संसद में उठी बुनकरों की आवाज, कारोबार को मिलेगी रफ्तार
संसद में उठी बुनकरों की आवाज, कारोबार को मिलेगी रफ्तार संसद में उठी बुनकरों की आवाज, कारोबार को मिलेगी रफ्तार

संसद में उठी बुनकरों की आवाज, कारोबार को मिलेगी रफ्तार नालंदा के सांसद की मांग पर टेक्सटाइल मंत्री ने दिया सहयोग का आश्वासन बुनकरों को मिलेगा बाजार और प्रोत्साहन, सरकार से हुई सिफारिश फोटो : सांसद : संसद की कार्यवाही में भाग लेते नालंदा सांसद कौशलेन्द्र कुमार। बिहारशरीफ, हमारे संवाददाता। कभी नालंदा के हस्तकरघा उद्योग की पहचान दुनिया भर में थी। बावनबूटी साड़ी की नायाब कारीगरी देश-विदेशों तक मशहूर थी। दर्जनों गांवों में खटकल की आवाज गूंजती थी। यहां, तसर, सिल्क, खादी और सूती कपड़े बनाए जाते थे। लेकिन, आधुनिकता और मशीनों के बढ़ते प्रभाव ने हाथ से तैयार कपड़ों की मांग को प्रभावित किया। अब हालात यह कि अधिकांश बुनकर पुश्तैनी धंधा छोड़कर दूसरे रोजगार में चले गए हैं। हस्तकरघा उद्योग के इस पतन पर चिंता जताते हुए नालंदा के सांसद कौशलेंद्र कुमार ने लोकसभा में हस्तकरघा और बाबनबूटी उद्योग को बढ़ावा देने की मांग उठाई। उन्होंने सदन में पद्मश्री से सम्मानित बुनकर कपिलदेव प्रसाद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनके योगदान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहा है। उन्होंने कहा कि नालंदा समेत कई जिलों पूर्णिया, नवादा और शेखपुरा में बड़ी संख्या में बुनकर इस काम से जुड़े हैं। लेकिन, उन्हें समुचित सरकारी सहायता नहीं मिल रही है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि हस्तकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना लागू की जाए। सरकार से मांग की कि बुनकरों को प्रोत्साहन देने, बाजार उपलब्ध कराने और जीआई टैग दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। सांसद की मांग पर टेक्सटाइल मंत्री गिरिराज सिंह ने सहमति जताई और आश्वासन दिया कि बुनकरों और हस्तशिल्प कारीगरों के विकास के लिए केंद्र सरकार जो भी संभव होगा, वह करेगी। नेपुरा और बसवन बिगहा के बुनकर अब भी जिंदा रखे हैं कला: सिलाव के नेपुरा और बिहारशरीफ के बसवन बिगहा में अब भी कुछ बुनकर अपने हुनर को बचाए हुए हैं। यहां के बुनकर तसर और कॉटन के धागे से बावनबूटी साड़ी तैयार करते हैं। बुनकरों का कहना है कि यह कला उनके पूर्वजों से चली आ रही है। लेकिन, बाजार की कमी और सरकारी उपेक्षा के कारण वे मुश्किल में हैं। बावनबूटी साड़ी को जीआई टैग दिलाने की मांग: बुनकरों को उम्मीद थी कि नाबार्ड द्वारा जीआई टैग दिलाने की जो पहल की गई थी। वह उनके लिए संजीवनी साबित होगी। लेकिन महीनों बाद भी यह प्रक्रिया अधूरी है। यदि बावनबूटी साड़ी को जीआई टैग मिल जाता है तो इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अलग पहचान मिलेगी और बुनकरों को आर्थिक मजबूती मिलेगी। राष्ट्रपति भवन तक पहुंची थी बावनबूटी की पहचान: नालंदा के हस्तकरघा उद्योग को पहली बार तब पहचान मिली, जब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने यहां बने पर्दों को राष्ट्रपति भवन में लगवाया। इसके बाद यह कला चर्चा में आई। अब तो इस कला को यूनेस्को भी बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, आज भी फैशन की दुनिया से यह कला कोसों दूर है। पद्मश्री से सम्मानित हुए बुनकर कपिलदेव प्रसाद दो वर्ष पहले बसवन बिगहा के बुनकर कपिलदेव प्रसाद को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बाबनबूटी साड़ी बुनने की कला के लिए वर्ष 2023 में पांच अप्रैल को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया था। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी, बीटा और बहु अब इस पुश्तैनी धंधे को आगे बढ़ा रही हैं। बुनकरों का कहना है कि अगर सरकार इस उद्योग को फिर से संजीवनी देना चाहती है, तो इसके लिए बाजार उपलब्ध कराना होगा। ताकि, बुनकरों को उनके उत्पादों का सही मूल्य मिल सके। बुनकरों को पूंजी मुहैया कराया जाए।
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