Hindi NewsBihar NewsBiharsharif NewsDemand for Ramps and Support for Disabled in Bihar Sharif

दिव्यांग : सभी सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में रैंप की हो व्यवस्था दिव्यांग : सभी सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में रैंप

बिहारशरीफ में दिव्यांगों ने सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में रैंप की व्यवस्था की मांग की। उन्होंने बताया कि जिला में तीन स्तर पर दिव्यांगजन कमेटी का गठन होना चाहिए ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफFri, 21 Feb 2025 05:56 PM
share Share
Follow Us on
दिव्यांग : सभी सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में रैंप की हो व्यवस्था दिव्यांग : सभी सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में रैंप

बोले बिहारशरीफ दिव्यांग : सभी सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में रैंप की हो व्यवस्था जिला में तीन स्तर पर कमेटी का हो गठन

प्रखंड स्तर पर जांच कर दिव्यांगों को दिया जाय प्रमाण पत्र

सभी लाचार दिव्यांगों को मिलना चाहिए सहाय उपकरण

सदर में भी दिव्यांगों की जांच की पूरी व्यवस्था नहीं

मांसिक दिव्यांगों को जांच के लिए जाना पड़ता है पटना

जिला में 40 हजार दिव्यांगजन, एक हजार से अधिक दिव्यांग उपकरणों के लिए कर रहे भाग दौड़

खेल जगत से लेकर सामान्य दिनचर्या में दिव्यांगों की शुरुआत अपने जीवन की जद्दोजहद से शुरू होती है। वे दिव्यांग होने के बावजूद मेहनत व लगन से काम करते हैं। दिव्यांग बच्चे वैशाखी या अन्य सहाय उपकरणों के सहारे स्कूल पढ़ने आते हैं। इस दौरान उन्हें कई कष्टकारी दौर से भी गुजरना पड़ता है। यहां तक की समाज भी उन्हें एक अलग नजरिए व दया भाव से देखता है। लेकिन, वे अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं। बस सही सहयोग और सम्मान नहीं मिलने का उन्हें हमेशा अफसोस होता है। वे खुद के लिए कुछ व्यवस्थाएं चाहते हैं। ताकि उनका जीवन थोड़ा सरल हो। वे समाज के मुख्य धारा से जुड़े रह सकें। सभी सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में रैंप चाहते हैं। वहीं जिला में तीन स्तर पर दिव्यांगजन कमेटी का गठन चाहते हैं। ताकि उन्हें इसके माध्यम से पूरा अधिकार मिले। सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंच सके। सदर अस्पतालों में भी दिव्यांगों के जांच की पूरी व्यवस्था नहीं होती है। खासकर मांसिक तौर से दिव्यांग बच्चों को प्रमाण पत्र के लिए पटना की दौड़ लगानी पड़ती है। जबकि, जिला में 40 हजार से अधिक दिव्यांगजन हैं। इनमें से एक हजार से अधिक दिव्यांग सहाय उपकरणों के लिए भाग दौड़ कर रहे हैं।

दिव्यांग जन भी हमारे समाज के ही एक अंग हैं। यह कई बार जन्मजात होता है, तो कई बार दुर्घटना के कारण लोग दिव्यांग हो जाते हैं। दिव्यांगों का किसी जाति धर्म या समुदाय से मतलब नहीं है। हर समाज में इस तरह के दिव्यांग लोग मिल जाएंगे। लेकिन, आज की भागमभाग की जिंदगी में कई तरह की परेशानियों को झेल रहे हैं। सबसे अधिक परेशानी उन्हें रैंप को लेकर होती है। कई लोग चलने फिरने तक से लाचार होते हैं। वे सीढ़ियों तो दूर की बात समतल जमीन पर भी सही तरीके से नहीं चल पाते हैं। वैसे लोगों को गंतव्य तक जाने का एकमात्र उपाय रैंप होता है। जहां से वे अपने ट्राइ साइकिल या अन्य सहाय उपकरणों के सहारे पहुंच पाते हैं। लेकिन, वह भी अधिकतर संस्थानों व विद्यालयों में नहीं है। इससे दिव्यांगजनों को परेशानी होती है। जिला में 40 हजार से अधिक दिव्यांगजन हैं। वे पेंशन भी ले रहे हैं। कई दिव्यांग तो प्रमाणपत्र बनाने के लिए दौड़ लगा रहे हैं। हरनौत के खेल स्टेडियम में आपके अपने दैनिक हिन्दुस्तान के बोले बिहारशरीफ संवाद कार्यक्रम में दिव्यांगजनों ने अपनी समस्याओं पर खुलकर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कई सुझाव भी दिए।

दिव्यांगों ने कहा कि कार्यालयों में हमारे साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता है। जबकि, इसके लिए दिव्यांग का कोई दोष नहीं होता है। आज गोल्डी कुमारी, सार्थक राज, सुंदर कुमार सरीखे कई दिव्यांग खिलाड़ी हैं। जिन्होंने राज्य के साथ देश का नाम रौशन किया है। लेकिन, उन्होंने किन दुश्वारियों व प्रतिकुल परिस्थितियों के बीव आज इस मुकाम को हासिल किया है। यह सब जानते हैं। बावजूद उनके लिए किसी तरह की कोई विशेष व्यवस्था नहीं की जाती है। कोच कुंदन पांडेय कहते हैं कि दिव्यांगों के लिए जिला में कम से कम एक स्टेडियम होना चाहिए। जहां वे रोज अभ्यास कर सकें। इससे वे अपनी प्रतिभा को निखार सकते हैं। आज गोल्डी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन चुकी है। जबकि, कई अन्य दिव्यांग खिलाड़ियों को अपनी ही प्रतिभा की जानकारी नहीं है। कार्यालयों, विभागों, स्कूलों यहां तक की बस और रेल में भी लोग दिव्यांगों को एक अलग नजरिए से देखते हैं। हम किसी से दया के भीख नहीं मांगते हैं। बस हमें अपना अधिकार चाहिए। समाज में सम्मान चाहिए। मौका मिलेगा तो हम खुद को साबित करके दिखाएंगे।

कमेटी का गठन होने से दिव्यांगों का होगा भला :

दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 के तहत त्रीस्तरीय कमेटी का गठन किया जाना है। कई जिला में यह कमेटी काम भी कर रहा है। लेकिन, नालंदा जिला में कहीं भी इसका गठन नहीं हुआ है। जिला स्तर पर डीएम के नेतृत्व में, प्रखंड स्तर पर बीडीओ के नेतृत्व में तो पंचायत स्तर पर ग्राम सेवक के नेतृत्व में इसका गठन किया जाना है। कमेटी का गठन होने से पंचायतों के दिव्यांगों को किसी काम के लिए या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए विभागों या कार्यालयों का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। इसकी शुरुआत होनी चाहिए।

400 से कुछ नहीं होगा, मिले तीन हजार पेंशन :

आज की महंगाई में 400 रुपए से क्या होगा। इससे एक माह ट्राइसाइकिल का सही तरीके से रखरखाव तक नहीं हो सकता है। पेंशन की राशि महंगाई को देखते हुए तीन हजार किया जाना चाहिए। इसके लिए कई बार अधिकारियों के माध्यम से सरकार को ज्ञापन दिया गया। लेकिन, अब तक इसमें बढ़ोतरी नहीं की गयी।

हमारे काम को नहीं दी जाती है प्राथमिकता :

सार्थक राज, गोल्डी कुमारी व अन्य दिव्यांग कहते हैं कि अक्सर कार्यालयों में हमारे कामों की प्राथमिकता नहीं दी जाती है। कभी कभार तो एक दस्तखत के लिए घंटों खड़ा कर दिया जाता है। इस कारण हमें लौटना पड़ता है। जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर अधिनियम के अनुसार दिव्यांग कमेटी बनने से हम जैसों को काफी लाभ होगा। हमें भी लोग सामान्य नजरों से देखें। इससे हमारी कार्यकुशलता बढ़ेगी। दिव्यांगों ने कहा कि अधिकतर कार्यालयों में दिव्यांगों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। इससे शारीरिक कष्ट और बढ़ जाता है।

भूमिहिन दिव्यांगों को आवास के लिए दिया जाय 5 डिसमिल जमीन :

सैकड़ों दिव्यांगों के पास रहने के लिए अपना आवास तक नहीं है। वे भूमिहिन रहने के कारण आवास योजना का भी लाभ नहीं ले पा रहे हैं। सभी भूमिहिन दिव्यांगों को आवास बनाने के लिए पांच डिसमिल जमीन दी जाय। क्योंकि, दिव्यांगता के कारण वे सामान्य लोगों की तरह काम काज नहीं कर पाते हैं। उन्हें अपना परिवार चलाना भी मुश्किल होता है। हालांकि, कुछ दिव्यांग अपने मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल पर ही पान, बीड़ी, सिगरेट या अन्य दुकान खोलकर कमाई करते हैं। लेकिन, यह उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं होता है। ऐसे लोगों को आवास मिलने से कम से कम रहने के लिए एक छत तो मिलेगा।

डीएम ऑफिस में हो सिंगल विंडो की व्यवस्था :

कम से कम डीएम ऑफिस में दिव्यांगजनों के लिए सिंगल विंडो की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि, वे वहां जाकर एक ही जगह से सभी तरह के काम करवा सकें। इसके बनने से दिव्यांगजनों का किसी भी प्रकार क समस्या का समाधान एक ही जगह से किया जा सकेगा। सिंगल विंडो जैसी व्यवस्था नहीं होने से दिव्यांगों को कोई प्रमाण पत्र बनाने के लिए या अन्य काम के लिए भाग दौड़ करनी पड़ती है। कई बार तो दिव्यांगों को अपने परिजनों के साथ आना पड़ता है। एक तो आने जाने में परेशानी उस पर दो व्यक्ति का खर्च उनपर आर्थिक संकट को और बढ़ा देता है।

जिला में बनायी जाय कम से कम एक स्टेडियम :

दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए किसी तरह की स्टेडियम नहीं है। वे सामान्य खेल मैदान में ही अभ्यास करने को विवश हैं। हरनौत खेल मैदान में सुबह रोजाना दर्जनों दिव्यांग अभ्यास करते नजर आ जाएंगे। इसी मैदान ने देश को गोल्डी जैसा अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिया। आज वह किसी नाम की मोहताज नहीं है। वे युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बन चुकी है। उन्होंने दिखा दिया कि प्रतिकुल परिस्थितियों में भी परचम लहराया जा सकता है। बस अपने हौसलों को कम नहीं होने दिजिए। जब इन दिव्यांगों को उपयुक्त माहौल, सही कोच और उनके लायक स्टेडियम की व्यवस्था हो, तो दर्जनों खिलाड़ी गोल्डी से भी आगे जा सकते हैं।

सुझाव :

1. सभी सरकारी संस्थानों, कार्यालयों व स्कूलों में रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए।

2. कार्यालयों में दिव्यांगों के बैठने की सुविधा हो। ताकि, वे अपने काम काज आसानी से करवा सकें।

3. विभागों में दिव्यांगों के कामों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

4. जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर अधिनियम के अनुसार दिव्यांग कमेटी का गठन किया जाय।

5. सरकारी योजनाओं में दिव्यांगों के लिए 4 फीसदी का आरक्षण दिया जाय।

6. हमें भी हर जगह सम्मान मिलना चाहिए।

7. दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक स्टेडियम बनाया जाय। जहां वे अभ्यास कर सकें।

8. 45 फीसदी से अधिक दिव्यांगता वालों को मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल दिया जाय।

समस्याएं :

1. अधिकतर संस्थानों व विद्यालयों में रैंप नहीं रहने से दिव्यांगजनों को परेशानी होती है।

2. कार्यालयों में दिव्यांगों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता है।

3. विभागों में दिव्यांगों के कामों को वहां के कर्मी प्राथमिकता नहीं देते हैं। कभी कभार तो एक दस्तखत के लिए घंटों खड़ा कर दिया जाता है।

4. जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर अधिनियम के अनुसार किसी तरह की कोई दिव्यांग कमेटी नहीं।

5. दिव्यांगों को लोग एक अलग नजरिए से देखते हैं। इससे उनकी कार्यकुशलता व व्यवहार पर प्रतिकुल असर पड़ता है।

6. अधिकतर कार्यालयों में दिव्यांगों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है।

7. दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए किसी तरह की स्टेडियम नहीं है। वे सामान्य खेल मैदान में ही अभ्यास करने को विवश हैं।

8. 60 फीसदी से अधिक दिव्यांगता वालों को मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल दिया जाता है। इससे कम वालों को भी आने जाने में परेशानी होती है।

बोले जिम्मेदार :

दिव्यांगों में हुनर की कोई कमी नहीं है। बचपन से ही उनके मन में यह बैठा दिया जाता है कि वे शारीरिक रूप से खेल या पढ़ाई लिखाई के लिए सक्षम नहीं हैं। इसमें दिव्यांगजनों के घर परिवार की भी गलतियां होती है। उन्हें आगे बढ़ने के लिए पूरा सपोर्ट करें। सामान्य नागरिकों की तरह ही उनके साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। उचित मार्गदर्शन और बेहतर सुविधा उपलब्ध करा हम कई गोल्डी बना सकते हैं। इसके लिए प्रयास किया जा रहा है। जिला में स्टेडियम की कमी काफी खलती है। कम से कम एक स्टेडियम होना चाहिए। उपयुक्त स्टेडियम नहीं होने से हरनौत खेल मैदान में ही दिव्यांगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

कोच कुंदन कुमार

दिव्यांगों को लोग कमजोर समझने की गलती न करें। हर दिव्यांग की कुछ न कुछ खासियत होती है। बस वे अपने हुनर को नहीं पहचान पाते हैं। जब दिव्यांग पैर से टारगेट पर निशाना साध सकते हैं। तब हर लक्ष्य को भेदा जा सकता है। बस उनके अंदर आत्मविश्वास को भरना है। ताकि वे अपने उस प्रतिभा को निखार सकें। कई लोगों को सरकारी योजनाओं तक की जानकारी नहीं होती है। वैसे लोगों को योजनाओं से जोड़कर उनतक लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। दिव्यांग अपने आपको कभी भी कमजोर न समझें। वे अपनी खासियत को पहचानें। इसके लिए जिला में निशक्तता विभाग काम कर रहा है। वहां से भी योजनाओं की जानकारी ली जा सकती है।

सुंदर कुमार

खेल के क्षेत्र में दिव्यांगों के कॅरियर की काफी संभावनाएं हैं। लेकिन, इसके लिए उनके खेलों के अनुसार एक स्टेडियम होना चाहिए। साथ ही एक कोच भी हो। ताकि, इच्छुक दिव्यांग खिलाड़ियों को अपने खेलों की तैयारी व अभ्यास करने में किसी तरह की परेशानी न हो। अब खेलों में भी पैसा औ शोहरत है। इसकी बानगी हरनौत की गोल्डी कुमारी पेश कर चुकी है। उन्होंने अपने बलबुते एक छोटे से गांव से निकलकर राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय किया है। वहां हाल ही में उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जी ने उनको सम्मानित किया है। वह अन्य दिव्यांगों के लिए प्ररणा बन चुकी हैं। इससे लोगों को सबक लेना चाहिए।

अमित कुमार पांडेय

जांच के नाम पर अक्सर दिव्यांगों को परेशान किया जाता है। जब जिला स्तर पर सभी तरह की व्यवस्था है, तब किसी भी जांच के लिए दिव्यांगों को पटना या कहीं और रेफर किया जाना कहां तक उचित है। सदर अस्पताल में कम से कम सप्ताह में एक दिन या महीने में दो दिन तीन से चार घंटे के लिए मेडिकल बोर्ड में हर तरह के दक्ष चिकित्सकों को लाकर एक ही केंद्र पर दिव्यांगों की जांच व उन्हें प्रमाण पत्र देने की व्यवस्था होनी चाहिए। एक तो वे पहले से ही शरीरिक रूप से कमजोर व अक्षम होते हैं। दूसरे जांच के नाम पर उन्हें बार बार दौड़ाया जाता है। यह न्यायसंगत नहीं है। क्योंकि अधिकतर दिव्यांगों के साथ एक सहायक को भी रहना पड़ता है। इससे नाहक ही पैसा और समय भी बर्बाद होता है।

ह्रदय यादव

हमारी भी सुनिए :

दिव्यांगों के लिए कुछ नहीं किया गया। कम से कम एक अच्छा स्टेडियम बनाया जाय। जहां दिव्यांग जाकर खेलों का अभ्यास कर सकें। अलग अलग खेलों के लिए कोच की भी व्यवस्था होनी चाहिए।

गोल्डी कुमारी

आज भी 90 फीसदी सरकारी संस्थानों में रैंप की सुविधा नहीं है। इससे पैर से लाचार दिव्यांगों को काफभ् परेशानी होती है। हर हाल में इन जगहों पर रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए।

विकास कुमार

विभागों में दिव्यांगों के कामों को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। एक दस्तखत के लिए भी घंटों खड़ा रहना पड़ता है। कम से कम इन कार्यालयों में दिव्यांगों के बैठने की सुविधा हो।

अंकित कुमार

खेल मैदान नहीं होने से जो दिव्यांग खेल में जाना चाहते हैं। वे नहीं जा पाते हैं। दिव्यांगों को सही गाइड मिले, तो हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ सकते हैं।

निखिल कुमार

जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर अब तक किसी तरह की दिव्यांग कमेटी का गठन नहीं किया गया है। जबकि, कई जिलों में यह चल रहा है। यहां भी इसका गठन होना चाहिए।

उज्जवल रंजन कुमार

दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक स्टेडियम बनाया जाय। ताकि, वे वहां अभ्यास कर सकें। खासकर मांसिक तौर से दिव्यांग इसके माध्यम से शारीरिक गतिविधियों से जुड़े रहेंगे।

सार्थक राज

45 फीसदी से अधिक दिव्यांगता वालों को भी मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल दिया जाय। फिलहाल यह सुविधा 60 फीसदी से अधिक दिव्यांगता वालों को ही यह सुविधा दी जा रही है।

ओम प्रकाश पटेल

अधिकतर संस्थानों व विद्यालयों में रैंप नहीं रहने से दिव्यांगजनों को काफी परेशानी होती है। कम से कम सभी स्कूलों में रैंप की व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि वे आराम से वर्ग कक्ष तक पहुंच सकें।

अनुपम कुमार

बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों व अन्य सार्वजनिक जगहों पर हमें एक अलग नजरिए से देखा जाता है। हमारे साथ भी सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए। हम मजबूर होते हुए भी समाज को आगे बढ़ाने में ह संभव मदद करते हैं।

नेहा कुमारी

हमारे कामों को कहीं भी प्राथमिकता नहीं दी जाती है। विभागों में दिव्यांगों के कामों को वहां के कर्मी नलजरअंदाज करते हैं। हमें दो मिनट के काम के लिए भी घंटों खड़ा कर दिया जाता है।

रोहित राज

कम से कम प्रखंड स्तर पर दिव्यांगजनों के लिए कमेटी का गठन होना चाहिए। जहां जाकर वे अपनी समस्याओं को रख सकें। इससे हमारा काम काफी आसान तरीके से हो सकेगा।

अभय कुमार

दर्जनों दिव्यांगों ने अपने हुनर से देश व विश्व स्तर पर मुकाम हासिल किया है। दिव्यांगजनों को और बेहतर सुविधाएं मिले, तो हर क्षेत्र में वे परचम लहरा सकते हैं।

अविनाश कुमार

कार्यालयों में दिव्यांगों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। यह काफी अखरता है। कहीं कहीं तो हमें भी लाइन में घंटों खड़ा रहना पड़ता है। शारीरिक अक्षमता के कारण हमारा सब्र जवाब दे जाता है।

झंडु कुमार

दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए उनकी सुविधा के अनुसार खेलों के अभ्यास के लिए स्टेडियम होना चाहिए। जहां जाकर वे अपने खेल का अभ्यास कर सकें।

सीमा कुमारी

60 फीसदी से अधिक दिव्यांगता वालों को मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल दिया जाता है। इससे कम वालों को क्या चलने में परेशानी नहीं होती है। यह सीमा 45 फीसदी होनी चाहिए।

उन्नति पटेल

दिव्यांग भी समाज का ही एक अंग है। हमें भी हर जगह सम्मान मिलना चाहिए। बहुत से लोग दिव्यांग बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं। जबकि, उन्हें विशेष प्यार दुलार चाहिए।

रौनक कुमार वर्मा

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें