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लॉकडाउन के डर से लौट आये गांव,अब फांकाकशी में गुजर रहा दिन

डुमरांव। निज प्रतिनिधिहा है। बेहतर जीवन की चाहत में गये परदेशः एन.एच 120 के किनारे बसा नोनियापुरा गांव डुमरांव प्रखंड के कसियां पंचायत का हिस्सा है।लगभग साढे तीन सौ आबादी वाले इस गांव में अधिकांश घर...

Newswrap हिन्दुस्तान, बक्सरSun, 9 May 2021 11:00 AM
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डुमरांव। निज प्रतिनिधि

केरल के कैनूर में पेंटिंग का काम करने वाला बिरेंद्र कुमार लॉकडाउन के डर से अपने गांव नोनियापुरा लौट आया है।इस गांव के लगभग दस प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट आये है।मजदूरों का कहना है कि इस बार कोई जोखिम लेना नहीं चाहते थे।काम बंद होने के साथ ही घरों को लौट जाना ही बेहतर समझा।गांव लौटने वाले प्रवासियों को अब आर्थिक तंगी के दौर से गुजरना पड रहा है।

बेहतर जीवन की चाहत में गये परदेशः एन.एच 120 के किनारे बसा नोनियापुरा गांव डुमरांव प्रखंड के कसियां पंचायत का हिस्सा है।लगभग साढे तीन सौ आबादी वाले इस गांव में अधिकांश घर फूस और छोटे आकार के है।यहां के हालात लोगों की आर्थिक स्थिति को दर्शाते है।गांव में काम करने के बाद भी माली हालत नहीं बदलने परेशान युवा पीढी ने परदेश का रुख किया। परिवार को बेहतर जीवन देने की चाहत में प्रवासी मजदूरों की कतार लंबी होती गयी। महाराष्ट्र और केरल में यहां के युवा कडी मेहनत कर परिवार के लिए दो पैसे जोड रहे थे।

कोरोना में बिखर गया सपना

गांव से बेहतरी का सपना लेकर महानगरों को गये युवाओं का सपना कोरोना के कारण बिखर गया है। नोनियापुरा का बुधु नोनिया मुंबई में पेंटिंग का काम करता है।वह दिन रात मेहनत कर दो पैसे बेटी की शादी के लिए जोड रहा था।लेकिन दूसरी बार लगे लॉकडाउन से बुधु का सपना बिखरने लगा है।यहां के अधिकांश प्रवासी पेंटिंग का काम करते है।कोरोना संक्रमण बढते ही लॉकडाउन की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी।लॉकडाउन के डर से महाराष्ट्र को बोरोबली से मुकेश कुमार,उपेंद्र कुमार,अजय कुमार,पप्पु कुमार,चंदन कुमार,बिरन प्रसाद, बिहारी नोनिया और देवेन्द्र कुमार सीधे गांव लौट आये। इसी तरह गोवा से बालू अनिल कुमार और केरल से पेंटिंग का काम करने वाला बिरेंद्र कुमार गांव लौट आया है।

बेकारी से बिगड़ रही आर्थिक स्थिति

लॉकडाउन के डर से प्रवासी मजदूर गांव लौट आये है। लेकिन यहां काम नहीं मिलने के कारण अब उन्हें फांकाकशी के दौर से गुजरना पड रहा है।मजदूरों का कहना है कि पिछले बार गांव लौटने में उन्हें काफी संघर्षों से गुजरना पडा था।इस बार कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं थे।काम बंद होने के कारण सीधे गांव लौट आये। बिरेंद्र और उपेंद्र कुमार ने बताया कि उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है।ऐसे में सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता से वंचित रह जाएगे।मजदूरों का कहना है कि सरकार उन्हें रोजगार उपलब्ध करा दे।मेहनत से परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेगे।

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