सातवें दिन सुदामा चरित्र सुनकर भाव-विभोर हो उठे श्रद्धालु
बक्सर के सगरांव गांव में श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के सातवें दिन आचार्य रणधीर ओझा ने सुदामा चरित्र और शुकदेवजी के उपदेश का वर्णन किया। कथा के दौरान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया गया।...

प्रवचन आज भव्य भंडारे का होगा आयोजन, सैकड़ों श्रद्धालु ग्रहण करेंगे प्रसाद कलियुग में ध्यान व ईश्वर भजन करने वाले को मिलता है प्रभु का सानिध्य बक्सर, निज संवाददाता। जिले के राजपुर प्रखंड अंतर्गत सगरांव गांव में श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के सातवें दिन आचार्य रणधीर ओझा ने बाल सखा सुदामा चरित्र एवं शुकदेवजी द्वारा राजा परीक्षित को दिए गए उपदेश का वर्णन किया। आचार्य ने बताया कि श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता समाज के लिए एक मिसाल है। सुदामा के आने की खबर सुन श्रीकृष्ण व्याकुल होकर दरवाजे की तरफ दौड़ते हैं। ‘पानी परात को हाथ छूवो नाहीं, नैनन के जल से पग धोए।
श्रीकृष्ण बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए कि द्वारका के नाथ हाथ जोड़ औरंग लिपटकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हाल पूछने लगे। कहा कि ‘स्व दामा यश्य सः सुदामा। अर्थात अपनी इंद्रियों का जो दमन कर लें वहीं सुदामा है। सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए चावलों ने भगवान श्रीकृष्ण से सारी हकीकत बया कर दी और प्रभु ने बिन मांगे सुदामा को सबकुछ प्रदान कर दिया। इसके बाद आचार्य ने शुकदेव परीक्षित की कथा सुनाते हुए कहा कि शुकदेवजी ने परीक्षित से कहा कि कलयुग में कोई दोष होने पर भी एक लाभ है। इस युग में जो भी कृष्ण का कीर्तन करेगा, उसके घर कलि कभी प्रवेश नहीं करेगा। मृत्यु के समय परमेश्वर का ध्यान और नाम लेने से प्रभु जीव को अपने स्वरूप में समाहित कर लेते हैं। कथा सुनकर उपस्थित श्रोतागण भाव विभोर हो गए। आयोजक उदय नारायण यादव ने बताया कि आज भव्य भंडारा का आयोजन किया गया है। जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करेंगे।
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