रिवाइज : लोक आस्था का महापर्व छठ कल से नहाय-खाय के साथ होगी शुरू
लोक आस्था का महापर्व छठ कल से नहाय-खाय के साथ होगी शुरूलोक आस्था का महापर्व छठ कल से नहाय-खाय के साथ होगी शुरूलोक आस्था का महापर्व छठ कल से नहाय-खाय के साथ होगी शुरूलोक आस्था का महापर्व छठ कल से...
लोक आस्था का महापर्व छठ कल से नहाय-खाय के साथ होगी शुरू चार दिवसीय सूर्योपासना के महापर्व की तैयारी में जुटे भक्त घाटों की सफाई व पानी की व्यवस्था में लगे लोग फोटो : छठ घाट : रहुई प्रखंड का मोरातालाब छठ घाट जहां उमड़ती है हजारों की भीड़। पावापुरी, निज संवाददाता। पूरे उत्तर भारत में विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भक्तिभाव और श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला लोक आस्था का महापर्व छठ पांच नवंबर मंगलवार से शुरू हो जाएगा। चार दिवसीय सूर्योपासना के महापर्व की तैयारी में भक्त जुट गए हैं। वहीं घाटों की सफाई व पानी की व्यवस्था में लोग लगे हुए हैं। पंडित अरविंद पांडेय ने बताया कि यह पर्व चार दिनों तक चलता है। इस पवित्र पर्व में श्रद्धालु अपनी आस्था और भक्ति के साथ सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं। अपने परिवार और समाज की समृद्धि के लिए व्रत रखते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से प्रकृति, स्वच्छता, निष्ठा, तप और संयम का प्रतीक है। जो हमारे जीवन के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है। हमें हर दिन इनकी महिमा का ख्याल रखते हुए इसकी रक्षा करनी चाहिए। यह सूर्योपासना और प्रकृति की पूजा का पर्व : छठ पूजा को सूर्य देवता और छठी मइया की आराधना का पर्व माना जाता है। सूर्य को जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है। यह पर्व उनकी उपासना के माध्यम से प्राकृतिक संतुलन और समृद्धि की कामना करता है। छठ पूजा के सभी अनुष्ठानों में गंगा और अन्य नदियों के जल का विशेष महत्व होता है। यही कारण है कि छठ पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। दरअसल यह सूर्योपासना और प्रकृति की पूजा का पर्व है। जो हमें जीवन में प्रकृति के महत्व व उनकी आवश्यकताओं को दर्शाता है। यह एकमात्र ऐसा विधान है, जिसमें पंडित की कोई भूमिका (आवश्यकता) नहीं होती है। व्रती व परिवार के सदस्य खुद ही सारी व्यवस्था करते हैं। छठ पूजा की तैयारियां और विशेष इंतजाम आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक है छठ : छठ पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता, शुद्धता और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। इस अवसर पर परिवार के सभी सदस्य मिलकर तैयारियां करते हैं और साथ मिलकर अनुष्ठान में भाग लेते हैं। छठ पर्व का यह व्रत न केवल कठिन तपस्या का प्रतीक है, बल्कि यह संकल्प, संयम और स्वच्छता का भी पाठ हमें पढ़ाता है। श्रद्धालु पूरे भक्तिभाव से इस महापर्व का पालन करते हैं, इससे यह पर्व साल दर साल और भी व्यापकता के साथ मनाया जाने लगा है। अब विदेश में रहने वाले भारतीय भी इसे पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं। चार दिवसीय पर्व का कार्यक्रम : 1. पहला दिन (नहाय-खाय : 5 नवंबर मंगलवार को) : पंडित सूर्यमणि पांडेय ने बताया कि छठ पूजा का शुभारंभ 'नहाय-खाय' से होता है। इस दिन व्रती (व्रत करने वाले) गंगा या किसी पवित्र जलाशय में स्नान कर शुद्धता और पवित्रता का पालन करते हुए शुद्ध और सात्विक भोजन करते हैं। इसमें कद्दू-भात और चने की दाल प्रमुख रूप से बनाई जाती है, जो व्रतियों द्वारा ही ग्रहण की जाती है। 2. दूसरा दिन (लोहंडा और खरना : 6 नवंबर बुधवार को) : दूसरे दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद पूजा करते हैं, इसे ‘खरना कहते हैं। इसमें गुड़ से बनी खीर, रोटी और चावल दाल का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस दिन व्रती अपने आप को पूर्ण रूप से शुद्ध करते पवित्रता से रहते हैं और इसी के साथ अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। 3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य : 7 नवंबर गुरुवार को) : तीसरे दिन छठ का मुख्य अनुष्ठान संपन्न होता है। इस दिन व्रती अपने परिवारजनों के साथ जलाशय या नदी के किनारे एकत्रित होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसमें बांस की टोकरियों में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना आदि का प्रसाद सजाया जाता है और छठ व्रती भगवान सूर्य से संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के साथ उनकी पूजा अर्चना करते हैं। 4. चौथा दिन (प्रात: अर्घ्य और पारण : 8 नवंबर शुक्रवार को) : छठ व्रत के अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होता है। इस दिन सूर्योदय से पहले श्रद्धालु नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होते हैं और उदियमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है। व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपने व्रत का समापन करते हैं। इसकी साथ चार दिवसीय छठ पर्व संपन्न हो जाता है।
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