना के महासंकट के बीच भी राज्य सरकार द्वारा बकाया राशि भुगतान की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया। वहीं निजी स्कूल व कोचिंग के शिक्षकों की मदद के लिए भी किसी तरह की घोषणा राज्य सरकार द्वारा नहीं की गयी। नौबत यहां तक आ गई कि अब उन्हें कुर्सी, बेंच, बोर्ड आदि बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। स्कूल संचालक जो कभी रोजगार दे रहे थे, वह अब खुद ही परेशानी का सामना कर रहे हैं। विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले शिक्षक अपना ज्ञान दूसरे काम-धंधों में लगा रहे हैं।
निजी स्कूल व कोचिंग संचालको के साथ अन्याय
निजी स्कूल व कोचिंग को पूर्णत: बन्द करने को संचालको ने निजी शिक्षक समुदाय के साथ अन्याय बताया है। एशोसिएशन के अध्यक्ष वृजकिशोर ओझा विकल ने बताया कि राज्य सरकार केवल शिक्षा व्यवस्था को ठप कर कोरोना पर विजय पाने की दावे करने में जूटी है। अनियंत्रित भीड़ सड़को व बाजारों में रोज दिख रही है। इन्ही बाजारों में रोजमर्रा की समान खरीदने के लिए छात्र छात्रा आये दिन जा रहे हैं। क्या बाजारों में जाने से कोरोना का खतरा नहीं है। शिक्षकों ने बताया कि यदि कोविड 19 की प्रोटोकॉल को पूरा करते हुए स्कूल खोलने की अनुमति मिलती तो सैकड़ो शिक्षक आर्थिक तंगी से बच सकते थे। सोशल डिस्टेंडिंग का पालन कर कक्षाएं चलाई जा सकती थीं जिसका लाभ छात्रों को मिल सकता था। स्कूल व कोचिंग संस्थान बन्द रहने से हजारों छात्रों का पठन पाठन भी बाधित है।
दोहरी मार झेल रहे हैं निजी स्कूल संचालक
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के महासचिव डॉ. सिंह ने बताया कि निजी स्कूल संचालक कोरोना को लेकर दोहरी मार झेल रहे हैं। स्कूल पूर्णत: ठप होने से एक तो वे आर्थिक परेशनियों में जी रहे हैं। दूसरी ओर बिजली, पानी, वाहनों के ईएमआई जैसे कई सरकारी टेक्सेस में कोई छूट नहीं मिलने से वे काफी परेशान हैं। डॉ सिंह ने के अनुसार स्कूल चलने के दिनों में वाहनों की खरीदारी की गई। जिसका लोन चुकाना अब कई स्कूल संचालकों के लिए मुश्किल हो रही है। राज्य सरकार को विपत्ति की इस घड़ी में स्कूल संचालको व निजी शिक्षकों को भी राहत देना चाहिए।
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