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नूरसराय का चंडासी गांव : कोरोना ने छीनी 400 दिहाड़ियों की रोजी-रोटी

नूरसराय का चंडासी गांव : कोरोना ने छीनी 400 दिहाड़ियों की रोजी-रोटीनूरसराय का चंडासी गांव : कोरोना ने छीनी 400 दिहाड़ियों की रोजी-रोटीनूरसराय का चंडासी गांव : कोरोना ने छीनी 400 दिहाड़ियों की...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफFri, 14 May 2021 08:50 PM
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हाल-ए-गांव :

नूरसराय का चंडासी गांव : कोरोना ने छीनी 400 दिहाड़ियों की रोजी-रोटी

देहाड़ी मजदूरों व किसानों की हालत खस्ता, कमाई का जरिया हुआ बंद

लोग शहर जाने से भी डर रहे, पहले रोजाना 400 लोग कमाने जाते थे बाजार

नूरसराय के चंडासी गांव की साढ़े तीन हजार आबादी प्रभावित, कामकाज हुआ ठप

फोटो:

चंडासी: नूरसराय प्रखंड के चंडासी गांव का हाल, गलियों में फैला सन्नाटा।

नूरसराय। पुतूल सिंह

कोरोना की दूसरी लहर ने प्रखंड के चंडासी गांव के 400 से अधिक दिहाड़ियों की रोजी-रोटी छीन ली है। इससे दिहाड़ी मजदूरों व किसानों की हालत खस्ता हो रही है। उनकी कमाई का जरिया लगभग पूरी तरह बंद हो चुका है। कोरोना संक्रमण का डर इस कदर हावी है कि लोग आसपास के बाजार व शहर जाने से भी डर रहे हैं। पहले इस गांव से रोजाना चार सौ से अधिक दिहाड़ियों (दैनिक मजदूरी करने वाले) की कमाई का जरिया स्थानीय बाजार ही था। वहीं सैकड़ों किसान अपनी सब्जी व अन्य उत्पादों को बेचने के लिए रोजाना बाजार जाते थे।

बाजार की बात तो छोड़िए, चंडासी गांव में भी बाहरी लोग आने से डर रहे हैं। इस गांव में 11 लोगों के संक्रमित मिलने के बाद इसे माइक्रोकंटेनमेंट जोन बना दिया गया है। इसके कारण इस क्षेत्र में प्रतिबंधित क्षेत्र को बोर्ड लगा दिया गया है। नूरसराय के चंडासी गांव की साढ़े तीन हजार आबादी परोक्ष व अपरोक्ष रूप से प्रभावित है। गांव की गतिविधियां तो कम हुई ही अन्य कामकाज भी प्रभावित हैं।

चंडासी गांव में मौजूदा समय में कोरोना के 11 एक्टिव केस हैं। चार अलग-अलग स्थानों पर बांस-बल्ली लगाकर गलियों को सील कर दिया गया है। साढ़े तीन हजार की आबादी वाला यह गांव कोरोना के डर के साये में जी रहा है। हर किसी के चेहरे पर कोरोना का भय साफ देखा जा सकता है। गलियां पूरी तरह सूनी हैं। गांव के देवी स्थान, पंचायत भवन, हाई स्कूल के मैदान सहित अन्य जगहों पर वीरानी छायी हुई है। पहले लोग इन स्थानों पर सुबह-शाम चौपालों में बच्चों की भी किलकारियां गूंजती थीं। दोपहर में भी बड़े बुजुर्ग यहां गप्पें हांकते नजर आते थे। कोरोना ने सबकों घरों में कैद कर दिया है।

यहां तक कि गांव में कोरोना संक्रमित का मरीज होने के कारण स्थानीय प्रशासन द्वारा तीन कंटेनमेंट जोन बनाया गया है। संक्रमितों के घरों से भी अन्य सदस्य बहुत आवश्यक होने पर ही कभी-कभार बाहर निकलते हैं। ग्रामीणों ने भी संक्रमितों को घरों में ही रहने को कहा है। ताकि, दूसरे लोग संक्रमित न हो सकें।

नहीं मिलती दिहाड़ी:

चंडासी के जितेंद्र कुमार, मनोरंजन प्रसाद व अन्य ने बताया कि पहले सुबह सात बजे घर से नास्ता कर बगल में पोटरी (दोपहर का खाना) दबाकर दिहाड़ी के लिए निकल जाते थे। शुरू-शुरू में तो उन्हें जहां-तहां काम मिल गया। लेकिन, जैसे ही गांव में संक्रमण होने की जानकारी लोगों को मिली, दिहाड़ी मिलनी भी बंद हो गयी। गत सात दिनों से वे गांव में ही घरों में बंद हैं। संक्रमण से बच रहे हैं। लेकिन, पेट पर आफत आ चुकी है। घरों में पहले से मौजूद सामान भी खत्म हो रहे हैं।

चोखा-भात खाकर काट रहे जिंदगी:

इस गांव से प्रखंड मुख्यालय की दूरी मात्र आधा किलोमीटर है। ऐसे में यहां के सैकड़ों लोग खेतों में थोड़ा बहुत काम करने के बाद बाजार चले जाते थे। वहां परोर, भिंडी, कद्दू, बोरा व अन्य सब्जियां बेचकर अच्छी कमाई कर लेते थे। इससे अच्छे-अच्छे पौष्टिक भोजन भी मिल जाता था। किसान इन सब्जियों को जानवरों को खिलाने को मजबूर हैं। वहीं कमायी नहीं होने से देहाड़ी करने वालों थाली से दाल के बाद हरी सब्जियां भी गायब हो चुकी हैं। वे चोखा-भात खाकर समय काट रहे हैं। पप्पू कुमार, दिनेश राम, राजू, महेश प्रसाद व अन्य ने कहा कि अगर यही हाल रहा तो चोखा-भात पर भी आफत आ जाएगी।

सब्जी उत्पादकों के माथों पर चिंता की लकीरें:

इस गांव के लगभग तीन दर्जन किसान सब्जी की खेती कर रहे हैं। वहीं दर्जनों लोगों को दिहाड़ी के माध्यम से खाने-पीने के लिए पैसे भी मिल जाते थे। कई विक्रेता तो खेतों से सब्जी लेकर घर-घर जाकर बेचकर अच्छे पैसे कमा लेते थे। लेकिन, कोरोना के कारण सब खत्म हो चुका है। उत्पादक किसान अपने उत्पादों को बाजार तक नहीं ले जा रहे हैं। इन उत्पाद को मवेशियों को खिला रहे हैं।

मुखिया अनु सिंह लगातार ग्रामीणों को कोरोना गाइडलाइन पालन करने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं। उनके घर के पास पूरब टोला, मुसहरी, बिचली गली, गरांय टोला में बैरिकेडिंग की गयी है। बबलू कुमार ने बताया कि सभी संक्रमितों का हाल चाल अस्पताल के कर्मी फोन से ले रहे हैं। गांव में दवा दुकान नहीं रहने से परेशानी और बढ़ गयी है। आरजू मिन्नत कर बाजार से दवाएं मंगवानी पड़ती हैं।

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