बर्बादी : टाल में मसूर और चना की खेती चौपट, धरतीपुत्रों का फट रहा कलेजा
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बर्बादी : टाल में मसूर और चना की खेती चौपट, धरतीपुत्रों का फट रहा कलेजा खेत से निकलते ही पौधों का रस चूस रहे कीड़ा, सूख रहे पौधे 8 हजार बीघे में लगी रबी फसल हुई बर्बाद, दोबारा कर रहे बुआई पटाना पड़ रहा खेतों को, हजारों बीघे में अब गेहूं और धनिया की बुआई शुरू फोटो : हरनौत खेत : चंडी प्रखंड के बदौरा गांव के मलमलवा खंधा में खेत का पटवन करते किसान बबलू। बिहारशरीफ, निज संवाददाता। टाल क्षेत्र की प्रमुख फसल मसूर, चना और खेसारी है। लेकिन, हरनौत, चंडी और सरमेरा प्रखंडों के टाल में लगी रबी फसलों की खेती पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। इससे धरतीपुत्रों का कलेजा फट रहा है। वे खून के आंसू रो रहे हैं। खेतों से निकलते ही पौधे का रस को कीड़ा चूस रहा है। इससे सभी पौधे सूख रहे हैं। अकेले हरनौत प्रखंड का बराह, कल्याणबिगहा, तुलसीखंधा, नब्बे, नदी पर टाल, सिरसी, कोलावां का चालिसकुरबा, बही-खंधा, चंडी प्रखंड का भेड़िया, कचरा टाल, बदौरा का मलमलावा, भंडरकोनी खंधा, बख्तियारपुर, रवाइच, सरमेरा प्रखंड का चेरो, कड़ौन, हुसेना, वृंदावन समेत अन्य टालों के आठ हजार बीघे से अधिक खेतों में लगी रबी फसल बर्बाद हो चुकी है। अब यहां के किसान खेतों में दोबारा बुआई कर रहे हैं। वहीं कुछ लोगों ने एक सप्ताह पहले उन खेतों में और बीज डालकर उसपर पानी का छिड़काव कर उसे बचाने के जुगत में जुड़े हैं। आधे से अधिक खेतों में लगी फसल कीड़ाखोरी से पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। उन खेतों में गेहूं व धनिया का बीज डालकर उसे पटाना पड़ रहा है। मसूर व चना का समय खत्म होता जा रहा है। इस कारण लोग अब गेहूं व धनिया की बुआई करने में जुट गए हैं। तुलसीखंधा में लगी गेहूं की फसल में भी कीड़ाखोरी शुरू हो चुकी है। कीड़ा इतना सूक्ष्म है कि किसानों को पता तक नहीं चल पा रहा है। इससे किसान माथा पीट रहे हैं। खेतों में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव भी पौधों को सुरक्षित नहीं कर पा रहा है। इससे किसानों की चिंता बढ़ गयी है। प्रति बीघा 4 हजार रुपए खर्च: बदौरा के किसान बबलू कुमार, नरसंडा के पिंटु कुमार, उज्ज्वल कुमार, चखामिंद के किसान अविनाश कुमार, नागेंद्र कुमार, रामरतन केवट, कल्याणबिगहा के किसान विनोद कुमार, नीतीश कुमार, सरमेरा के चेरों के किसान नाजुक सिंह व अन्य ने कहा कि कीड़ाखोरी ने मसूर की खेती को खत्म कर दिया है। अगात में लगी मसूर फसल पूरी तरह से तबाह हो चुकी है। कुछ लोगों ने बाद में उसी खेत में मसूर का बीज डालकर पानी का छिड़काव किया है। उसमें भी सही से अब तक पौधे नहीं बढ़ पा रहे हैं। किसानों को समझ में नहीं आ रहा है। एक बीघा खेत में मसूर की खेती करने पर औसतन चार हजार रुपए खर्च होते हैं। एक हजार रुपए प्रति बिगहा जुताई, ढाई हजार रुपए का बीज और 400 से 500 रुपए मजदूरी समेत अन्य खर्च होते हैं। खेतों में दफन हुए किसानों के 3 करोड़ : इन टालों के आठ हजार बीघे से अधिक खेतों में लगी मसूर व चना की फसल खत्म हो चुकी है। सिर्फ जुताई, बीज और मजदूरी को जोड़ा जाये, तो अब तक इन किसानों के तीन करोड़ 20 लाख रुपए जमीन में दफन हो चुके हैं। इनमें से अधिकतर किसान इन खेतों में पटवन कर फसल को बचाने की जुगत में लगे हैं। वहीं कई किसान इन खेतों की पटवन कर गेहूं व धनिया की खेती की योजना बनाने में लगे हैं। इसके लिए खेतों की पटवन कर रहे हैं। बदौरा के किसान रामप्रवेश सिंह, मुन्ना सिंह व अन्य ने कहा कि पट्टा लेकर वे किसी तरह खेती कर रहे हैं। इस तबाही ने किसानों की कमर तोड़ दी है। कृषि वैज्ञानिक ने कहा : तापमान अधिक रहने के कारण टाल क्षेत्र में कीड़ाखोरी की शिकायत बहुतायत में मिली है। चार दिन पहले तक सामान्य तौर पर तापमान 25 से 34 डिग्री सेल्सियस तक था। यह तापमान कीड़ा के विकास के लिए बहुत ही उपयुक्त है। ऐसे में कीड़ाखोरी हुई। चार दिनों से तापमान में तेजी से गिरावट आयी है। अब तापमान 15 से 28 डिग्री सेल्सिसय के बीच आ चुका है। ऐसे में कीड़ाखोरी कम हो जाएगी। रबी फसल में तापमान और मिट्टी की नमी का अहम रोल होता है। पौधे उगने पर कीड़ा से बचाव के लिए किसान दवाओं का स्प्रे कर सकते हैं। लेकिन, मिट्टी में निकलने से पहले की पौधों की कीड़ाखोरी को रोकना मुश्किल होता है। क्योंकि, दवाओं का स्प्रे पूरी तरह से कारगर नहीं होता है। साथ ही, इसमें खर्च भी अधिक आता है। कीड़ाखोरी से बचाव के लिए बचे पौधों पर दवाओं का स्प्रे कारगर साबित होगा। उमेश कुमार उमेश, कृषि वैज्ञानिक, हरनौत कृषि विज्ञान केंद्र खेतों में जाकर टीम इसकी जांच कर रही है। जांच के बाद किसानों को उपाय बताए जा रहे हैं। अधिक तापमान रहने के कारण कीड़ाखोरी की शिकायत बढ़ती है। तापमान कम होने के साथ ही कीड़ा का प्रकोप भी कम होता चला जाएगा। किशोर नंदा, जिला परामर्शी, कृषि विभाग बीज शोधन करके ही किसानों को खेतों में बुआई करने को कहा जा रहा है। बावजूद, किसान बिना शोधन किए ही खेतों में बीज डाल रहे हैं। 10 दिन से कम अंकुरण वाले पौधों को बचाना मुश्किल होता है। इसका एकमात्र उपाय उपचारित बीज लगाना है। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। किसान सलाहकार भी उन्हें ये जानकारी दे रहे हैं। धरती से ऊपर उगे पौधों पर दवा का छिड़काव कर इसे कीड़ाखोरी को रोका जा सकता है। इसके लिए किसान प्रति एकड़ 100 लीटर पानी में 100 एमएल इमा मैक्सिन बेंजोएट दवा का छिड़काव करें। साथ ही, वे स्थानीय किसान समन्वयक और सलाहकार से भी मदद ले सकते हैं। हमारी टीम लगातार खेतों में जाकर इसका मुआयना कर किसानों को सलाह दे रही है। राजीव कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी
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