साइबर ठग : बदले हालात के साथ बदला तरीका
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हिन्दुस्तान पड़ताल :
साइबर ठग : बदले हालात के साथ बदला तरीका
-गलत नाम से खोलवायी गयी बैंक पासबुक के साथ ही ई-मेल व मोबाइल नंबर के सहारे ठगी करे हैं साइबर फ्रॉड
-कतरीसराय के नजदीकी नालंदा, नवादा और शेखपुरा जिलों के दो दर्जन गांवों के हजार से अधिक लोग जुटे हैं फर्जीवाड़े में
-खुलासा होने के साथ ही स्थान के साथ ही पासबुक नंबर, ई-मेल व मोबाइल नंबर बदल देते हैं
-5 से 40 हजार मासिक के साथ ही कमीशन पर युवाओं से कराते हैं गोरखधंधा
-पहले सफेद दाग, असाध्य रोग, नि:संतानों की गोद भरने, सेक्स समस्याओं के निदान तो अब ऑक्सीजन व अन्य मेडिकल उपकरणों के नाम पर कर रहे ठगी
कतरीसराय में साइबर ठगी का धंधा 100 करोड़ मासिक
सफेद दाग की दवा से शुरू हुआ गोरखधंधा पहुंचा ऑक्सीजन गैस के कारोबार तक
फोटो :
कतरीसराय : कतरीसराय का थाना कार्यालय।
बिहरशरीफ। कार्यालय संवाददाता/आशुतोष कुमार आर्य
जिले का सुदूरतम प्रखंड कतरीसराय। यानि, हब ऑफ साइबर क्राइम। साइबर ठगी के मामले में झारखंड के जामतारा को भी नालंदा का कतरीसराय मात देने को आतूर है। सफेद दाग की दवा बेचने से शुरू हुआ गोरखधंधा कोरोना काल में ऑक्सीजन सिलेंडर की सप्लाई करने तक पहुंच गया है। साइबर दुनिया की तकनीकी खोज के प्रति अलर्ट रहने वाले यहां के ठग बदले हालात के साथ अपना तरीका भी बदल लेते हैं। इन ठगों का मासिक कारोबार करीब 100 करोड़ का माना जाता है। जबकि, पड़ोसी जिलों शेखपुरा व नालंदा को भी शामिल कर लिया जाये तो यह आंकड़ा 500 करोड़ तक पहुंच जाएगा। करीब छह दशक पहले शुरू हुआ यह धंधा कतरीसराय के आसपास के दो दर्जन गांवों में फैल चुके हैं। जबकि, साइबर ठगी का इनका क्षेत्र पूरा देश है। देश का कोई ऐसा शहर नहीं है, जहां इन गिरोहों का कोई धंधेबाज मौजूद न हो।
सूत्रों की मानें तो नालंदा, नवादा और शेखपुरा जिलों के दो दर्जन गांवों के हजार से अधिक लोग प्रत्यक्ष तो करीब पांच हजार लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस फर्जीवाड़े में जुटे हैं।
हर चीज गलत:
100 से अधिक गिरोहों में बंटे धंधेबाजों के सभी कागजात जाली होते हैं। गलत नाम से खोलवायी गयी बैंक पासबुक के साथ ही ई-मेल व मोबाइल नंबर भी गलत नाम, पता व ठिकाने के आधार पर लिये गये होते हैं। इतना ही नहीं, एक जगह पर धंधे का खुलासा होने के साथ ही स्थान के साथ ही पासबुक नंबर, ई-मेल व मोबाइल नंबर भी बदल देते हैं।
कई भाषाओं के जानकार होते हैं कर्मी:
इन गिरोहों में काम करने वाले कर्मी कई भाषाओं के जानकार होते हैं। खासकर साइबर मामलों के तो एक्सपर्ट होते ही हैं। इन्हें पांच से 40 हजार रुपये तनख्वाह के साथ ही आय में कमीशन भी दिया जाता है। पहले कतरीसराय को वैद्यों का गांव कहा जाता था। सफेद दाग का इलाज होता था। लेकिन, बाद में इसके नाम पर जमकर धोखाधड़ी होने लगी। जब कुछ लोग गोरखंधंधे के सहारे फलने-फूलने लगे तो गिरोहों की संख्या बढ़ते देर न लगी। सफेद दाग के बाद असाध्य रोग, नि:संतानों की गोद भरने, चेहरा पहचानो इनाम पाओ, सेक्स संबंधित समस्याओं के निदान के नाम पर ठगी होने लगी। देश की शायद ही कोई ऐसी मैग्जीन होती थी, जिनमें इनका प्रचार नहीं होता था। अखबारों का भी सहारा लिया। अब ऑक्सीजन सिलेंडर व अन्य मेडिकल उपकरणों के नाम पर ठगी करने लगे हैं।
वर्ष 2012 में वृहत छापेमारी :
तत्कालीन एसपी निशांत कुमार तिवारी के नेतृत्व में कथित 67 चिकित्सकों के यहां छापेमारी की गयी थी। पता चला था कि 200 से अधिक गिरोह इस धंधे में संलिप्त थे। वृहत छापेमारी में 70 लोगों की गिरफ्तारी के साथ ही 200 मोबाइल, दर्जनों लैपटॉप, पिसाई मशीन, पैकेजिंग मशीन, डेलीवरी रजिस्टर, डाक टिकट के साथ ही अश्लील लेखों वाली किताबें जब्त की गयी थीं।
राजस्थान के आईएएस से ठगी बनी टर्निंग प्वायंट:
यहां के ठगों के लिए वर्ष 2012 टर्निंग प्वायंट बना। उस वक्त यहां के गिरोह ने राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे जेसी मोहंती से ठगी का प्रयास किया। यही उनके लिए काल बना। या यूं भी कह सकते हैं कि और अधिक फलने-फूलने का मौका मिला। वर्ष 2012 की छापेमारी तक लोग तरह-तरह के रोगों की दवाइयां बेचा करते थे। लेकिन, दर्जनों की गिरफ्तारी से तितर-बितर हुए गिरोहों के लोगों ने साइबर ठगी की दुनिया में कदम रखा। इसके बाद क्या कहने, उनकी डीलिंग लाखों और करोड़ों में होने लगी।
पेट्रोल पम्प के नाम पर 20 करोड़ की ठगी:
कतरीसराय के पास के नवादा जिले के एक गांव का शख्स अब भी ओडिशा के कटक जेल में है। उसपर कई लोगों से पेट्रोल पम्प दिलाने के नाम पर करीब 20 करोड़ की ठगी का आरोप है।
कई स्तरों में बंटे लोगों को मिलता है कमीशन:
स्थानीय सूत्रों की मानें तो गोरखधंधे में शामिल लोग कई स्तरों में बंटे होते हैं। सभी के नाम अलग-अलग होते हैं। काम व जोखिम के अनुरूप कमीशन तय होता है। बैंकों, अस्पतालों, मॉलों व अन्य स्थानों से लोगों के मोबाइल नंबर इकट्ठा किये जाते हैं। एक मोबाइल नंबर के बदले 20 से 30 रुपये का भुगतान किया जाता है।
स्थानीय को नहीं बनाते शिकार:
इन गोरखधंधों में शामिल लोगों की एक खासियत है। वे अपने क्षेत्र के लोगों को शिकार नहीं बनाते हैं। शायद यही कारण है कि स्थानीय लोग खुलकर उनका विरोध नहीं करते हैं। कई लोगों ने बताया कि कोई किसी तरह कमा रहा है तो मुझे क्या परवाह। गलत करेगा तो वहे फंसेगा, इसमें हमारी क्या।
अधिकारी बोले:
शेखपुरा के शेखोपुरसराय थाने के अध्यक्ष ट्रेनी डीएसपी कल्याण आनंद व कतरीसराय के थानाध्यक्ष अमरेश कुमार ने बताया कि जब भी सूचना मिलती है, छापेमारी कर गोरखधंधा करने वालों को दबोचा जाता है।
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