आस्था : द्वापरकालीन नगरी बड़गांव में बस गया तम्बुओं का शहर
आस्था : द्वापरकालीन नगरी बड़गांव में बस गया तम्बुओं का शहरआस्था : द्वापरकालीन नगरी बड़गांव में बस गया तम्बुओं का शहरआस्था : द्वापरकालीन नगरी बड़गांव में बस गया तम्बुओं का शहरआस्था : द्वापरकालीन नगरी...
आस्था : द्वापरकालीन नगरी बड़गांव में बस गया तम्बुओं का शहर करीब 800 तम्बुओं में डेरा डाले हैं विभिन्न प्रदेशों से पहुंचे छठव्रती तालाब के आसपास जहां तक नजर रही, वहां तक तम्बू ही तम्बू फोटो बड़गांव तम्बू- बड़गांव सूर्य तालाब के पास प्लास्टिक, साड़ी-धोती व बांस के सहारे बनाये गये तम्बू। बिहारशरीफ, कार्यालय प्रतिनिधि। विश्व के 12 अर्कों (प्रसिद्ध सूर्य मंदिर) में से एक बड़गांव(पुराना नाम बराक) धाम की महत्ता किसी से छुपी नहीं है। यहां देश- विदेश के कोने-कोने से श्रद्धालु छठव्रत करने आते हैं। नहाय-खाय के दिन से ही छठव्रतियों की भीड़ जुटने लगी है। चार दिनों तक यहीं रहकर व्रती भगवान भास्कर की उपासना करते हैं। बड़गांव में धर्मशाला नहीं है। श्रद्धालु बांस के सहारे प्लास्टिक सीट, धोती व साड़ी से तम्बू बनाकर रहते हैं। यहां का नजारा ऐसा कि जहां तक नजर जा रही है, वहां तक तम्बू ही तम्बू नजर आ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि सूर्यधाम में तम्बुओं का नया शहर बस गया है। लोहंडा की शाम तक तालाब के आसपास करीब 800 तम्बू लग गये थे। तम्बू बनाने पर 400 खर्च: तम्बू बनाने के लिए बड़गांव में ही छोटे-छोटे बांस के डंडे और प्लास्टि सीट मिल जाती है। तम्बू के आकार के अनुसार चार से छह बांस के डंडे और प्लास्टि सीट की जरूरत पड़ती है। इसपर करीब साढ़े तीन से चार रुपए तक खर्च आता है। प्लास्टि से तम्बू की छत तैयार की जाती है। जबकि, धोती या साड़ी के सहारे तम्बू को चारों तरह से घेर दिया जाता है। इसी में व्रती अपने परिजन के साथ रहकर छठ का अनुष्ठान करते हैं। मान्यताएं होती हैं पूरी : तम्बू बनाकर सूर्योपासना कर रहीं चितरंजन(पश्चिम बंगाल) की शिला देवी, धनबाद की रिंकु देवी कहती हैं कि बड़गांव धाम की महत्ता अपरंपार है। सच्चे मन से मांगीं गयीं मुरादें सूर्यदेव जरूर पूरी करते हैं। सुरेन्द्र कुमार धारी कहते हैं कि पहले उनकी दादी यहां छठव्रत करने आती थीं। उनके साथ कई बार आने का अवसर मिला था। वह नहीं रहीं। तो नयी पीढ़ी उनकी परंपरा को निभाने यहां आ रही हैं।
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