बक्सर की धरा पर हुई थी रक्षाबंधन की शुरुआत
बक्सर। हिन्दुस्तान प्रतिनिधिइसके पीछे एक पौराणिक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान वामन की अवतार भूमि बक्सर से ही रक्षाबंधन की शुरुआत हुई थी। पहली बार भगवान वामन को दैत्यराज बलि के चंगुल से छुड़ाने...
बक्सर। हिन्दुस्तान प्रतिनिधि
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
आज भी इसी श्लोक के साथ रक्षा धागा बांधने का रिवाज है। इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान वामन की अवतार भूमि बक्सर से ही रक्षाबंधन की शुरुआत हुई थी। पहली बार भगवान वामन को दैत्यराज बलि के चंगुल से छुड़ाने के लिए माता लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधी थी। जिस दिन माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी थी, उस दिन सावन का महीना पूर्णिमा तिथि श्रवण नक्षत्र भाद्रा रहित होने के कारण सर्वश्रेष्ठ रक्षाबंधन के नाम से प्रतिष्ठित हुआ।
आचार्य मुक्तेश्वर शास्त्री ने बताया कि यह बात उस समय कि है जब जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे। तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में राजा से उनका सारा राजपाट ले लिया। तब राजा बलि को पाताल लोक का राज्य रहने के लिए दिया। तब राजा बलि ने प्रभु से कहा- भगवन मैं आपके आदेश का पालन करूंगा और आप जो आदेश देंगे वहीं पर रहूंगा पर आपको भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी।
प्रभु को विश्वास में लेने के बाद राजा बलि ने कहा- भगवन मैं जब सोने जाऊं तो.. जब उठूं तो.. जिधर भी मेरी नजर जाये उधर आपको ही देखा करूं। इस तरह भक्ति भाव से वशीभूत होकर राजा बलि प्रभु वामन को लेकर सुतल लोक लोग चला गया।
ऐसे होते होते काफी समय बीत गया। उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को भी नारायण की चिंता होने लगी। तब लक्ष्मी जी ने नारद जी से पूछा- आप तो तीनों लोकों में घूमा करते हैं..क्या नारायण को कहीं देखा है। तब नारद जी बोले कि आजकल नारायण सुतल लोक में हैं। राजा बलि की पहरेदारी कर रहे हैं। तब लक्ष्मी जी ने नारद जी मुक्ति का उपाय पूछा और तभी नारद ने राजा बलि को भाई बनाकर रक्षा का वचन लेने का मार्ग बताया।
नारद जी की सलाह मानकर लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुंची। बलि को भाई मानकर रक्षाबंधन करने का आग्रह किया। तब राजा बलि ने कहा- तुम आज से मेरी धरम की बहिन हो और मैं सदैव तुम्हारा भाई बनकर रहूंगा। तब लक्ष्मी ने तिर्बाचा कराते हुए बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये।
इस बचन को पूरा करने की बात आई तो राजा बलि बोले- धन्य हो माता, जब आपके पति आये तो वामन रूप धारण कर सब कुछ ले गये और जब आप आईं तो बहन बनकर उन्हें भी ले गयीं।
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