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या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता...

कालरात्रि रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:, ऊं एं क्लीं श्री कालिकायै नम: मंत्र से भक्तों ने सोमवार को सातवें नवरात्र के उपलक्ष्य में मां कालरात्रि की पूजा की। मंगलवार को अष्टमी...

Newswrap हिन्दुस्तान, छपराMon, 19 April 2021 08:20 PM
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या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता...

मां कालरात्रि की पूजा कर भक्तों ने मांगी मन्नतें

सातवें नवरात्र शहर के सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं ने शीश नवाये

छपरा। नगर प्रतिनिधि

या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:, ऊं एं क्लीं श्री कालिकायै नम: मंत्र से भक्तों ने सोमवार को सातवें नवरात्र के उपलक्ष्य में मां कालरात्रि की पूजा की। मंगलवार को अष्टमी पर्व होने के कारण बाजार में रौनक रही। श्रद्धालुओं ने पूजन के लिए सामान खरीदा। भक्तों ने मां कालरात्रि की पूजा कर मन्नतें मांगी। मंदिरों में देवी मां के गीतों से माहौल भक्तिमय हो गया। भक्तों ने माता रानी को नारियल, चुनरी प्रसाद आदि चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना की। श्रद्धालुओं ने कोविड 19 की गाइडलाइन का अनुपालन कर मां से आशीर्वाद मांगा। रिविलगंज के मां मनसा देवी शक्ति पीठ के मुख्य पुजारी पंडित मनुवेन्द्र त्रिपाठी उर्फ चुन्नू बाबा ने कहा कि मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना में साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहना है। इससे ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। मां काली और कालरात्रि दोनों ही एक स्वरूप हैं। उन्होंने कहा कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। मां के इस स्वरूप का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके ब्रह्मांड के सदृश तीन गोल नेत्र हैं जिनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निकलती प्रतीत होती हैं। मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। उनका निरंतर स्मरण, ध्यान और पूजा करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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