निर्वाण महोत्सव पर पावापुरी जलमंदिर सज-धज कर तैयार
निर्वाण महोत्सव पर पावापुरी जलमंदिर सज-धज कर तैयारनिर्वाण महोत्सव पर पावापुरी जलमंदिर सज-धज कर तैयारनिर्वाण महोत्सव पर पावापुरी जलमंदिर सज-धज कर तैयार
निर्वाण महोत्सव पर पावापुरी जलमंदिर सज-धज कर तैयार भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी जल मंदिर की है अपनी ऐतिहासिक सौंदर्यता और धार्मिक महत्व 527 ईसा पूर्व भगवान महावीर का पावापुरी में हुआ था निर्वाण फोटो : भगवान महावीर : पावापुरी जलमंदिर गर्भ गृह में स्थापित भगवान महावीर प उनके शिष्यों की चरण पादुका। पावापुरी, निज संवाददाता। नालंदा जिले में स्थित पावापुरी जैन धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां स्थित भगवान महावीर की निर्वाण स्थली है, जहां 527 ईसा पूर्व उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। यहीं पर भगवान महावीर का अग्नि संस्कार हुआ था। उसे आज जलमंदिर के नाम से जाना जाता है। यह न केवल जैन समुदाय बल्कि हर श्रद्धालु के लिए विशेष महत्व रखता है। इस पवित्र स्थल की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता अद्वितीय है। यहां की भव्यता सदियों से श्रद्धालुओं को आकर्षित करती आयी है। भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर का पावापुरी में निर्वाण हुआ था। मान्यता है कि भगवान महावीर ने यहां अंतिम सांस ली और उनका समाधि स्थल यहां स्थित है। उनके निर्वाण के बाद इस पावन स्थल की स्थापना हुई। तब से यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बन गया। हर वर्ष उनके निर्वाण महोत्सव पर हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं और भगवान महावीर के आदर्शों का स्मरण करते हैं। जैन श्वेतांबर मंदिर के सचिव शांतिलाल बोथरा ने बताया कि भगवान महावीर ने अपनी शिक्षा में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का महत्व समझाया है। उनके सिद्धांत आज भी लोगों को नैतिक और शांतिपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। पावापुरी का यह निर्वाण स्थल उनके इन महान सिद्धांतों का एक जीवंत प्रतीक है। जल मंदिर की ऐतिहासिक सौंदर्यता अपने आप में अनूठी : पावापुरी का जल मंदिर इस स्थल का प्रमुख आकर्षण है। इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। मंदिर एक सुंदर तालाब के मध्य स्थित है, जिसके चारों ओर हरे-भरे कमल के फूल और शांत जल का दृश्य देखने लायक है। इस तालाब को "पद्म सरोवर" के नाम से जाना जाता है, जहां कमल के फूल तालाब में खिले रहते हैं। इसकी सौंदयर्ता अपने आप में अनूठी है। इसके बारे में मान्यता है कि भगवान महावीर के निर्वाण के बाद यहां आए श्रद्धालुओं ने उनकी स्मृति में बड़ी मात्रा में मिट्टी ली थी, इससे यह तालाब बन गया। तालाब के बीच स्थित जल मंदिर तक पहुंचने के लिए एक पतला सा मार्ग है, जो इसे मुख्य भूमि से जोड़ता है। मंदिर की दीवारों और गुंबदों पर की गई नक्काशी इस स्थान की ऐतिहासिक महत्व और सुंदरता को दर्शाती है। मंदिर के भीतर भगवान महावीर की चरण पादुका के साथ उनके दो गंधर गौतम स्वामी एवं सुधर्मा स्वामी की भी चरण पादुका स्थापित है। इसके गर्भगृह में विशेष आभा का अनुभव होता है। इससे श्रद्धालु आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं। निर्वाण महोत्सव के दिन हिलता डोलता है जलमंदिर में स्थापित क्षत्र : पुजारी उमाकांत उपाध्याय ने बताया कि निर्वाण महोत्सव के दिन गर्भ गृह में स्थापित क्षत्र कुछ क्षण के लिए कंपन होता है। इसे देखने के लिए जैन श्रद्धालु इंतजार करते हैं। जैन धर्म में भगवान महावीर का निर्वाण अत्यंत महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। जलमंदिर इसका प्रतीक है। जैन अनुयायियों के लिए यहां आकर भगवान महावीर के सिद्धांतों का स्मरण करना आत्मिक शुद्धि का मार्ग है। जलमंदिर की सजावट और इसका शांत वातावरण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी, फूलों और झालरों से सजाया गया है। निर्वाण महोत्सव में श्रद्धा संगम में गोता लगाएंगे भक्त : भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव के अवसर पर जल मंदिर में देश-विदेश से जैन श्रद्धालु एकत्रित हुए हैं। मंदिर और उसके आसपास का माहौल भक्तिमय हो गया है। श्रद्धा संगम में यहां आए भक्त गोता लगाएंगे। इस पावन स्थल पर आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि जल मंदिर में भगवान महावीर के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने से उन्हें मानसिक और आत्मिक शांति मिलती है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक वातावरण एक साथ मिलकर इसे एक अद्वितीय तीर्थस्थल बनाते हैं। हर श्रद्धालु इसका अनुभव करता है।
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