Rahui High School From Glory to Decline - Education Crisis in Bihar कभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब पर्याप्त वर्ग कक्ष भी नहीं , Biharsharif Hindi News - Hindustan
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कभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब पर्याप्त वर्ग कक्ष भी नहीं

कभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब पर्याप्त वर्ग कक्ष भी नहींकभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब पर्याप्त वर्ग कक्ष भी नहींकभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफSun, 30 March 2025 12:15 AM
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कभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब पर्याप्त वर्ग कक्ष भी नहीं

गौरव से गर्दिश तक 02 : रहुई हाई स्कूल : कभी हॉस्टल में रहकर विद्यार्थी करते थे पढ़ाई, अब पर्याप्त वर्ग कक्ष भी नहीं पटना गांधी सेतु के निर्माण में मुख्य कार्यपालक अभियंता की भूमिका निभाने वाले ने इसी स्कूल से की थी पढ़ाई अयोध्या प्रसाद ज्वाला नामक छात्र एचएम बनकर पाया राष्ट्रपति पुरस्कार वर्ष 1948 में स्थापित हुआ था विद्यालय, अनुसाशन व गुणवत्तपूर्ण शिक्षा के लिए था प्रसिद्ध हाई स्कूल भवनहीन, तो प्लस-टू के छात्रों की पढ़ाई के लिए महज 6 कमरे प्लस-टू विद्यालय में कला संकाय में एक, तो विज्ञान में एक भी शिक्षक नहीं फोटो : रहुई हाईस्कूल : रहुई हाईस्कूल का भवन की क्षतिग्रस्त दीवार। बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान संवाददाता/प्रदीप कुमार। एक समय था जब सरकारी बाबुओं व गरीबों के बच्चे एक साथ एक ही विद्यालय में पढ़ाई करते थे। गुरुजनों के मार्गदर्शन व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने से गरीब घर के बच्चे भी बड़े-बड़े ओहदों के लिए चुने जाते थे। रहुई हाई स्कूल का भी इतिहास कुछ इसी तरह का रहा है। इस स्कूल में एक समय था जब विद्यार्थी हॉस्टल में रहकर गुरुजनों के मार्गदर्शन में पढ़ाई करते थे। खास बात यह कि शिक्षक भी बच्चे के साथ छात्रावास में ही रहते थे। उस समय में भी करीब एक हजार विद्यार्थी हाईस्कूल में पढ़ाई करते थे। पहले आठवीं से दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई करायी जाती थी। लेकिन, पुराने शिक्षकों के सेवानिवृत्त व तबादला होने के बाद कुछ ही वर्षों में छात्रावास की सुविधा बंद हो गयी। जब छात्रावास की सुविधा थी तो बच्चों व शिक्षकों के लिए रहुई गांव निवासी विशेश्वर राम भोजन बनाते थे। विद्यार्थियों व शिक्षकों को केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देना होता था। इस विद्यालय ने कई होनहार विद्यार्थियों के भविष्य की नींव रखी। झेल रहा कमरों की कमी का दंश : शिक्षक बनने के बाद राष्ट्रपति पुरस्कार पाने वाले अयोध्या प्रसाद ज्वाला का विद्यालय कई साल से शिक्षकों व कमरों की कमी का दंश झेल रहा है। वर्ष 2012 में इस विद्यालयों को प्लस-टू हाईस्कूल का दर्जा दिया गया। वर्ष 2018 से इंटर की पढ़ाई शुरू करायी गयी। इस विद्यालय में इंटर के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए विज्ञान के एक भी शिक्षक नहीं हैं। कला संकाय के लिए महज एक शिक्षक कार्यरत हैं। प्रयोगशाला, पुस्तकालय, आईसीटी लैब की सुविधा हैं। लेकिन, स्वीकृत पद के अनुसार शिक्षक नहीं रहने की वजह से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना स्कूल प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। इन होनहारों ने पायी कामयाबी : पटना के गांधी सेतु के निर्माण में मुख्य अभियंता के रूप में कार्य करने वाले रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने इसी स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई की थी। इनका गांधी सेतु के निर्माण में अहम योगदान रहा। इसी स्कूल के विद्यार्थी रहे रहुई गांव निवासी अयोध्या प्रसाद ज्वाला वर्ष 1993 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुए। इससे पहले वर्ष 1982 में इन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर प्रसाद ने राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया था। वे लगातार 48 वर्षों तक रहुई मध्य विद्यालय में शिक्षक और उसके बाद प्रधानाध्यापक के पद पर रहे। इसी तरह, कई होनहार विद्यार्थी आयुक्त व कई एडीएम तक के पदों पर विराजमान हुए। शिक्षकों ने छोड़ी छाप : रहुई हाईस्कूल बनने के बाद गिरिधर सिंह स्कूल के प्राचार्य बने तो अनुशासन व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही विद्यालय की पहचान बन गयी थी। वर्ष 1988 में जब ठाकुर बाबू को स्कूल संचालन की कमान मिली तो कोई छात्रों में हिम्मत नहीं होती थी कि बरामदे में दिख जाएं। सख्त अनुशासन व्यवस्था व गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई दिलाने उनका लक्ष्य था। शिक्षक महादेव प्रसाद, द्वारिका प्रसाद, मौलवी सर, बालेश्वर प्रसाद व अन्य शिक्षकों की टीम ने इस स्कूल से सैकड़ों होनहार विद्यार्थियों को ऐसी राह दिखायी कि बिहार व देश में कई विभागों में बड़े-बड़े पदों पर पहुंचने में सफलता पायी। गांव के लोग उन दिनों की शिक्षा व्यवस्था को याद कर कहते हैं एक जमाना था जब शिक्षक स्कूल के बच्चों को घर से बुलाकर पढ़ाते थे। ताकि, बच्चों का भविष्य बेहतर हो सके और आज का समय है कि बच्चों को स्कूलों में भी सही से देखभाल करने वाला कोई नहीं है। विद्यालय का अस्तित्व : वर्ष 1948 में ठाकुर कृष्णनंदन सिंह ने ग्रामीणों से विचार-विमर्श कर रहुई गांव में हाई स्कूल खोलने की योजना बनायी। उन्होंने स्कूल के लिए भूमि दान में दी। ग्रामीणों ने स्कूल भवन बनाने में शारीरिक रूप से सहयोग किया। कच्चा गारा (सीमेंट की जगह मिट्टी) व ईंट से 10 बड़े-बड़े कमरों का निर्माण किया गया। वर्ग कक्ष के बगल में लंबा-चौड़ा बरामदा भी बनाया गया था। विद्यार्थियों के खेलने के लिए परिसर के बीच में खेल मैदान है। पेड़-पौधे व फूलों से स्कूलों को बेहतर लुक दिया गया। लेकिन, समय बीतने के साथ भवन जर्जर होता चला गया। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी की वजह से हाई स्कूल में अब तक एक भी नया कमरा नहीं बनाया गया। हाई स्कूल के भवन की केवल दीवार अब अवशेष में बचा हुई है। 90 फीसदी विद्यार्थी पा रहे सफलता : मैट्रिक व इंटर में 90 फीसदी विद्यार्थी सफलता पाते रहे हैं। साथ ही, बाल विज्ञान, इंस्पायर अवार्ड प्रतियोगिता, कला उत्सव में भी राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में शामिल होकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन यहां के बच्चे कर चुके हैं। स्कूल में 924 विद्यार्थी नामांकित हैं। लेकिन, वर्ग कक्ष व शिक्षकों की कमी की वजह से परेशानी झेलनी पड़ रही है। शबाना खातून, प्राचार्य, रहुई हाई स्कूल

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