चार माह के बाद योग निद्रा से जागे भगवान हरि, लोगों ने की पूजा-अर्चना
चार माह के बाद योग निद्रा से जागे भगवान हरि, लोगों ने की पूजा-अर्चनाचार माह के बाद योग निद्रा से जागे भगवान हरि, लोगों ने की पूजा-अर्चनाचार माह के बाद योग निद्रा से जागे भगवान हरि, लोगों ने की...
चार माह के बाद योग निद्रा से जागे भगवान हरि, लोगों ने की पूजा-अर्चना श्रद्धालुओं ने किया देवोत्थान एकादशी व्रत देवोत्थान एकादशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व भक्तों ने की भगवान विष्णु की आराधना एकादशी पर जगह-जगह हुआ तुलसी विवाह पावापुरी, निज संवाददाता। देवोत्थान एकादशी का पर्व इस बार विशेष हर्षोल्लास के साथ मंगलवार को मनाया गया। यह दिन भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने व्रत, उपवास और विशेष पूजा-अर्चना की। उनसे जीवन में सुख-समृद्धि की मंगल कामना की। भगवान विष्णु के भक्तों ने मंदिरों में दर्शन कर अपनी आस्था व्यक्त की और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। धार्मिक मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद वे देवोत्थान एकादशी के दिन योग निद्रा से जागते हैं। इसके साथ सभी शुभ कार्यों और मांगलिक कार्यों का आरंभ हो जाता है। मंदिरों में इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया। भक्तों ने दीप जलाकर भगवान विष्णु की आराधना की। भजन-कीर्तन कर भगवान का गुणगान किया। पंडित सूर्यमणि पांडेय ने बताया कि देवोत्थान एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। देवोत्थान एकादशी के दिन का धार्मिक महत्व बहुत बड़ा है। आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे योग निद्रा से जागते हैं। इस अवधि को ‘चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान सभी प्रकार के मांगलिक काम विवाह, गृह प्रवेश व अन्य वर्जित रहते हैं। देवोत्थान एकादशी के साथ ही यह निषेध समाप्त हो जाता है। भक्तों ने दीप जलाकर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और तुलसी विवाह का भी आयोजन किया। तुलसी के पौधे को शालिग्राम के साथ विवाह सूत्र में बांधकर धार्मिक विधि-विधान से पूजन किया गया। श्रद्धालुओं ने विशेष रूप से तुलसी विवाह के साथ ही मांगलिक कार्यों का शुभारंभ किया। मंदिरों, शिवालयों समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर भक्तों की भीड़ रही। लोगों ने अपने आराध्य देवता की पूजा अर्चना कर उनसे आशीर्वाद लिया। देवोत्थान एकादशी का यह पर्व न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही सभी तरह के मांगलिक काम शुरू हो गए।
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