श्रद्धा के बिना भक्ति अधूरी, गुरु की शरण से मिलता है ज्ञान: स्वामी युगल शरण
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श्रद्धा के बिना भक्ति अधूरी, गुरु की शरण से मिलता है ज्ञान: स्वामी युगल शरण कहा- मन को भगवान में लगाना ही सच्ची भक्ति, दिव्य प्रेम ही भक्ति का अंतिम लक्ष्य श्रद्धा, साधना और सेवा से मिलता है भगवान का सान्निध्य, भाव भक्ति से प्रेम भक्ति की ओर बढ़ता है मनुष्य फोटो : युगल 01 : बिहारशरीफ के श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में डॉ. स्वामी युगल शरण के प्रवचन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़। बिहारशरीफ, हमारे संवाददाता। श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में आयोजित प्रवचन के अंतिम दिन रविवार को स्वामी युगल शरण ने भक्ति और प्रेम का महत्व समझाया। प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। स्वामी युगल शरण ने कहा कि भक्ति और प्रेम साधना गुरु की कृपा से प्राप्त होती है। इसे निष्काम भक्ति कहा जाता है, जिसमें भगवान स्वयं भक्त के अधीन हो जाते हैं। साधना भक्ति का मुख्य उद्देश्य मन को भगवान में लगाना होता है। जब यह भक्ति पूरी तरह परिपक्व हो जाती है, तो इसे भाव भक्ति कहा जाता है। भाव भक्ति में मन भगवान से जुड़ने लगता है और भक्त को एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव मिलता है। उन्होंने बताया कि भक्तिभाव के अलग-अलग स्तर होते हैं। शांत भाव सबसे निचले स्तर पर होता है, जबकि माधुर्य भाव सबसे ऊंचे स्तर पर होता है। भक्त अपने भावों के अनुसार भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। शांत भाव के उपासक दास्य भाव को प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन दास्य भाव के उपासक शांत भाव को प्राप्त कर सकते हैं। इसी तरह, सख्य भाव, वात्सल्य भाव और माधुर्य भाव के बीच भी भक्त की भक्ति यात्रा चलती रहती है। उन्होंने बताया कि भक्तिमार्ग में संबंध, अभिधेय और प्रयोजन के गहरे अर्थ होते हैं। श्रीकृष्ण ही हमारे सच्चे संबंधी हैं, इसलिए हमें उनकी भक्ति करनी चाहिए। इस भक्ति के माध्यम से दिव्य प्रेम प्राप्त करना ही हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए। स्वामी युगल शरण ने भाव भक्ति के नौ लक्षण भी बताए। पहला, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना। दूसरा, हर क्षण भगवान की सेवा और साधना में लगाना। तीसरा, संसार से मोह कम करना। चौथा, दूसरों को सम्मान देना और स्वयं मान की इच्छा न रखना। पांचवां, भगवान की कृपा पर दृढ़ विश्वास रखना। छठा, भगवान के दर्शन की गहरी इच्छा रखना। सातवां, भगवान के नाम संकीर्तन में रुचि लेना। आठवां, भगवान के गुणगान में आनंद लेना और नौवां, भगवान के धाम में निवास करने की इच्छा रखना। उन्होंने प्रेम प्राप्ति के क्रम की भी व्याख्या की। पहले श्रद्धा आती है, फिर सत्संग और गुरु की सेवा से भजन क्रिया शुरू होती है। इसके बाद मन की अशुद्धियां दूर होती हैं और निष्ठा बढ़ती है। फिर रुचि आती है, आसक्ति बढ़ती है और अंत में प्रेम की प्राप्ति होती है। उन्होंने श्रद्धालुओं को समझाया कि भक्ति के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। साधना और सेवा के लिए श्रद्धा जरूरी है। अगर श्रद्धा न भी हो तो भी गुरु की शरण में जाकर सत्संग करने से श्रद्धा अपने आप आ जाती है। प्रवचन के दौरान श्रद्धालु ध्यान से सुनते रहे और भक्ति में लीन नजर आए। शहर का पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
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